कर्मचारीयों का मनमानी:हाथों से 20 करोड़ रुपए का ब्लीच घोल हमारा पानी बीमार कर रहे; माप से 80% कम PPM, बैक्टीरिया से हैजा-पेचिश बढ़ रहा

Jun 29, 2025 - 07:30
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कर्मचारीयों का मनमानी:हाथों से 20 करोड़ रुपए का ब्लीच घोल हमारा पानी बीमार कर रहे; माप से 80% कम PPM, बैक्टीरिया से हैजा-पेचिश बढ़ रहा
राजस्थान में पानी सबसे बड़ी चुनौती है। ऐसे में भी साफ पानी के दावों के बीच पिछले एक साल में पीने के पानी के 8,250 सैंपल फेल हुए हैं। इनमें क्लोरीन और बैक्टीरिया के 1305 सैंपल हैं, यह पानी पीने योग्य नहीं माना गया है। भास्कर ने पानी की गुणवत्ता जांचने के लिए राजधानी जयपुर के पंप हाउसों की पड़ताल की। कई पंप हाउस पर तो महीनों से क्लोरीनेशन (क्लोरीनीकरण) बंद पड़ा है तो कई पर कर्मचारी बिना टेस्ट के अपनी मर्जी और अंदाजे से ही पानी में ब्लीचिंग पाउडर मिलाकर सप्लाई कर रहे हैं। इसमें माप से 80% पार्ट्स पर मिलियन (पीपीएम) कम है। यह पानी बैक्टीरिया या वायरस से मुक्त नहीं है, हैजा-पेचिश-टायफाइड की वजह है। राजधानी में 80 से ज्यादा पंप स्टेशनों पर बीसलपुर से पानी पहुंचता है। सुरजपुरा और बालावाला में क्लोरीनेशन किया जाता है, लेकिन लंबी दूरी तय करने के बाद छोटे पंप स्टेशनों पर पहुंचते-पहुंचते क्लोरीन की मात्रा काफी कम और लीकेज से इंफेक्शन हो जाता है। प्रदेश में बांध व नहरी पानी का ट्रीटमेंट कर कई बड़े शहरों में वाटर ट्रीटमेंट प्लांट व पंप हाउसों के जरिए पेयजल सप्लाई किया जा रहा है। जलदाय विभाग ने प्रदेश में 35 जगह बड़े प्लांट लगा रखे हैं, यहां पर पेयजल का प्री व पोस्ट क्लोरीनेशन होता है। 100 पंप हाउसों में पुराने तरीके ब्लिचिंग पाउडर से पानी का क्लोरीनेशन होता है। सवाल? 35 बड़े प्लांट में से सिर्फ 15 ऑटोमैटिक। 100 स्टेशनों पर अंदाजन ब्लीचिंग पाउडर‌ ‌ घोलने में खर्च कर रहे 20 करोड़ रुपए 10 करोड़ रुपए में ऑटोमैटिक प्लांट ही क्यों नहीं लगा लेते। 100 पंप हाउसों में ब्लीचिंग पाउडर से पानी का क्लोरीनेशन, केवल 15 जगह ऑटोमैटिक क्लोरीनेटर प्लांट लगे डंडे से हिलाकर अंदाजे से पाउडर मिला रहे; गांधीनगर में पीएचईडी विभाग के अंदर ही पंप हाउस में कर्मचारी हाथों से ब्लीचिंग पाउडर मिला रहे हैं। मात्रा पूछी तो बोले- 25 किलो का एक कट्‌टा 3 दिन चलाते हैं, यही मात्रा पता है। कट्‌टे से पाउडर निकालकर लकड़ी के बड़े डंडे से मिलाया जा रहा है। क्लोरीनेशन की मशीनें खराब हैं। टेस्टिंग करने पर पंप हाउस में 0.2 पीपीएम मात्रा आई, जो घरों में एंड यूजर के पास होनी चाहिए। पंप हाउस में 1-2 पीपीएम होनी चाहिए। यहां से पानी जयपुर में ब्यूरोक्रेटस के घरों में भी सप्लाई होता है। बापू नगर पंप हाउस कर्मचारियों ने बताया कि टेंडर खत्म होने से 1 महीने से क्लोरीनेशन बंद है। पानी की टेस्टिंग की तो पानी का रंग ही नहीं बदला यानी क्लोरीन जीरो। सीएमआर, राजभवन के पास न क्लोरीनेशन ना टेस्ट सिविल लाइंस में राजभवन और सीएम रेजीडेंस के पास स्थित पंप हाउस में क्लोरीनेशन मशीन लगी है, मगर कर्मचारी बोले- दो माह से क्लोरीनेशन ही नहीं हुआ है। वहीं, पानी की जांच की बात की तो उनके पास सैंपल चेक करने के लिए कोई किट भी नहीं था। पानी में रिएक्शन करके देखा तो पानी का रंग भी नहीं बदला। राजस्थान यूनिवर्सिटी स्थित पंप हाउस में मशीन के जरिए क्लोरीनेशन मिला। पानी जांचा तो पम्प हाउस पर ही 0.2 पीपीएम मिला। मशीन से भी क्लोरीनेशन ऑटोमैटिक ना होकर मैनुअल करना पाया गया। यहां मशीन ऑपरेटरों को अंदाजा नहीं था कि क्लोरीनेट करने के लिए पानी में डॉजिंग या मिक्सिंग कैसे करनी है। चिंता; केमिकल टेस्ट में भी फेल; {राजधानी में 3 माह में 546 सैंपल लिए गए। इनमें से 83 असंतोषजनक पाए गए। {जल जीवन मिशन में गत वर्ष 14,293 व इस साल 2019 सैंपल टेस्ट में संतुष्टिजनक नहीं मिले। एक्सपर्ट; बैक्टीरिया यानी बीमारी; केमिस्ट्री प्रो. आलोक चतुर्वेदी के मुताबिक, पानी में बैक्टीरिया यानी क्लोरीन की कमी। इकोलाइ, कॉलिफॉर्म की जांच फेल होना बीमारियां बढ़ाएगा। WHO की मानें तो 0.2 पीपीएम क्लोरीन एंड यूजर को मिलना चाहिए। ऐसा नहीं है तो हैजा, पेचिश सहित कई रोग हो सकते हैं। "पीएचईडी के एसीई (प्रोजेक्ट) शुभांशु दीक्षित ने कहा- आप ऐसे पंप स्टेशन बताइए। जांच करवाएंगे और कड़ा एक्शन लेंगे। खराब पानी मिलना सबसे गलत बात है।" "पीएचईडी के चीफ केमिस्ट रोहिताश मीणा ने कहा- हम क्लोरीन, बैक्टीरिया, टीडीएस, पीएच, कॉलीफॉर्म, एल्कालाइन की जांच करते हैं। सैंपल असंतोषजनक मिलते ही सुधार करवाते हैं।"

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