आदिवासियों के नाम पर खाते खुलवाकर 1800 करोड़ की धोखाधड़ी!:योजनाओं का लाभ दिलाने का झांसा देकर खोले खाते, साइबर ठगों को बेचे

आदिवासियों के नाम पर खाते खुलवाकर 1800 करोड़ की धोखाधड़ी!:योजनाओं का लाभ दिलाने का झांसा देकर खोले खाते, साइबर ठगों को बेचे
राजस्थान के आदिवासी जिलों में भोले-भाले लोगों को सरकारी योजनाओं का लाभ दिलाने के नाम पर एक बड़ा फर्जीवाड़ा चल रहा है। यहां कुछ बैंकों के कर्मचारियों ने लोगों से उनके आधार कार्ड, फोटो और दस्तखत ले लिए और उनके नाम से बैंक खाता खोल लिया। खास बात यह है कि जिन लोगों के नाम पर खाता खोला गया, उन्हें इसकी जानकारी ही नहीं थी। पिछले दिनों ऐसे ही एक अकाउंट से फ्रॉड के 82 लाख रुपए का ट्रांजैक्शन होने के बाद 2 लोगों को डूंगरपुर से गिरफ्तार किया गया था। इसके बाद बड़ी संख्या में ऐसे पीड़ित लोग सामने आए हैं। अब बांसवाड़ा सांसद राजकुमार रोत ने डीजीपी को पत्र लिखकर दावा किया है कि यह फर्जीवाड़ा करीब 1800 करोड़ रुपए का है और सैकड़ों लोगों के फर्जी तरीके से खाते बने हैं। बैंक अकाउंट का क्या उपयोग होता था? पिछले दिनों डूंगरपुर से पकड़े गए आरोपियों से पूछताछ के बाद पता चला है कि स्थानीय लोगों के नाम पर खोले गए इन बैंक अकाउंट की सारी डिटेल वे साइबर ठगी करने वाले अपराधियों को देते थे। इसके एवज में मोटा कमीशन लेते थे। साइबर ठग इन बैंक अकाउंट का उपयोग ठगी की रकम का ट्रांजैक्शन करने के लिए करते हैं। इसमें बैंक कर्मचारियों की मिलीभगत का भी अंदेशा है। फर्जी लेने-देन के चलते खाता फ्रीज होने पर पीड़ितों को इस ठगी का खुलासा हुआ। 5 जिलों में चल रहा यह फर्जीवाड़ा सांसद राजकुमार रोत ने इस फर्जीवाड़े को लेकर डीजीपी को चिट्‌ठी लिखी है और उच्च स्तरीय जांच की मांग की है। सांसद राजकुमार रोत का दावा है कि यह फर्जीवाड़ा सिर्फ डूंगरपुर के साथ-साथ बांसवाड़ा, प्रतापगढ़, सलूंबर और उदयपुर में भी चल रहा है। रोत ने कहा कि डूंगरपुर जिले में इंडसइंड बैंक, एचडीएफसी बैंक, एक्सिस बैंक, बैंक ऑफ महाराष्ट्र सहित अन्य बैंकों के कर्मचारियों की मिलीभगत सामने आई है। बैंक कर्मियों ने कॉलेजों में जाकर छात्रों और उनके परिवारों को बैंक खाता खुलवाने पर फ्री पैन कार्ड, छात्रवृत्ति, शिक्षा ऋण और सरकारी योजनाओं के तहत सुविधाएं उपलब्ध कराने का झांसा दिया। उनके दस्तावेज आधार कार्ड, फोटो और हस्ताक्षर लेकर बैंक खाते खोले गए और फिर इन खातों का इस्तेमाल अवैध लेन-देन में किया गया। एटीएम कार्ड मांगे तो टालमटोल शुरू किया रोत के मुताबिक करीब 500 गरीब छात्रों और उनके माता-पिता के नाम पर बैंक अकाउंट खोले गए हैं। इनसे 1800 करोड़ रुपए की ठगी हुई है। जब छात्रों ने अपने खातों के एटीएम कार्ड मांगे तो बैंक कर्मचारियों ने तकनीकी कारणों का हवाला देते हुए टालमटोल शुरू कर दिया। इसका पता तब चला जब छात्र और उनके परिवार के लोग बैंक पहुंचे तो बैंक प्रबंधन ने कर्मचारियों को हटाने की बात कही। वहीं, उनके खातों से अवैध लेनदेन की बात बताई। सांसद रोत ने कहा कि ये सभी छात्र गरीब आदिवासी परिवारों से आते हैं और उनके साथ अन्याय हो रहा है। उन्होंने आरोप लगाया कि पुलिस प्रशासन असली अपराधियों की गिरफ्तारी के बजाय पीड़ितों को परेशान कर रही है। ऐसे खुला था पूरा मामला? डूंगरपुर जिले के साइबर थाने के थानाधिकारी गिरधारीलाल ने बताया कि बथड़ी निवासी लालशंकर रोत ने साइबर थाने में 19 जून को एक रिपोर्ट दी थी। रिपोर्ट में बताया था कि नवंबर-2024 में उसके गांव का विक्रम मालीवाड़ अपने 3 साथियों के साथ घर पर आया था। उसने एक स्कीम में पैन कार्ड मुफ्त में मिलने की बात बताई थी, जिसके लिए एक खाता खुलवाने के लिए कहा था। इस पर विक्रम और उसके साथियों ने मेरे नाम से एक सिम खरीदी और बैंक ऑफ महाराष्ट्र में एक खाता खुलवाया। वहीं, उस खाते की बैंक डायरी, एटीएम व चेक बुक अपने पास रख ली। साथ ही जल्द ही पैन कार्ड आने की बात कही थी। कुछ दिन पहले लालशंकर बैंक गया और खाते का स्टेटमेंट मांगा तो बैंक वालों ने बताया कि तुम्हारे खाते में 82 लाख रुपए का संदिग्ध लेन देन हुआ है, जिसके चलते खाते को फ्रीज कर दिया है। इसके बाद लालशंकर ने आरोपी विक्रम मालीवाड, उसके साथ महावीर सिंह, घनश्याम कलाल और एक बैंक कार्मिक कौशल प्रजापत के खिलाफ धोखाधड़ी की रिपोर्ट साइबर थाना पुलिस को दी। पुलिस ने मामला दर्ज करते हुए आरोपी महावीर सिंह व विक्रम मालीवाड़ को डिटेन कर पूछताछ की तो उन्होंने बताया कि इन खातों को उन्होंने साइबर ठगाें को बेची थी। एटीएम-चेक बुक अपने पास रखते थे डूंगरपुर जिले के साइबर थाने के थानाधिकारी गिरधारीलाल का कहना था कि आरोपी भोलेभाले लोगों को फ्री पेन कार्ड और अन्य सरकारी योजनाओं के फायदे दिलाने का झांसा देकर उनके दस्तावेजों से बैंक खाता खुलवाते थे। खाते की बैंक डायरी, एटीएम व चेक बुक अपने पास ही रखते थे। इन खातों को ऑनलाइन ठगी करने वाले गिरोह को बेचा जाता था। जो इसमें साइबर ठगी के पैसों का लेनदेन करते थे। जबकि खाताधारक को इसकी कोई जानकारी नहीं होती थी।