डॉक्टर-क्रिकेटर बनना चाहते थे, जेईई एडवांस्ड टॉप किया:पहली रैंक वाले राजित गुप्ता के पिता को आरपीईटी में मिली थी 48वीं रैंक

मैंने कभी पढ़ाई का शेड्यूल नहीं बनाया। जब भी इच्छा हुई पढ़ाई की। एग्जाम को लेकर टेंशन नहीं ली। न तो ये सोचा कि टॉप करना है, न ही ये सोचा कि एग्जाम क्रेक नहीं किया तो क्या होगा? यह कहना है जेईई एडवांस्ड में देश में पहली रैंक हासिल करने वाले कोटा के राजित गुप्ता का। सोमवार को आईआईटी कानपुर ने जेईई एडवांस्ड का रिजल्ट जारी कर दिया। संभवत: ऐसा पहली बार हुआ है कि कोटा के लोकल स्टूडेंट ने देशभर में पहला स्थान हासिल किया। एग्जाम में हरियाणा के रहने वाले सक्षम ने दूसरी रैंक हासिल की है। भास्कर टीम ने दोनों से बात कर उनकी सफलता की कहानी जानी। दोनों स्टूडेंट्स एलन कोचिंग में पढ़ें हैं। पहले पढ़िए राजित की सक्सेस स्टोरी… कभी भी पढ़ाई का शेड्यूल नहीं बनाया
राजित ने बताया कि उसने कभी पढ़ाई को लेकर शेड्यूल नहीं बनाया। जो शेड्यूल बनाता है, वह दूसरी चीजों को अपने ऊपर हावी होने देता है। जैसे कि यह करना है, इस टाइम यह नहीं करना है। शेड्यूल बनाने वाला उसे फॉलो करने में ही लगा रहता है। राजित ने बताया- क्लास रूम में जो पढ़ाया जाता था, उसे घर आकर पढ़ता था। ऐसा नहीं है कि रेगुलर आठ-दस घंटे पढ़ाई की। जब भी मन हुआ पढ़ लिया। इस दौरान कुछ समझ नहीं आया तो उसे नोट किया और दूसरे दिन डाउट क्लास में टीचर से पूछ लिया। राजित ने बताया खुशी मेरी सफलता की कुंजी है। मैं हर स्थिति में खुश रहता हूं। राजित ने जेईई मेन जनवरी सेशन में 100 पर्सेंटाइल और जेईई मेन अप्रैल सेशन में भी ऑल इंडिया रैंक 16 हासिल की थी। गलतियां रिपीट नहीं करनी चाहिए
पढ़ाई के दौरान सबसे ज्यादा फोकस रहता था कि गलतियों को रिपीट नहीं करूं। गलतियां दूर होने से ही आपकी सब्जेक्ट में नींव मजबूत होती है। डाउट्स क्लियर करने के बाद ही टॉपिक में आगे पढ़ता था। मेरा मुख्य ध्यान इस बात पर था कि मुझे गलतियां नहीं दोहरानी चाहिए। गलतियों को दूर करने पर ही आपकी नींव मजबूत होती है। पढ़ाई के दौरान मोबाइल या टीवी से दूरी बनाई? इस सवाल पर राजित का कहना है कि नहीं, जब भी मूड होता मोबाइल पर कार्टून देखता था ये मुझे रिलेक्स करता था। गेमिंग के लिए कभी मोबाइल का यूज नहीं किया। डॉक्टर बनने की इच्छा थी, पर कॉम्पिटिशन जेईई में नजर आया
राजित ने बताया कि वह पहले डॉक्टर बनने की इच्छा रखते थे। घर में पहले कभी बात होती थी तो मम्मी पापा भी यही कहते थे कि डॉक्टर बनेगा तो लोगों की सेवा होगी। जब दसवीं का एग्जाम दिया उसके बाद समझ आया कि नीट और जेईई में काफी अंतर है। ज्यादा हार्ड एडवांस्ड का एग्जाम होता है। यहां पर टफ कॉम्पिटिशन मिलता है। इस पर मैंने अपना मन बदल लिया और जेईई एडवांस्ड की तैयारी में जुटा। राजित के पिता दीपक गुप्ता बीएसएनल में कोटा में इंजीनियर हैं। वहीं मां डॉ. श्रुति अग्रवाल जेडीबी कॉलेज में प्रोफेसर हैं। राजित ने कहा कि कोचिंग में टीचर्स की गाइडलाइंस और स्टडी मेटेरियल के अलावा आपको कहीं भी ध्यान भटकाने की जरूरत नहीं है। 1994 में पिता ने दी थी आरपीईटी, मिली थी 48वीं रैंक
राजित के पिता दीपक ने बताया कि मैं खुद कोचिंग में पढ़ा हुआ हूं। उस समय राजस्थान में तीन ही इंजीनियरिंग कॉलेज थे, इसलिए आरपीईटी काफी प्रतिष्ठित एग्जाम माना जाता था। मैंने आरपीईटी में 48वीं रैंक मिली थी। तब की इंजीनियरिंग की पढ़ाई और आज की इंजीनियरिंग की पढ़ाई को लेकर उनका कहना है कि काफी अंतर आया है। पहले न तो इतने सोर्स हुआ करते थे न ही इतना कॉम्पिटिशन था। आज आईआईटीयन बच्चों को पढ़ा रहे हैं, कंटेंट में भी अंतर है, क्वालिटी में भी अंतर है। लेवल और कॉम्पिटिशन तो है ही। इसके अलावा आज के बच्चे पढ़ाई को लेकर मेहनत बहुत करते हैं। पेरेंट्स को कहेंगे– जीयो और जीने दो
राजित की मां श्रुति से सवाल किया कि कई बार ऐसी बात सामने आती है कि पेरेंट्स का दबाव बच्चों पर होता है, पेरेंट्स को क्या संदेश देंगे तो उनका कहना था- यही की जीयो और जीने दो। हर बच्चे की अपनी क्वालिटी होती है। माता-पिता और बच्चे के बीच में संवाद जरूरी है। बच्चा आईआईटी या डॉक्टरी नहीं करेगा तो जीवन में कुछ और करेगा। न तो बच्चों को पढ़ाई को लेकर कमेंट्स पास करने चाहिए न कभी दबाव बनाना चाहिए। राजित अब आईआईटी मुंबई में सीएस ब्रांच में एडमिशन लेना चाहता है। अब पढ़िए सक्षम की सफलता की कहानी… बनना था क्रिकेटर, कोविड की वजह से जेईई की तरफ दिया ध्यान
जेईई एडवांस्ड में देश भर में दूसरी रैंक हासिल करने वाले सक्षम हरियाणा के हिसार के रहने वाले हैं। सक्षम पहले क्रिकेटर बनना चाहता था, लेकिन कोरोना के दौरान प्रैक्टिस छूट गई और ध्यान पढ़ाई पर केंद्रित हो गया। सक्षम क्रिकेट में अंडर 14 डिस्ट्रिक्ट लेवल पर खेल चुका है। क्रिकेट में करियर बनाने के सवाल पर सक्षम ने बताया कि मैं इस फील्ड में जाना चाहता था। कोविड के दौरान प्रैक्टिस बंद हो गई। फिर मेरा फोकस पूरी तरह से पढ़ाई पर हो गया था। वीकली टेस्ट, डाउट साल्विंग से मिली सक्सेस
सक्षम ने कहा– जेईई जैसी प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी निश्चित ही चुनौतीपूर्ण होती है। कोटा का चयन और कोचिंग से जेईई की तैयारी करना मेरे करियर के लिए टर्निंग पॉइंट साबित हुआ। वह पिछले 2 साल से कोटा में रहकर जेईई की तैयारी कर रहा था। सक्षम ने इससे पहले 10वीं कक्षा 98 प्रतिशत नंबर से पास की है। इसी साल उसने जेईई एडवांस्ड क्रेक करने के साथ-साथ 12वीं कक्षा भी 96.4 प्रतिशत अंकों से पास की है। उसने जेईई मेन जनवरी में 100 पर्सेंटाइल स्कोर किए थे। जेईई मेन अप्रैल सेशन में भी ऑल इंडिया रैंक 10 हासिल की थी। घर में माता–पिता डॉक्टर, बेटा बनेगा इंजीनियर
सक्षम के पिता डॉ. उमेश जिंदल पैथोलॉजिस्ट हैं और मां डॉ. अनीता जिंदल फिजियोथैरेपिस्ट है। घर में माता-पिता डॉक्टर होने के बाद भी इंजीनियरिंग क्यों चुनी इस सवाल पर सक्षम ने कहा कि मेरा इंटरेस्ट शुरू से मैथ्स में रहा है। माता–पिता ने हमेशा मुझे फ्रीडम दी। उन्होंने मुझे वही करने दिया जिसमें मेरा मन है। उनकी वजह से ही मैं बिना किसी दबाव के पढ़ सका और सही वजह है कि मैं जेईई एडवांस्ड में इतनी बड़ी सफलता हासिल कर सका। मैथ्स शुरू से मेरा फेवरेट सब्जेक्ट रहा है, इसलिए इसमें ही करियर बनाने का सोचा। आईआईटी मुंबई में जाने का सपना था जो कि अब साकार होने जा रहा है। पढ़ाई के दौरान ही करता था एग्जाम की तैयारी
सक्षम ने बताया कि जेईई एडवांस्ड का एग्जाम टफ होता है। ऐसे में पढ़ाई के दौरान ही मैं एग्जाम हॉल में बैठने की प्रैक्टिस भी करता था। 3 घंटे रेगुलर बैठकर मैं प्रैक्टिस करता था। ताकि एग्जाम के दिन मुझे कोई दिक्कत न आए। डाउट कभी मैंने अपने तक नहीं रखें। पढ़ाई के दौरान मोबाइल बिल्कुल स्विच ऑफ रहता था। मेरी सक्सेस में कोचिंग के साथ कोटा के माहौल का भी पूरी सहयोग है। यहां हर कोई एक-दूसरे को सक्सेस प्राप्त करने के लिए इंस्पायर करता है और यहां हेल्दी कॉम्पिटिशन भी है। मेरी पूरी कोशिश रहती थी कि हर चैप्टर को गहराई से समझूं। सवालों की प्रैक्टिस बार-बार करता था। इससे कॉन्फिडेंस मजबूत हुआ। जेईई मेन में एनसीईआरटी सिलेबस के अलावा अन्य किसी रेफरेंस बुक या मेटेरियल की जरूरत नहीं होती। वीकली टेस्ट से परफॉर्मेंस में सुधार आता गया और नियमित डाउट सॉल्विंग होने से टॉपिक्स पर पकड़ मजबूत होती चली गई। कई बार जब पढ़ाई के दौरान मेरी परफॉर्मेंस डगमगाने लगती तो मेंटर्स और फैकल्टीज मुझे मोटिवेट करते। यह निरंतर सपोर्ट मेरे लिए बेहद जरूरी था। इसने मेरी सोच को पॉजिटिव बनाए रखा।