सरिस्का: विधिक सेवा प्राधिकरण ने सरिस्का में सुविधाएं देने के लिए एसीएस को भेजा पत्र

भास्कर न्यूज | अलवर सरिस्का टाइगर रिजर्व के घने जंगलों के बीच बसे राजोरगढ़ पंचायत के गांवों में लोग आज भी आदिम युग जैसी जिंदगी जीने को मजबूर हैं। न बिजली, न सड़क, न इलाज की सुविधा। विस्थापन की राह भी अधूरी। लेकिन अब इन गांवों की सुनवाई शुरू हुई है। जिला विधिक सेवा प्राधिकरण, अलवर के सचिव मोहन लाल सोनी ने ग्रामीणों की समस्याओं पर तुरंत ध्यान दिया और उप वन संरक्षक (विस्थापन) जगदीश प्रसाद दैया से रिपोर्ट मंगवाकर सरिस्का का नक्शा मंगवाया। दोनों ने क्षेत्रीय हालात का गहन अवलोकन कर समाधान की दिशा में रणनीति बनाई। इसके बाद कलेक्टर, वन विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों, जयपुर स्थित पीसीसीएफ और एसीएस को पत्र भेजकर या तो विस्थापन को अंजाम तक पहुंचाने या गांवों को बुनियादी सुविधाएं देने की मांग की है। बचे हैं जंगल, छूट गई ज़रूरतें : राजोरगढ़ पंचायत के गुवाड़ा भगानी, कांकवाड़ी, कान्यावास, राजौर और मित्रावट जैसे गांव सरिस्का के क्रिटिकल टाइगर हैबिटेट क्षेत्र में आते हैं। यहां के लोगों ने बताया कि आजादी के 75 साल बाद भी उनके गांव में मोबाइल नेटवर्क नहीं आता, एंबुलेंस पहुंच नहीं पाती और बच्चों की ऑनलाइन पढ़ाई सपना बन चुकी है। वे कहते हैं, "हम 21वीं सदी में नहीं, किसी भूले-बिसरे युग में जी रहे हैं। विस्थापन की भी उलझी राह सरकारी योजना के अनुसार, सरिस्का क्षेत्र के 29 गांवों को विस्थापित किया जाना था, लेकिन 13 साल में महज़ 5 गांव ही पूरी तरह हटाए जा सके हैं। राजोरगढ़ आज भी उस सूची में इंतज़ार कर रहा है। वन विभाग कहता है, विस्थापन स्वैच्छिक है और यह जमीन और बजट की उपलब्धता पर निर्भर करता है। दूसरी ओर, कुछ ग्रामीण जानबूझकर इंतजार कर रहे हैं ताकि परिवार के नाबालिग बच्चे बालिग हो जाएं और उन्हें ज्यादा मुआवजा मिल सके। पहले सरकार ने 10 लाख रुपये का मुआवजा पैकेज दिया था, जिसे अब 15 लाख कर दिया गया है। एक अन्य योजना के तहत 6 बीघा भूमि भी देने का विकल्प मौजूद है, लेकिन प्रक्रिया धीमी है। मोहन लाल सोनी की पहल से गांवों को फिर उम्मीद बंधी है। उनकी ओर से की गई कार्रवाई अब राज्य स्तर तक पहुंच चुकी है। विधिक सेवा प्राधिकरण ने आश्वासन दिया है कि इस मुद्दे पर नियमित निगरानी रखी जाएगी। जल्द ठोस समाधान के लिए दबाव बनाया जाएगा।