राजस्थान के डूंगरा बड़ा में बदलाव:गांव में 100 डॉक्टर और 60 शिक्षक, 30 से ऊपर की हर बेटी-बहू ग्रेजुएट है

राजस्थान के आदिवासी बहुल बांसवाड़ा जिले के डूंगरा बड़ा गांव के हर तीसरे घर में एक डॉक्टर रहता है। गांव के करीब 320 घरों में 100 डॉक्टर हैं और हर साल गांव के 4 से 5 छात्रों का एमबीबीएस में एडमिशन हाेता है। 2 छात्र मुंबई और जोधपुर आईआईटी में पढ़ रहे हैं। हर साल 8 से 10 बच्चों का नवोदय स्कूल में एडमिशन होता है। एक लड़की सैनिक स्कूल के लिए चयनित हुई। गांव में 1 आरएएस, 25 इंजीनियर हैं। 10-15 बुजुर्गों को छोड़ दें तो पूरा गांव शिक्षित है। 30 साल तक की गांव की हर बेटी और बहू ग्रेजुएट है। खास बात यह है कि डॉक्टरों के गांव के तौर पर जाने जाने वाले इस गांव के तमाम लोग चाहे शहर चले गए हों, लेकिन उन्होंने गांव नहीं छोड़ा है। वे अपनी जड़ों से जुड़े हुए हैं। गांव का हर परिवार अभी भी खेती करता है। डॉक्टर, टीचर, प्रिंसिपल, पुलिसकर्मी, वकील जो गांव में रहते हैं या छुटि्टयों में गांव आते हैं तो हल जोतते, खेतों की मेड़ पर फावड़े-गेती से खुदाई करते, खेतों की साफ-सफाई करते या गाय-भैंस का दूध निकालते हुए नजर आ जाते हैं। गांव के आधे से ज्यादा घरों में पशुपालन हाेता है। गांव अपनी दूध की जरूरत खुद पूरा करता है, लेकिन कम बारिश की वजह से गांव पर्याप्त उपज नहीं होती थी। शेष | पेज 4 इसलिए कई लोग रोजगार के लिए गुजरात और मध्य प्रदेश पलायन कर गए थे। अब धीरे-धीरे गांव में पलायन न के बराबर रह गया है। गांव में जिन घरों में कोई बड़े पद पर नहीं है, उन घरों के लोग भी गांव में ही स्वरोजगार करने लगे हैं। गांव के 300 युवा प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे हैं। प्रोफेसर बने 4 युवाओं ने लिखी बदलाव की कहानी गांव के 84 साल के बुजुर्ग कांतिलाल दांतला कहते हैं- गांव में बदलाव की शुरुआत साल 1975 से शुरू हुई, जब गांव के ही 4 युवा पृथ्वी सिंह दांतला, खुशाल सिंह दांतला, स्व. पृथ्वी सिंह हड़कसी और पन्ना लाल डांगर कॉलेज में प्रोफेसर बने। इन चारों ने गांव के बच्चों को पढ़ाना शुरू किया। उन्हें तरक्की के सपने दिखाए और उन्हें पूरा करने के लिए रास्ते बताए। उन्हें पढ़ाई के तरीके बताने लगे और साथ ही उनकी गतिविधियों पर निगरानी रखना भी शुरू किया। प्रतियोगी परीक्षाओं और नौकरियों के बारे में सही गाइडेंस देने लगे। पहले कुछ युवा जुड़े, धीरे-धीरे और युवा जुड़ते गए। इससे गांव में पढ़ाई का माहौल बन गया। आज के युवा यूपीएससी, आरएएस सरीखी एडमिनिस्ट्रेटिव सेवा और आईआईटी की तैयारी भी कर रहे हैं। छोटे बच्चों के लिए सैनिक स्कूल और नवोदय विद्यालय में प्रवेश के लिए पढ़ाई पर फोकस किया जा रहा है। कोशिश रहती है कि गांव के ज्यादा से ज्यादा युवा इन स्कूलों में ही पढ़ें। डूंगरा बड़ा में आए बदलाव का असर आसपास के कई गांवों छोटा डूंगरा, बावड़ी पाड़ा, मस्का, हरेंद्रगढ़ और सोमजी पाड़ा में भी दिखने लगा है। वहां भी पढ़ाई का माहौल बन रहा है।