चित्तौड़गढ़ में 27 को मनाई जाएगी महाराज शक्तिसिंह जयंती:इंदिरा प्रियदर्शनी ऑडिटोरियम में होगा कार्यक्रम, प्रतिभाओं को होगा सम्मान

चित्तौड़गढ़ में 27 को मनाई जाएगी महाराज शक्तिसिंह जयंती:इंदिरा प्रियदर्शनी ऑडिटोरियम में होगा कार्यक्रम, प्रतिभाओं को होगा सम्मान
वीर शिरोमणी महाराणा प्रताप के छोटे भाई महाराज शक्तिसिंह की जयंती 27 मई को चित्तौड़गढ़ में मनाई जाएगी। यह आयोजन इंदिरा गांधी प्रियदर्शिनी ऑडिटोरियम में शाम 5 बजे शुरू होगा। पूर्व विधायक रणधीरसिंह भींडर ने बताया कि हिन्दू पंचांग के अनुसार महाराणा प्रताप और महाराज शक्तिसिंह दोनों का जन्म "ज्येष्ठ शुक्ला तृतीया" को हुआ था। हालांकि महाराज शक्तिसिंह का जन्म दो साल बाद 1542 में हुआ था। इसलिए यह फैसला लिया गया कि उनकी जयंती तिथि के हिसाब से नहीं बल्कि अंग्रेजी तारीख के हिसाब से 27 मई को मनाई जाए, जिससे महाराणा प्रताप की जयंती कार्यक्रम में भी सभी शामिल हो सकें। भिंडर ने बताया कि वे शक्तिसिंह के 19वीं पीढ़ी के वंशज हैं। जयपुर ग्रामीण के सांसद होंगे मुख्य अतिथि समारोह में मुख्य अतिथि जयपुर ग्रामीण सांसद राव राजेंद्र सिंह शाहपुरा होंगे, जबकि अध्यक्षता वल्लभनगर के पूर्व विधायक रणधीर सिंह भींडर करेंगे। आयोजन महाराज शक्ति सिंह स्मारक समिति और प्रताप शक्ति सेवा संस्थान के संयुक्त तत्वावधान में होगा। राजस्थान, एमपी, हरियाणा से आएंगे क्षत्रिय समाज समारोह में राजस्थान, मध्यप्रदेश और हरियाणा से महाराज शक्तिसिंह के वंशजों के विभिन्न ठिकानों से शक्तावत सरदार और क्षत्रिय समाज के लोग शामिल होंगे। इसके अलावा मेवाड़ के तमाम सामाजिक संगठनों के प्रतिनिधि भी इस कार्यक्रम का हिस्सा बनेंगे। प्रोग्राम में होगा प्रतिभा सम्मान इस अवसर पर विभिन्न क्षेत्रों में उत्कृष्ट प्रदर्शन करने वाली प्रतिभाओं को भी सम्मानित किया जाएगा। जानकारी देने के दौरान जौहर स्मृति संस्थान के अध्यक्ष राव नरेंद्रसिंह विजयपुर, लक्ष्मणसिंह खोर, हर्षवर्धनसिंह रुद, ऋतुराजसिंह ओछड़ी, शिवराजसिंह घटियावली, ऋषिराजसिंह विजयपुर, वैभव प्रताप सिंह पांसल, अरविंदसिंह खोडियाखेड़ा, भानुप्रतापसिंह नाहरगढ़, विजयराजसिंह रुद, दिलीपसिंह रुद, हिम्मतसिंह रठांजना, ऋषिराजसिंह नाहरगढ़ आदि गणमान्य लोग भी मौजूद रहे। महाराज शक्तिसिंह का ऐतिहासिक योगदान, बड़े भाई की थी मदद रणधीरसिंह भींडर ने बताया कि महाराज शक्तिसिंह का मेवाड़ के इतिहास में विशेष योगदान रहा है। 1567-68 में जब अकबर ने चित्तौड़ पर हमला किया था, तब उन्होंने सबसे पहले यह सूचना महाराणा उदयसिंह तक पहुंचाई, जिससे मेवाड़ का राजपरिवार सुरक्षित बच पाया। हल्दीघाटी युद्ध 1576 में उन्होंने महाराणा प्रताप का पीछा कर रहे मुगल सैनिकों को मारकर प्रताप की रक्षा की और अपना घोड़ा देकर उन्हें युद्ध क्षेत्र से सुरक्षित निकलने में मदद की। इस योगदान के लिए महाराणा प्रताप ने उन्हें और उनके वंशजों को “राणावल्लभ” की उपाधि दी, जिसका अर्थ होता है “राणा का प्रिय”। महाराज शक्तिसिंह के 17 पुत्र थे, जिनमें से 8-10 पुत्रों ने मेवाड़ की रक्षार्थ युद्धों में बलिदान दिया। चित्तौड़ जिले के विजयपुर, ओछड़ी, खोर, घटियावली, रुद जैसे कई गांवों में आज भी शक्तावत परिवार के ठिकाने मौजूद हैं। शक्तावत परिवार के ज्यादातर ठिकाने चित्तौड़गढ़ जिले में हैं। इसलिए इस बार यही पर आयोजन करने का विचार किया गया। महाराज शक्तिसिंह का चित्तौड़गढ़ से गहरा संबंध रहा है। उनकी समाधि इसी जिले में स्थित है और उनके पुत्र भानजी का राजतिलक भी यहीं हुआ था। वर्षों पहले भी उनकी जयंती मनाई जाती थी, लेकिन अब इसे भव्य रूप देने की कोशिश की जा रही है। राणा पूंजा और पूंजा भील में अंतर, विवाद को लेकर दिया बयान रणधीरसिंह भींडर ने स्पष्ट किया कि राणा पूंजा और पूंजा भील दो अलग-अलग व्यक्ति थे। राणा पूंजा सोलंकी पानरवा के जागीरदार थे, जबकि पूंजा भील खेता के पुत्र थे। दोनों के नाम समान होने के कारण कई बार भ्रम की स्थिति बन जाती है और विवाद शुरू हो गया। हर साल नए स्थान पर होगा आयोजन रणधीरसिंह भींडर ने बताया कि इस आयोजन को हर साल अलग-अलग स्थानों पर किया जाएगा ताकि महाराज शक्तिसिंह के योगदान को ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचाया जा सके।