आरजीएचएस राजस्थान ‘गबन’ हेल्थ स्कीम पार्ट-1:रिपोर्टर ने सीने में दर्द बताया तो दो अस्पतालों ने RGHS में 28 जांचें कीं, सब नॉर्मल... फिर भी 7 दिन रखा भर्ती

आरजीएचएस राजस्थान ‘गबन’ हेल्थ स्कीम पार्ट-1:रिपोर्टर ने सीने में दर्द बताया तो दो अस्पतालों ने RGHS में 28 जांचें कीं, सब नॉर्मल... फिर भी 7 दिन रखा भर्ती
राजस्थान गवर्नमेंट हेल्थ स्कीम (आरजीएचएस) अस्पतालों, मेडिकल स्टोर और कर्मचारियों के लिए भ्रष्टाचार का अड्डा बन गई है। इसी कारण पिछले चार साल में ही इस पर खर्च 3744 करोड़ बढ़ गया है। हाल ये है कि इसे ‘राजस्थान गबन हेल्थ स्कीम’ कहा जाने लगा है। करीब 60 लाख कर्मचारियों, पेंशनर्स व उनके आश्रितों को हेल्थ कवर देने वाली स्कीम में अंधाधुंध बढ़ते खर्च की हकीकत भास्कर ने जानी। रिपोर्टर सीने में दर्द व घबराहट की शिकायत बताकर जयपुर के दो निजी अस्पतालों में दिखाने गए। आगरा रोड के दीपसिया हॉस्पिटल में एमडी (मेडिसिन) डॉ. अभिषेक शर्मा और प्रताप नगर के उर्मिल हॉस्पिटल में चेस्ट फिजीशियन डॉ. संजीव गुप्ता ने ब्लड प्रेशर जांचने और ईसीजी जांच लिखी। दोनों की रिपोर्ट सामान्य आईं। ट्रॉप-टी टेस्ट की रिपोर्ट भी निगेटिव रही। फिर भी दोनों जगह भर्ती कर लिया। पहले ही दिन किए 2डी ईको टेस्ट भी सामान्य निकले... डिस्चार्ज फिर भी नहीं किया। दीपसिया हॉस्पिटल ने रिकॉर्ड में बुखार व उल्टी दिखा 16 से 19 मई तक भर्ती रखा तो उर्मिल हॉस्पिटल ने निमोनिया बता 25 से 27 मई तक एडमिट किया। रिपोर्टर को कोई बीमारी नहीं थी, लेकिन बिना मापे पर्ची पर 101 डिग्री बुखार लिख दिया गया। बिना बीमारी ट्रीटमेंट भी दे दिया। दोनों अस्पतालों ने आरजीएचएस में 30 हजार रुपए के बिल क्लेम कर लिए हैं। रोज घर भेजा लेकिन कमरे का एक दिन का किराया 2 हजार रु. वसूला दोनों अस्पतालों ने सेमीडीलक्स कमरे में भर्ती बताकर आरजीएचएस में 2 हजार रुपए प्रतिदिन के हिसाब से बिल क्लेम किया, लेकिन इनमें रखा 1 मिनट भी नहीं। दीपसिया हॉस्पिटल ने 4 दिन में मात्र 6 घंटे के लिए बेड दिया। वो भी जनरल वार्ड में। पहले दिन इमरजेंसी में इंजेक्शन लगाकर नर्सिंग स्टाफ बोला- बेड खाली नहीं है, सुबह आ जाना। अगले 3 दिन भी यही सिलसिला चला। उर्मिल हॉस्पिटल ने भी रात को घर भेज दिया। दोनों अस्पतालों ने क्लेम के साथ रिपोर्टर के दस्तखत किए हुए फीडबैक फॉर्म भी अपलोड किए हैं। इनमें हॉस्पिटल में आरजीएचएस से जुड़ी व्यवस्थाओं को ‘बहुत अच्छा’ बताया गया है। बीपी सामान्य होने पर भी दीपसिया हॉस्पिटल में कम करने की दवा इंडेरल-10 दी। इसे खाने से 17 मई काे रिपोर्टर को वॉशरूम में चक्कर आ गए और वह गिर गए। इससे उनके सिर में चोटें आईं। बिना बीमारी लगातार एंटीबायोटिक, एंटीएमेटिक और पेरासिटामोल के इंजेक्शन भी लगाए गए। इनका भी रिएक्शन हो सकता था। हालांकि, एक दिन भी बीपी या बुखार चेक नहीं किया, लेकिन क्लेम के रिकॉर्ड में 38 बार ऐसा करना बताया है। दोनों अस्पतालाें ने बिल बढ़ाने के लिए किडनी फंक्शन टेस्ट, लिवर फंक्शन टेस्ट, थायराइड टेस्ट, प्रोकैल्सीटोनिन टेस्ट, मलेरिया, विटामिन बी-12 और डी-3 जैसे गैर जरूरी टेस्ट किए। एक्सपर्ट के मुताबिक- सीने में दर्द की शिकायत पर ये टेस्ट जरूरी नहीं हैं। उर्मिल हॉस्पिटल ने ओपीडी की जांचों को ही आईपीडी में अपलोड कर दिया। दीपसिया में एडमिट पर्ची नर्सिंग स्टाफ दीनदयाल ने तैयार की। डॉक्टर के हस्ताक्षर भी उसी ने कर दिए। एक्सपर्ट- टेस्ट नॉर्मल तो एडमिट करना गलत "सीने में दर्द और घबराहट होने पर बीपी चेक किया जाता है और ईसीजी की जाती है। दोनों नॉर्मल हैं तो ट्रॉप टी और 2डी ईको टेस्ट किए जा सकते हैं। संतुष्टि के लिए ज्यादा से ज्यादा ट्रेडमिल टेस्ट (टीएमटी) किया जा सकता है। भर्ती करने का तो कोई भी तुक नहीं बनता।" -डॉ. दीपक माहेश्वरी, प्रिंसिपल, एसएमएस मेडिकल कॉलेज