आग उगलती गर्मी, लेकिन रोज नहाना मना है!:पीने के लिए घंटों इंतजार के बाद मिलता है खारा पानी, 85 परिवारों ने छोड़ा गांव

आग उगलती गर्मी, लेकिन रोज नहाना मना है!:पीने के लिए घंटों इंतजार के बाद मिलता है खारा पानी, 85 परिवारों ने छोड़ा गांव
सोचिए! आग उगलती गर्मी, लेकिन ठंडे पानी से आप हलक तर नहीं कर सकते। तेज धूप के कारण शरीर पसीना-पसीना , लेकिन रोज नहा नहीं सकते। लू के थपेड़ों से भभकता कमरा, लेकिन कूलर चलाकर उसे ठंडा नहीं कर सकते। ये हकीकत है राजस्थान या भारत ही नहीं, दुनिया के सबसे गर्म इलाकों में शामिल बाड़मेर के सरहदी गांव तारीसरा की। क्योंकि यहां पानी की किल्लत है। किल्लत ऐसी कि मीठा पानी तो है नहीं खारा पानी भी बूंद-बूंद कर सहेजना पड़ता है। पढ़िए पूरी रिपोर्ट… तारीसरा को सरहदी गांव कहते हैं। सरहदी इसलिए, क्योंकि बाड़मेर से 150 किमी दूर इस गांव के एक तरफ है पाकिस्तान बॉर्डर और दूसरी तरफ गुजरात बॉर्डर। भास्कर टीम यहां पहुंची तो आधे से ज्यादा मकान खंडहरनुमा नजर आए। कुछ मकानों के बाहर ताला था, तो कुछ ऐसे ही खाली पडे़ थे। घरों के बाहर आळे में देवताओं की प्रतिमा थी, लेकिन कोई दीये जलाने वाला नहीं। वजह-पानी की किल्लत के कारण गुजरात पलायन। कभी यहां 100 से ज्यादा परिवार रहते थे। अब महज 15-20 बचे हैं। पानी के लिए दो गांवों के बीच एक बेरी बनी हुई है। उसमें भी खारा पानी आता है। गांव के लोगों के पास खेती है नहीं, उसके लिए बारिश पर निर्भर रहना पड़ता है। उसमें भी पशुओं के लिए चारे की ही व्यवस्था हो पाती थी। बातचीत में सामने आया ग्रामीणों का गुस्सा बचपन से खारा पानी ही पीया : गांव में थोड़ा आगे गए तो हरीश चारण मिले। हरीश ने बताया-26 साल का हो गया। बचपन से खारा पानी ही पीया है। मीठा पानी तो यहां कभी पहुंचा ही नहीं। हमारे बड़ों ने भी जिंदगी भर यही दिक्कत देखी। पानी का टैंकर भी डलवाएं तो कितना चलेगा? बार-बार टैंकर मंगवाने का भी खर्चा है। गर्मियों में तो दो हजार रुपए में टैंकर आता है। एक टैंकर टांके में डलवाओ तो दस दिन तक चल जाता है। फिर से दोबारा टैंकर बुलवाओ। यहां खेती किसानी तो है नहीं, लोग मजदूरी करते हैं। दस बारह हजार रुपए की कमाई होती है। उसमें भी पांच छह हजार पानी में लगा दे? स्कूल हो न हो, कम से कम पानी तो मिले : पानी की किल्लत का गुस्सा सैणीदान चारण की बातचीत में साफ दिख रहा था। बोले- गांव में आने के लिए सड़क है, वह भी आधी अधूरी। बच्चों के लिए कोई स्कूल नहीं है। बच्चे पढे़ या नहीं पढे़, लेकिन पानी तो चाहिए न। अपने बच्चों को कौन खारा पानी पिलाना चाहता है? नहीं हो पा रही गांव के लड़कों की शादी : हरीदान बोले- पानी की किल्लत के कारण गांव के लड़कों की शादी में भी दिक्कत आ रही है। अब यहां जब पीने का ही पानी नहीं तो बेटी कौन दे। इसलिए लोगों को यहां से मजदूरी करने के लिए गुजरात जाना पड़ रहा है। तीन किलोमीटर की दूरी पर नहर, फिर भी तरस रहा गांव तारीसरा गांव से तीन किलोमीटर दूर ही नहरी परियोजना की वितरिका है। इस वितरिका में सर्दियों में कभी कभार पानी आता है। इससे बावरवाला गांव के लोगों को तो कुछ समय के लिए पीने का मीठा पानी मिल जाता है, लेकिन तारीसरा तक ये पानी नहीं पहुंच पाता। गांव के बुजुर्ग सांवरमल कहते हैं- बारिश के समय यहां पानी दिखता है। अगर नहर से यहां गांव तक पानी पहुंचाने का सरकार काम कर दे तो समस्या दूर हो जाए। इस वजह से खारा है तारीसरा का पानी गांव के एक तरफ भारत-पाकिस्तान बॉर्डर तो दूसरी तरफ गुजरात बॉर्डर है। एक तरफ से यह गांव थार के रेगिस्तान से घिरा हुआ है तो दूसरी तरफ कच्छ का रण। जहां की हवा में नमक घुला हुआ है। इस वजह से गांव के भूजल में भी खारापन है। यहां पर बेरियों में जो प्राकृतिक भूजल आता है, वह भी खारा ही निकलता है। गांव में एक पानी की टंकी तो बनी है, लेकिन इसमें आज तक पानी नहीं आया। यह भी जर्जर हालत में हो चुकी है। चंदासनी गांव : बेरी में भी खारा पानी यही स्थिति चंदासनी गांव की भी है। गांव में मीठे पानी का कोई साधन नहीं होने से रोजमर्रा के काम और पीने के पानी के लिए लोग बेरी के खारे पानी पर ही निर्भर है। बेरी की आखिरी छोर पर केवल एक से दो फीट तक ही पानी आता है। उसका भी कोई समय नहीं है। सुबह 7 बजे पानी ऊपर आता है, तब महिलाएं पानी भरने के लिए बेरी पर जाती है। कुछ ही देर में पानी फिर खत्म हो जाता है। इसके बाद तीन चार घंटे इंतजार करना पड़ता है। दो मटकों को भरने के लिए भी घंटों इंतजार करना पड़ता है। अकली गांव : पानी के लिए घंटों इंतजार पानी की ये समस्या बॉर्डर से लगते कई गांवों की है। इनमें से ही एक है, अकली गांव। अकली में पानी के लिए लोग बेरियों पर ही निर्भर रहते हैं। बेरियों से पानी के लिए घंटों इंतजार करना पड़ता है। हालांकि अब यहां नर्मदा परियोजना से पानी पहुंचना शुरू हुआ है, लेकिन अब भी कई स्थानों पर बेरियों से ही पानी लोगों को भरना पड़ता है। बछिया गांव : 600 की आबादी में ज्यादातर का पलायन रेगिस्तान के बीच ही बसे बछिया गांव में भी यही समस्या है। गर्मियों के दिनों में पानी के लिए भटकना पड़ता है। गांव में 600 की आबादी थी, जिसमें से ज्यादातर गांव छोड़कर जा चुके हैं। इस गांव में पानी के लिए एक ही स्थान गेराब है, जो गांव से 25 किमी दूरी पर है। ऐसे में या तो रुपए देकर टैंकर मंगवाने पड़ते है या फिर 25 किलोमीटर का सफर करना पड़ता है। गांव के पार रण की शुरुआत, इसलिए खारा पानी एरिया में एक्सईएन रह चुके दीपाराम मेघवाल ने बताया कि यह गांव रण के बिल्कुल नजदीक है, इस वजह से पानी खारा है। इसी गांव से कुछ किलोमीटर दूरी पर मीठे पानी का ट्यूबवेल भी है, लेकिन दूरी की वजह से लोगों को पानी के लिए दिक्कत होती ही है। गांव में पानी नहीं है, यह बात सही है। इसके लिए परियोजना पर काम कर रहे हैं। बॉर्डर एरिया में नर्मदा या इंदिरा गांधी नहर से ही पानी का जरिया है। आकली गांव में पानी नर्मदा का पहुंचा है। सेडुआ के कई गांवों के लिए काम किया जा रहा है। जेजेएम मिशन के जरिए ही पानी दिया जाएगा। इसके लिए काम हो रहा है, दो-तीन साल में यहां तक भी पानी पहुंचा दिया जाएगा। ........................... सरहदी इलाकों में गर्मी से जुड़ी ये खबर भी पढ़ें... 45 डिग्री में नाकाबंदी, पुलिसकर्मियों की वर्दी के रंग उड़े:बाड़मेर में दोपहर में फैक्ट्रियों में 'लॉकडाउन', पांच घंटे नहीं होता काम, गायों के लिए एसी-कूलर दुनिया के सबसे गर्म शहरों में शुमार रहने वाला बाड़मेर। यहां बॉर्डर इलाकों में गर्मियों में तापमान 46° से 51°C तक पहुंच जाता है। अप्रैल में ही गर्मी के रिकॉर्ड टूटने शुरू हो जाते हैं। सूरज की तपिश से रेगिस्तान की मिट्टी से आग बरसने लगती है। पढ़ें पूरी खबर...