अनूठा पर्यावरण प्रेम:नवल ने पर्यावरण संरक्षण पर लिखी 556 किताबें, पत्नी शारदा कोएनिवर्सरी पर गिफ्ट करेंगे पौधों की खूबियों से सजी 64 साड़ियां

1100 वर्गगज जमीन पर बना चार मंजिला आशियाना आज पर्यावरण का अद्भुत संसार बन चुका है। इस संसार को 50 साल की मेहनत से संजोने वाले बुजुर्ग दंपती को अब इसके उजड़ने का डर सताने लगा है। इस घर के हर कोने में पर्यावरण संरक्षण की सीख और दुनिया की हर वस्तु को प्रकृति से जोड़ने का संदेश छिपा है। हम बात कर रहे हैं जयपुर के पर्यावरण प्रेमी नवल डागा की। 1977 में अपने पिता की मुहिम को आगे बढ़ाते हुए उन्होंने यह सफर शुरू किया। उनका विश्वास और संकल्प तब और प्रबल हुआ जब 1982 में उनकी शादी शारदा से हुई। जोधपुर के एक बड़े कारोबारी की बेटी शारदा जब पहली बार पति के जुनून से सजे इस घर में आईं, तो एक पल के लिए उनके पैरों तले जमीन खिसक गई। मालवीय नगर स्थित इस घर में न एसी है, न आधुनिक सुविधाएं। दरवाजे पर पानी पीते गोवंश और अंदर पक्षियों का कोलाहल गूंजता है। बाहर से पूरा घर जीवंती, गिलोई, रायबेल और मोगरे की बेलों से ढंका हुआ है। धूप भी छन-छन कर ही अंदर आती है। घर की हर टाइल पर वृक्ष बचाओ या वृक्षों के महत्व से जुड़े संदेश लिखे हुए हैं। पढ़ी-लिखी शारदा को इस घर की आत्मा को समझने में देर नहीं लगी और उन्होंने पति के संकल्प को मजबूती देने में खुद को समर्पित कर दिया। अब 64 वर्षीय शारदा से जब पूछा गया कि इस साल शादी की सालगिरह पर उनके पति क्या नया करने जा रहे हैं, तो मुस्कराते हुए बोलीं, ‘वो तो रोज कुछ नया करते हैं।’ इस साल दिसंबर में जब सालगिरह आएगी, तो नवल उन्हें पौधों की खूबियों से सजी 64 साड़ियां गिफ्ट करेंगे। हर साड़ी पर एक पेड़ की विशेषता को दर्शाया गया है। नीम के संदेश वाली साड़ी पहनकर शारदा भाव और उत्साह से बोलीं, ‘देखिए मेरी साड़ी! इसके हर कोने में नीम की खूबियों के दोहे लिखे हुए हैं।’ कोरोना से पहले ही उनकी कई जानकारियां लोगों तक पहुंच चुकी थीं। इसके बाद उन्होंने पर्यावरण संरक्षण का संदेश देने वाले दोहों से सजी 556 किताबें कपड़े पर तैयार कीं। साथ ही, पर्यावरण-संदेश लिए स्टूल, क्रॉकरी, कुशन, गमले, छाते, चादर, बेडशीट, पर्दे, ट्रे, बैग, रजाई सहित सैकड़ों उत्पाद बनाए। नवल डागा को उनके काम के लिए ‘वानिकी पंडित’ का अवॉर्ड भी मिल चुका है। वे चाहते हैं कि सरकार इस घर को म्यूजियम के रूप में संभाले, ताकि लोगों को उनका काम देखने और उससे सीखने का अवसर मिल सके। साथ ही उन्हें कहीं रहने की एक छोटी सी जगह मिल जाए, ताकि शेष जीवन सुकून से गुजार सकें। यही उनकी एकमात्र तमन्ना है।