15 दिन में काम पूरा नहीं हुआ तो होगी कार्रवाई:डोर-टू-डोर कचरा कलेक्शन करने वाली कंपनी नहीं लगा पाई जियो-फेंसिंग, नोटिस

15 दिन में काम पूरा नहीं हुआ तो होगी कार्रवाई:डोर-टू-डोर कचरा कलेक्शन करने वाली कंपनी नहीं लगा पाई जियो-फेंसिंग, नोटिस
ग्रेटर निगम के मानसरोवर जोन में डोर-टू-डोर कचरा कलेक्शन करने वाली कंपनी रवी ट्रैवल्स 21 वार्डों में जियो-फेंसिंग, वीटीएस और आरएफआईडी कार्ड से मॉनिटरिंग सिस्टम लागू करने में फेल हो गई है। कंपनी को जो काम 10 दिन में पूरा करना था उस काम को 114 दिन में भी पूरा नहीं कर पाई है। नतीजा मानसरोवर जोन के 21 वार्डों में डोट-टू-डोर कचरा कलेक्शन की मॉनिटरिंग नहीं हो पार रही है। फिर भी कंपनी अपना पूरा पेमेंट क्लेम कर रही है। मानसरोवर जोन की 22 और 27 मई को हुई बैठक में इस बात का खुलासा हुआ। इसके बाद मानसरोवर जोन डीसी ने 28 मई को नोटिस जारी करते हुए कंपनी को 15 दिन में काम पूरा करने का समय दिया। यदि 15 दिन में काम पूरा नहीं किया गया तो कंपनी पर कार्रवाई की जाएगी। इसके लिए निगम की ओर से किसी कंपनी को नियमानुसार 3 नोटिस देने होते है। मानसरोवर जोन; शिकायत पर भी नहीं हो रही कार्रवाई निगम सूत्रों की माने तो मॉनिटरिंग सिस्टम डवलप नहीं होने के कारण 21 वार्डों से आने वाली शिकायतों का निस्तारण नहीं हो पा रहा है, जबकि मुख्य सड़कों को छोड़ कर अंदर की गलियों में कचरा डिपो की संख्या बढ़ती जा रही है। क्योंकि ये ऐसे स्थान हैं, जहां पर जोन अधिकारी से लेकर मुख्यालय के अधिकारी नहीं जा पाते है। कंपनी को दिया गया नोटिस यदि 15 दिन में काम पूरा नहीं किया गया तो कंपनी पर कार्रवाई की जाएगी। इसके लिए निगम की ओर से किसी कंपनी को नियमानुसार 3 नोटिस देने होते है। कचरा कलेक्शन में भी फेल... रवी ट्रैवल्स को मानसरोवर के 21 वार्डों में डोर-टू-डोर कचरा कलेक्शन के लिए 28 जनवरी को करीब 38 लाख रुपए के टेंडर को 1.25 करोड़ में दिया था। इस नोटिस के आधार पर कंपनी शिकायतों के चलते कचरा कलेक्शन में फेल साबित हो रही है। क्योंकि मॉनिटरिंग सिस्टम को 10 दिन में डवलप किया जाना था, जो अब तक प्रभावी रूप से काम ही नहीं कर रहा है। जोन की दो बार हुई मीटिंग में जब अधिकारियों को इसके बारे में जानकारी लगी तो नोटिस जारी कर दिया। बतादें कि मानसरोवर जोन को रोल मॉडल बनाते हुए ईवी व्हीकल से कचरा कलेक्शन का पायलेट प्रोजेक्ट शुरू किया गया था, जिसे सफल करते हुए सबसे पहले ग्रेटर निगम में उसके बाद प्रदेश में जरूरत के हिसाब से लागू करना था, लेकिन अधिकारियों को लापरवाही के चलते ईवी का ये प्रोजेक्ट फेल हो गया।