नेताजी को अपशकुनी बंगले का डर:देश के मुखिया तक क्या फीडबैक पहुंचा? जूनियर के सामने हाथ जोड़कर खड़े हुए सीनियर मंत्री

भाग्य और शुभ-अशुभ को देखकर फैसला करने वालों की सियासत से लेकर ब्यूरोक्रेसी तक बड़ी तादाद है। शास्त्रों के जानकार तो कहते हैं कि राजसत्ता शुभ-अशुभ से परे होती है। वहां कोई चमत्कार नहीं चलता, लेकिन अपनी-अपनी मान्यताएं हैं। सत्ताधारी पार्टी के एक सात्विक नेता इन बातों को खूब मानते हैं। नेताजी को मंत्रियों की लेन में बंगला अलॉट हुआ। किसी शुभचिंतक ने बंगले को अशुभ ठहरा दिया। नेताजी को पुराने उदाहरण भी दिए कि यह बंगला पहले जिनके पास रहा उनकी तरक्की नहीं हुई। मंत्री बनने से वंचित रहे नेताजी के मन में अब बंगले के अपशकुनी होने का डर बैठ गया। सुना है, नेताजी ने मंत्रियों के बगल में होने के बावजूद बंगला बदलने को कहा है। जूनियर के काम बताते ही हाथ जोड़कर क्यों खड़े हुए सीनियर मंत्री?
राज में रहकर भी आपके सब काम हो जाएं, यह जरूरी नहीं होता। पिछले दिनों एक मंत्रीजी को इसका अहसास हुआ। पहली बार मंत्री बने नेताजी सीनियर मंत्री के पास अपने इलाके के कामों की लंबी-चौड़ी लिस्ट लेकर गए। काम सीनियर मंत्री के महकमे का ही था। सीनियर मंत्री ने जूनियर मंत्री को खूब इज्ज्त दी। जूनियर मंत्री ने अपने इलाके के कामों की लिस्ट दी। सीनियर ने हाथ जोड़ लिए और साफ कह दिया कि यह उनके बस की बात नहीं है। आप तो सबसे पावरफुल दफ्तर में जाकर ही ये कागज दीजिए, वहीं से कुछ हो सकता है। जूनियर मंत्री के पास दुखी होने के अलावा कोई चारा नहीं था। जब छोटे-छोटे काम विभाग का मुखिया नहीं कर सकता तो किसे गुहार लगाएं? जूनियर मंत्री ने किसी जगह यह दुख व्यक्त किया तो बात बाहर आ गई। देश के मुखिया तक क्या फीडबैक पहुंचा?
देश के मुखिया के प्रदेश दौरे को काफी समय हो चुका, लेकिन उस समय की कई बातों की रह रहकर चर्चा हो रही है। देश के मुखिया ने प्रदेश के पुलिस मुखिया और एक बड़े अफसर से चर्चा की थी। पुलिस के मुखिया तो भर्ती वाले आयोग के मुखिया बन गए। एक और बड़े अफसर से भी चर्चा हुई तो अब उसे लेकर भी अर्थ निकालने जाने लगे हैं। कुछ बड़े अफसरों में इसे लेकर डर-मिश्रित उत्सुकता है कि प्रदेश को लेकर क्या फीडबैक दिया है? अब बड़े लोगों की बातें इतनी जल्दी से डिकोड थोड़े ही होती हैं। उपमुखिया के इलाके में क्यों हारी सत्ताधारी पार्टी?
पिछले दिनों शहरी निकायों और पंचायतीराज के छोटे से उपचुनाव हुए, लेकिन कई नेताओं का पर्सेप्शन बना और बिगाड़ दिया। राजधानी से सटे एक पूर्व जिले की पंचायत समिति वार्ड के चुनावों में सत्ताधारी पार्टी का उम्मीदवार और उपमुखिया का रिश्तेदार हार गया। प्रदेश के उपमुखिया के निर्वाचन क्षेत्र में भले वार्ड की हार हुई, लेकिन विरोधियों को मौका मिल गया। उपमुखिया के समर्थक अब सफाई दे रहे हैं कि विपक्षी पार्टी के मुखिया भी तो अपने इलाके के शहरी निकाय का वार्ड नहीं बचा सके। तर्क कुछ भी दें लेकिन हार तो हार होती है और विरोधियों को बैठे बिठाए मौका मिल गया है। बड़े अफसर के दफ्तर के खिलाफ एसीबी पहुंचाए सबूत
सरकार के एक महकमे में पिछले दिनों भ्रष्टाचार रोकने वाली एजेंसी ने शेखावाटी के एक जिले में तैनात अफसर को पकड़ा। इस अफसर की जड़ें प्रदेश के सबसे बड़े दफ्तर तक बताई जा रही है। पिछले दिनों इस अफसर से सताए हुए गुट ने सबूतों के साथ दस्तावेज भ्रष्टाचार रोकने वाली एजेंसी को भेजे हैं। पकड़े गए अफसर का कनेक्शन महकमे के सबसे बड़े अफसर के दफ्तर तक बताया जा रहा है। सुना है, महकमे के मुखिया के दफ्तर में तैनात एक जूनियर से गठजोड़ कर रखा था। जूनियर भी पहुंचे हुए हैं। ट्रांसफर पोस्टिंग से लेकर सस्पेंशन तक के कामों में खूब चली है। भ्रष्टाचार रोकने वाली एजेंसी के कई सबूत हाथ लगे हैं। गलियारों तक में गठजोड़ की चर्चाएं होने लगी हैं। महकमे के मुखिया की छवि भले ही ईमानदार की हो, लेकिन दीया तले अंधेरा वाली कहावत चरितार्थ होने लगे तो बातें तो होंगी ही। मंत्री का जनता और कार्यकर्ताओं के लिए फीलगुड फाॅर्मूला
आजकल सत्ता की राजनीति करना आसान नहीं रह गया है। आप सत्ता में हों और मंत्री हों तो जनता की उम्मीदें आसमान पर होती हैं। यह भी सही है कि सबके काम करना लगभग असंभव हैं, लेकिन जनता और पार्टी कार्यकर्ताओं के काम नहीं करके भी उन्हें राजी रखना भी हर किसी के बस की बात नहीं है। पहली बार मंत्री बने नेताजी ने इसका तोड़ निकाल लिया है। उनके एक नजदीकी ने ही इस फाॅर्मूले का खुलासा किया। मंत्रीजी के बंगले पर काम लेकर आने वाले कार्यकर्ताओं को कुर्सी पर बैठाकर इज्जत देना और फिर फोटो खिंचवाकर फील गुड करवाना। अब इतनी इज्ज्तत मिल जाए तो लोग एक बार तो राजी हो ही जाते हैं। मंत्रीजी का यह फीलगुड फाॅर्मूला कितना कारगर हो पाता है, इसके रिजल्ट कुछ दिन बाद पता लगेंगे, क्योंकि बिना काम कुर्सी और फोटो से लंबे समय तक राजी रख पाना संभव नहीं है। सुनी-सुनाई में पिछले सप्ताह भी थे कई किस्से, पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
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