18 दिन किडनैपर्स के चंगुल में थीं ज्वेलर की पत्नी:मास्टरमाइंड लड़ चुका लोकसभा चुनाव, एक आरोपी पूर्व एमएलए का बेटा, एक इंजीनियर, पार्ट-2

राजस्थान क्राइम फाइल के पार्ट–1 में आपने पढ़ा कि सुमेधा दुर्लभजी का 6 फरवरी 2003 को अपहरण कर लिया गया। अपहरणकर्ता पीड़ित परिवार से ढाई करोड़ की फिरौती मांग रहे थे। सुमेधा दुर्लभजी अपहरण का ये मामला लगातार सुर्खियों में था। सुमेधा अभी भी अपहरणकर्ता के चंगुल में थी और पुलिस कार्रवाई पर सवाल उठ रहे थे। पीड़ित परिवार भी सुमेधा को वापस लाने के लिए अपहरणकर्ताओं को फिरौती देने को तैयार हो गया था। इधर, पुलिस पर उनकी सकुशल रिहाई के साथ ही अपहरणकर्ताओं की गिरफ्तारी का दबाव बढ़ रहा था। वारदात के कुछ दिनों बाद ही विधानसभा सत्र शुरू होना था। इस कारण राज्य सरकार भी चाहती थी कि सत्र से पहले ही मामले का सुखद अंत हो। अब पढ़िए आगे की कहानी… पुलिस जांच में सामने आया कि गिरोह करीब छह महीने पहले से रेकी कर रहा था। आरोपी रेकी के लिए जयपुर की 14 होटल में ठहरे। वे पहली बार सितंबर 2002 में आए थे। शहर की आरटीडीसी सहित कई नामी होटल में ठहरे। आरोपी रैकी के लिए 2 जनवरी 2003 को टूरिस्ट होटल, 4 जनवरी को ऐश्वर्या होटल, 8 जनवरी को राजपूताना होटल व 10 जनवरी 2003 को होटल चंद्रविलास में फर्जी नाम से ठहरे। अपहरण से दो दिन पहले 4 फरवरी को आरोपी होटल पोलोविक्ट्री में रुके। एफएसल जांच में आरोपियों की हैंडराइटिंग का होटल के रजिस्टर में दर्ज एंट्री से मिलान हुआ। अपहरणकर्ताओं के टारगेट पर जयपुर के 3 व्यवसायी व उनके परिजन थे। वे रेकी के लिए सेंट्रल पार्क जैसी जगहों पर वॉक के लिए जाते थे। जहां वे वॉक के लिए आने वाले व्यक्तियों की रेकी करते। इस दौरान बदमाश उनके ड्राइवर, गार्ड से नजदीकी बनाने में भी सफल रहे। इस दौरान जयपुर के एक नामी व्यापारी की तबीयत खराब हो गई। जिसके कारण वे सेंट्रल पार्क नहीं आ रहे थे। ऐसे में बदमाशों ने उनके अपहरण का प्लान कैंसिल कर सुमेधा दुर्लभजी पर नजर रखी। वे अलसुबह अकेली मॉर्निंग वॉक करती थी। बदमाशों ने उन्हें सॉफ्ट टारगेट मानकर अगवा किया। लावारिस कार अहम कड़ी साबित हुई बनीपार्क इलाके में लावारिस इंडिका कार के चेसिस नंबर से पुलिस को अहम जानकारी मिली। पुलिस को पता चला कि 14 दिसंबर 2002 को छत्तीसगढ़ के बिलासपुर से दो इंजीनियरों के अपहरण केस में इस कार का उपयोग किया। आरोपी उन्हें ओडिशा के राउरकेला ले गए। इस केस में पुलिस ने दोनों इंजीनियरों को मुक्त करा लिया गया था। इस कार्रवाई में गिरोह के उमेश सिंह को गिरफ्तार किया। उसने पुलिस के सामने गिरोह का राज उगल दिया। ये कार कभी बरामद नहीं हुई। इसे गिरोह का सदस्य राकेश सिंह अपने पास रखता था। पुलिस के लिए ये महत्वपूर्ण कड़ी साबित हुआ। दिल्ली पुलिस और खुफिया ब्यूरो ने राकेश सिंह की पहचान अजय सिंह गिरोह के सदस्य के रूप में की। कोटा अपहरण केस से मिली लीड तत्कालीन डीआईजी अजीत सिंह शेखावत ने बताया कि इस केस में जुटी जयपुर पुलिस टीम को करीब एक साल पहले कोटा से एक व्यापारी के बेटे के अपहरण मामले से अहम लीड मिली। हालांकि व्यापारी ने अपहरणकर्ताओं को फिरौती के 30 लाख रुपए देकर बेटे को छुड़ाया था। लेकिन पुलिस को जांच के दौरान अपहरणकर्ताओं के मोबाइल नंबर व उनसे बातचीत की रिकॉर्डिंग मिल गई थी। तत्कालीन माणकचौक सीओ सत्येन्द्र सिंह ने बताया कि पुलिस ने इन नंबरों की लोकेशन को ट्रेस किया तो एक नंबर आरोपी अजय सिंह के परिजनों का निकला। बातचीत व फिरौती मांगने का तरीका भी सुमेधा दुर्लभजी केस के समान होने पर पुलिस का शक यकीन में बदल गया कि दोनों वारदात एक ही गिरोह ने की है। दिल्ली पुलिस ने ट्रेस किया ठिकाना राजस्थान पुलिस का दिल्ली पुलिस ने भी पूरा सहयोग किया। दिल्ली पुलिस दुर्लभजी परिवार को किए जा रहे कॉल को ट्रेस कर रही थी। तत्कालीन डीआईजी अजीत सिंह शेखावत ने बताया कि अपहरणकर्ता अलग–अलग जगह और नंबरों से कॉल कर रहे थे। जिन पीसीओ से कॉल किए गए। वे सभी रेलवे स्टेशनों के पास मिले। कॉल करने का टाइम दिल्ली से आने वाली ट्रेन के समय के आस–पास ही होता था। ऐसे में बदमाशों के दिल्ली में कहीं छुपे होने की ज्यादा संभावना थी। पुलिस को चकमा देने के लिए आरोपी राजीव रंजन ने भोपाल जाकर रश्मिकांत दुर्लभजी को कॉल किया पुलिस ने मोबाइल फोन की लोकेशन को ट्रेस करते हुए उस जगह को ढूंंढ निकाला जहां सुमेधा को रखा गया। सीडीआर, मोबाइल ट्रैकिंग का इस्तेमाल पुलिस ने वारदात के दिन सुबह 6 बजे से 9 बजे तक घटनास्थल व जयपुर – दिल्ली हाईवे पर एक्टिव ओएसिस कंपनी के मोबाइल नंबरों की जानकारी जुटाई। ट्रेस किए गए एक मोबाइल फोन की लोकेशन दिल्ली के वसंत कुंज कॉलोनी के एक फ्लैट से आ रही थी। इस फ्लैट पर सुबह छापा मारा। फ्लैट से तीन अपहरणकर्ताओं अजय कुमार सिंह, अभय सिंह और राजीव रंजन को गिरफ्तार किया। इन्होंने यहां ये फ्लैट किराए पर ले रखा था। आरोपियों ने पूछताछ में बताया कि सुमेधा को फरीदाबाद में एक मकान में रखा है। पुलिस ने मकान में मौजूद बदमाशों की संख्या, हथियार व अन्य जानकारी जुटाई। अपहरणकर्ता की पत्नी व बेटे के साथ दाखिल हुई पुलिस सुमेधा का पता लगाना और गिरोह की पहचान करना सबसे चुनौतीपूर्ण था। दिल्ली व राजस्थान की एक टीम वसंत कुंज के फ्लैट पर नजर रखी हुई थी। संदिग्धों को बिना उनके साथियों को सतर्क किए पकड़ना था। जिससे सुमेधा को किसी तरह का खतरा न हो। एक दिन सुबह जब दो संदिग्ध बाहर निकले, तो पुलिस ने उनका पीछा किया और उन्हें पकड़ लिया। इस दौरान पुलिस को मुखबिर से सूचना मिली कि मास्टरमाइंड अजय की पत्नी अनीता सिंह अपने बेटे और भाई मनीष सिंह के साथ फ्लैट में आ रही है। आरोपियों ने जैसे ही उनके लिए दरवाजा खोला पुलिस टीम ने अजय को घेर लिया। अपनी पत्नी और बेटे की सुरक्षा के डर से अजय ने बताया कि उन्होंने सुमेधा को फरीदाबाद के घर पर बंदी बनाकर रखा है। फरीदाबाद मकान पर दबिश देकर कराया मुक्त इंस्पेक्टर उम्मेद सिंह के नेतृत्व में जब पुलिस टीम फरीदाबाद के इस संदिग्ध मकान पर पहुंची तो वहां अपहरणकर्ता अनिल कुमार, प्रमोद प्रताप, राजू कुमार सिंह और उमेश कुमार अपह्रत सुमेधा पर निगरानी रखे हुए थे। जिस कार से सुमेधा का अपहरण हुआ वो भी यहीं थी। जांच में सामने आया कि धनंजय कुमार सिंह ने ये मकान प्रॉपर्टी डीलर अनिल सूद के जरिए जगन्नाथ प्रसाद अग्रवाल से किराए पर लिया था। पुलिस ने 23 फरवरी 2003 को सुमेधा को फरीदाबाद के मकान नंबर 682/19 से रिहा कराया। प्रोफेशनल व पढ़े लिखे व्यक्तियों का गिरोह जयपुर रेंज के तत्कालीन डीआईजी अजीत सिंह ने बताया कि गिरोह में शामिल प्रमुख सदस्य ग्रेजुएट व पोस्ट ग्रेजुएट थे। अजय कुमार प्राचीन इतिहास में पोस्ट ग्रेजुएट था। पुलिस जांच में सामने आया कि उसने फिरौती के रुपयों से नया व्यवसाय शुरू करने की योजना बनाई थी। सभी आरोपी संपन्न परिवारों से थे और लग्जरी लाइफ जी रहे थे। आरोपी राजीव रंजन निजी कंपनी में इंजीनियर था। वहीं धनंजय कुमार सिंह पंजाब के भटिंडा में रिलायंस इन्फोकॉम लिमिटेड में काम कर रहा था। वह बिहार के वैशाली नगर का रहने वाला था। मोबाइल फोन तकनीक का जानकार था और बिहार के पूर्व विधायक का बेटा था। लोकसभा चुनाव लड़ चुका मास्टरमाइंड अजय कुमार सिंह अपहरणकर्ताओं में शामिल बिहार का अजय कुमार सिंह इस गिरोह का मास्टरमाइंड था। अजय कुमार सिंह का दिल्ली के वसंत विहार कॉलोनी में घर है। वो रिटायर्ड डीएसपी मंगला सिंह का बेटा है। अपहरण गिरोह का मास्टरमाइंड अजय कुमार सिंह झारखंड के चतरा लोकसभा चुनाव से 1991 में चुनाव लड़ चुका था। इस चुनाव में अजय को महज 16 हजार 663 वोट मिले और वह चौथे नंबर पर रहा। उत्तर भारत के राज्यों में अजय कुमार सिंह के गिरोह का आतंक था। पुलिस ने जुटाए ये अहम सबूत राजीव रंजन की गिरफ्तारी के समय 23 फरवरी 2003 को दिल्ली में तलाशी के दौरान अंग्रेजी में लिखा पत्र मिला। ये पत्र सुमेधा दुर्लभजी द्वारा रश्मिकांत दुर्लभजी के नाम लिखा हुआ बरामद हुआ। जिसमें फिरौती की रकम नहीं देने पर सुमेधा ने अपनी जान का खतरा हाेने की बात लिखी थी। जांच के दौरान अजय सिंह की सूचना पर पुलिस ने 3 मार्च 2003 को उसके दिल्ली स्थित रिहायशी मकान से एक डायरी बरामद की। इस डायरी और राजीव रंजन के पास मिले पत्र की एफएसएल जांच कराई गई। पत्र वाला पन्ना अजय सिंह की डायरी का ही निकला। डायरी व पत्र की हैंडराइटिंग अजय सिंह की होने की पुष्टि हुई। डराने के लिए 1 पिस्टल, 46 कारतूस अजय सिंह ने बताया कि उसने सुमेधा दुर्लभजी को डराने के लिए काम में ली गई एक पिस्टल व 46 कारतूस राकेश सिंह को दिए थे। पिस्टल व कारतूस हरियाणा के फरीदाबाद के मकान नंबर 682/19 से बरामद किए। सुमेधा दुर्लभजी के अपहरण के दिन 6 फरवरी 2003 को अजय सिंह ने बिना नंबर की एक इंडिका कार को सदर थाना इलाके में लावारिस छोड़ दिया था। पुलिस ने अजय सिंह की सूचना पर इस इंडिका कार की फर्जी नंबर प्लेट आईटीआई परिसर से बरामद की। ये गैंग इस कार को अपहरण की वारदात को अंजाम देने के लिए लाए थे। आरोपी अभय सिंह अपने साथियों के साथ जयपुर आया। वो सुमेधा दुर्लभजी का अपहरण कर फरीदाबाद ले गया। सुमेधा दुर्लभजी के बयानों और आरोपियों की पहचान से यह कोर्ट में साबित हुआ। हैंडराइटिंग राजीव रंजन की थी एफएसएल जांच में सुमेधा के परिजनों को भेजे गए पत्रों पर लिखे पते की हैडराइटिंग आरोपी राजीव रंजन की हैडराइटिंग से मिली। राजीव ने ये पत्र गुमराह करने के लिए हरिद्वार से भेजे थे। रश्मिकांत दुर्लभजी ने अपहरणकर्ताओं के फोन कॉल 17 से 22 फरवरी तक रिकॉर्ड किए थे। एफएसएल जांच में आवाज की पुष्टि आरोपी राजीव रंजन और रश्मिकांत की आवाज से हुई। फर्जी सिम कार्ड खरीदने के दस्तावेजाें की जांच में भी आरोप सही पाए गए। अजय सिंह की सूचना पर 23 फरवरी 2003 को एक बोलेरो गाड़ी बरामद की। जिसमें वह चश्मा मिला, जिसमें अंदर की तरफ काले रंग की टेप चिपकाई हुई थी। ये चश्मा सुमेधा को अपहरण कर ले जाते समय पहनाया गया था। सुमेधा ने अपने बयानों में इसकी पुष्टि की थी। जिस कार में सुमेधा का अपहरण किया गया। एफएसएल टीम ने उस कार से सबूत के तौर पर उनके बाल बरामद किए। पुलिस ने आरोपियों के पास से 8 मोबाइल फोन व कई सिम कार्ड जब्त किए। रिहाई कराने वाले इंस्पेक्टर ने छोड़ी नौकरी सुमेधा दुर्लभजी की लोकेशन की पुख्ता जानकारी मिलने के बाद एक टीम उन्हें मुक्त कराने के लिए जयपुर से भेजी गई। इस टीम का नेतृत्व तत्कालीन इंस्पेक्टर उम्मेद सिंह कर रहे थे। पुलिस विभाग में चर्चा है कि इंस्पेक्टर उम्मेद सिंह ने गैलेंट्री अवार्ड नहीं मिलने से खफा होकर नौकरी से इस्तीफा दे दिया। इस संबंध में पूर्व डीजीपी अजीत सिंह ने कहा कि उन्होंने उम्मेद सिंह को गैलेंट्री दिलाने के लिए फाइल भेजी थी। लेकिन किसी कारण से उन्हें गैलेंट्री नहीं मिला। इसके कुछ समय बाद उन्होंने इस्तीफा दिया। जब भास्कर ने उम्मेद सिंह से इस संबंध में बात की तो उन्होंने कहा कि वे अब पुलिस की नौकरी छोड़ चुके हैं। इस बारे में वे चर्चा नहीं करना चाहते। वे अपने बिजनेस पर ध्यान दे रहे हैं। छह साल बाद अपहरणकर्ताओं को हुई सजा जयपुर एडीजे कोर्ट–4 ने छह साल बाद 19 फरवरी 2009 को इस मामले में सजा सुनाई। इन्हें कोर्ट ने आजीवन कारावास व जुर्माने की सजा सुनाई। सभी आरोपी अभी जेल में सजा काट रहे हैं। वहीं आरोपी राजू कुमार सिंह उर्फ राजू उर्फ पप्पू उर्फ प्रवीण कुमार, मनोज सिंह सिंघल, मोहम्मद शाकिल और दीपक कपूर को दोष मुक्त घोषित किया। एक बाल अपचारी के खिलाफ किशोर न्यायालय में आरोप पत्र पेश किया। मामले में अजय कुमार सिंह, अभय सिंह, राजीव रंजन, उमेश कुमार उर्फ मुन्ना, भूपेंद्र सिंह उर्फ भूपाली उर्फ अनिल, धनंजय कुमार सिंह, राकेश सिंह उर्फ प्रमोद प्रताप सिंह को उम्रकैद सुनाई। 2011 में अजय सिंह हुआ फरार, डॉक्टर दंपत्ति का किया अपहरण सुमेधा दुर्लभजी अपहरण केस में पकड़े जाने के बाद अजय कुमार सिंह जयपुर के सैंट्रल जेल में बंद था। वह 22 अक्टूबर 2011 को दूसरी बार पैरोल पर बाहर आया और फिर फरार हो गया। अजय एक बार फिर अपहरण के काम में जुट गया। इस बार उसके गिरोह ने बिहार के गया के डॉ. पंकज गुप्ता व उनकी पत्नी शुभ्रा का अपहरण कर लिया। दो राज्यों की पुलिस ने लखनऊ में उसे घेर लिया और दंपत्ति को सकुशल मुक्त कराया। उसने और भी कई अपहरण किए। ज्वेलर की पत्नी के अपहरण का 22 साल पुराना केस:मॉर्निंग वॉक में किडनैपिंग, 10 करोड़ की फिरौती, जांच में जुटी 10 राज्यों की पुलिस, पार्ट-1