दो मंजिला मकान को आश्रम को दिया, 80 पुरुष रह सकते हैं

भास्कर न्यूज | अलवर शहर के विकासपथ निवासी 82 वर्षीय संतोष कुमार अरोड़ा व उनकी पत्नी 80 वर्षीय जानकी देवी शहर के प्रमुख भामाशाहों में शामिल हैं। दोनों पिछले 20 सालों से समाज सेवा से जुड़े हुए हैं। इन्होंने अपने नाम से ही संतोष कुमार जानकी देवी अरोड़ा धर्मार्थ ट्रस्ट बनाया। अरोड़ा ने बताया कि वे मूल रूप से पाकिस्तान के सिंध प्रांत के डेरा इस्माइल खा के रहने वाले हैं। बंटवारे के समय बड़े भाई श्यामसुंदर अरोड़ा के साथ भारत आए। शरणार्थी के रूप में सबसे पहले प्रताप स्कूल में रुके। 1960 में पुरानी तहसील के पास उनके पिता ने मकान बनाया। इस मकान में परिवार सहित रहते थे। संतोष अरोड़ा बताते हैं कि वे शुरू में फल बेचने का काम था। 1962 में कलाकंद मार्केट में मिठाई की दुकान खोली। तीन संतान 1 बेटा व दो बेटियां थीं। तीनों संतानों की 20 से 25 साल की आयु में बीमारी के कारण मौत हो गई। 2005 में बेटे प्रवीण अरोड़ा की मौत हुई। तीनों संतानों की मौत होने पर विचार आया कि किसके लिए कमाएं। इसके बाद हृदय परिवर्तन हुआ। कलाकंद मार्केट में स्थित मिठाई की दुकान बंद कर दी। वृद्ध आश्रम खोलने का निर्णय लिया। सुंदरनाथ की बावड़ी विवेकानंदनगर में स्थित 750 वर्गगज के प्लाट पर वृद्ध आश्रम के लिए भवन बनाया। 2010 में वृद्ध आश्रम बंद करना पड़ा। 2012 में यह भवन भरतपुर के अपनाघर आश्रम के लिए दे दिया। इसका नाम रखा संतोष कुमार जानकी देवी अरोड़ा अपनाघर आश्रम। जानकी देवी ने कहा था कि आश्रम में गुरु का नाम है नहीं है। इसके बाद इसका नाम संतोष कुमार जानकी देवी अरोड़ा गुरुकृपा अपनाघर आश्रम रखा। दो मंजिल के इस आश्रम में 80 पुरुषों के रहने की क्षमता है। मनुमार्ग स्थित संत सुखदेव शाह धर्मार्थ अस्पताल में 2007 में 7 लाख रुपए की लागत से लिफ्ट लगवाई। मालवीय नगर स्थित आदर्श विद्या मंदिर स्कूल में 2008 में बेटे प्रवीण अरोड़ा के नाम से 10 लाख रुपए की लागत से प्राथमिक खंड के भवन का निर्माण कराया। वे बताते हैं संतोष कुमार जानकी देवी अरोड़ा धर्मार्थ ट्रस्ट की ओर से हर महीने के आखिरी रविवार को संतोष कुमार जानकी देवी अरोड़ा गुरुकृपा आश्रम में चयनित 140 जरूरतमंदों को आर्थिक सहायता राशि के रूप में 300 -300 रुपए, 900 ग्राम चीनी और चायपत्ती दी जाती है। कार्यक्रम के समापन पर इन लोगों को खाना खिलाया जाता है। उनकी ओर से कलाकंद मार्केट व विकास पथ पर प्याऊ संचालित है। ऐसी गौशाला में दान दिया जाता है, जो दानदाताओं के सहयोग से संचालित हैं। प्राइवेट डिस्पेंसरी को आर्थिक मदद दी जाती है। जिससे जरूरतमंदों के लिए आवश्यक दवाइयां व मेडिकल उपकरण खरीदे जा सकें। सर्दी के मौसम में जरूरतमंद लोगों को शॉल और कंबल बांटते हैं। उनका कहना है संपत्ति से प्राप्त होने वाले किराए और ब्याज की राशि से ये खर्च उठाते हैं।