भगवान को मिला 14 दिन का 'बीमारी अवकाश':स्नान यात्रा और आम रस के भोग के बाद बंद हुए मंदिर के पट, रोज होगा स्वास्थ्य परीक्षण

भगवान को मिला 14 दिन का 'बीमारी अवकाश':स्नान यात्रा और आम रस के भोग के बाद बंद हुए मंदिर के पट, रोज होगा स्वास्थ्य परीक्षण
कोटा स्थित ऐतिहासिक जगदीश मंदिर में 300 सालों से एक अद्भुत परंपरा निभाई जा रही है। हर वर्ष ज्येष्ठ पूर्णिमा को भगवान को 14 दिन का विशेष 'बीमारी अवकाश' दिया जाता है। मान्यताओं के अनुसार, गर्मी के मौसम में ठंडे जल से स्नान और आम रस के भोग के कारण भगवान की तबीयत खराब हो जाती है। बुधवार को मंदिर में भव्य स्नान यात्रा उत्सव मनाया गया। सुबह से ही धार्मिक रीति-रिवाजों के साथ 51 जलकलशों और पंचामृत से भगवान का विशेष अभिषेक किया गया। बुधवार शाम को 200 किलो आम रस का भोग लगाने के उपरांत रात 9 बजे मंदिर के पट बंद कर दिए गए। भगवान के आराम में किसी प्रकार का व्यवधान न हो, इस विशेष ध्यान रखा जाता है। मंदिर की सभी घंटियों और झालरों को कपड़े से ढक दिया जाता है। इन 14 दिनों के दौरान पुजारी प्रतिदिन भगवान का स्वास्थ्य परीक्षण करते हैं। उनके सेहत लाभ के लिए दूध और काली मिर्च का विशेष काढ़ा भी चढ़ाया जाता है। अब देखिए, PHOTOS... 350 साल पुराना है कोटा का जगदीश मंदिर मंदिर का इतिहास और परंपरा मंदिर के व्यवस्थापक कमलेश, जो पिछले 42 वर्षों से मंदिर से जुड़े हैं, बताते हैं कि इस मंदिर की स्थापना दक्षिण भारत से आए महाराज अपलाचारी स्वामी ने की थी। तब से उनके परिवार की छठी पीढ़ी मंदिर की सेवा में लगी है, जिसे वर्तमान में एस.के. श्रीनिवास निभा रहे हैं। मंदिर में भगवान की सेवा के लिए पुजारी, भोग, भजन कीर्तन व सफाई में कुल 4 लोग कार्यरत हैं। मंदिर की स्थापना का कारण कमलेश के अनुसार, लगभग 350 वर्ष पूर्व हाड़ौती के भक्त यातायात की सीमित सुविधाओं के कारण जगन्नाथपुरी नहीं जा पाते थे। इसी कारण कोटा के रामपुरा क्षेत्र में भगवान जगदीश का मंदिर बनवाया गया। मंदिर में जगदीश (कृष्ण), बलभद्र (बलराम) व बहन सुभद्रा की मूर्तियां स्थापित हैं। मंदिर सुबह 6 से 10 बजे व शाम 4 से रात 9 बजे तक दर्शनार्थियों के लिए खुला रहता है। आगामी धार्मिक कार्यक्रम 26 जून को मंदिर में शुद्धिकरण हवन और शाम को नेत्र उत्सव मनाया जाएगा, जिसमें भगवान 5 मिनट के लिए श्रद्धालुओं को दर्शन देंगे। इसके अगले दिन 27 जून को भव्य रथ यात्रा महोत्सव का आयोजन किया जाएगा। यह आयोजन मंदिर की प्राचीन परंपराओं का महत्वपूर्ण हिस्सा है।