जहां सबसे बड़ी झील, वहीं जल संकट:पुश्तैनी हवेलियां छोड़ पलायन कर रहे लोग, हर तीसरे घर के बाहर पोस्टर- यह मकान बिकाऊ है

राजस्थान की सांभर झील जो साल्ट लेक के नाम से भी पहचान रखती है। उसके पास रहने वाले लोग बूंद-बूंद पानी के लिए तरस रहे हैं। सांभर सिटी में पानी की किल्लत भी ऐसी है कि लोग सैकड़ों साल पुरानी पुश्तैनी हवेलियां बेचने को मजबूर हैं। एक गली तो ऐसी है जहां हर तीसरे घर के बाहर नोटिस चस्पा है- ‘यह मकान बिकाऊ है।’ अपने घर छोड़कर लोग किराए के घरों में रहने को मजबूर हैं। जमीनी हकीकत जानने भास्कर टीम मौके पर पहुंची। पता चला करीब 300 से ज्यादा परिवार पीने के पानी कमी के चलते घरों पर ताला लगा चुके हैं। पुराने घरों पर नए ताले, हर तीसरे घर के बाहर लिखा 'बिकाऊ है' जयपुर से करीब 80 किलोमीटर दूर सांभर की कालोनियों की गली में हम दाखिल हुए। एक पोस्टर गली के बाहर लगा था- 'पलायन': यह मकान बिकाऊ है, भीषण पेयजल संकट से परेशान होकर मकान बेचकर गांव छोड़ने को मजबूर परिवार। आज्ञा से मकान मालिक।' स्थानीय निवासी गौतम सिंघानिया ने बताया कि ये पोस्टर आपको को 9 कॉलोनियों में हर तीसरे घर के बाहर मिलेंगे। चारभुजा मंदिर वाली गली, चौधरियों की गली, कालोनियों की गली, दादू द्वारे की गली, शेष नारायणजी की गली, लक्ष्मीनाथ जी के मंदिर वाली गली, लहोतियों की गली, झंडे वाली गली और धन मंडी वाली गली में करीब 250 से 300 मकान और पुरानी हवेलियां खाली पड़ी हैं। करीब 4000 लोगों की आबादी सबसे बड़ी झील के किनारे होकर भी पानी को तरस रही है। भास्कर ने पूरे वार्ड की सभी गलियों की पड़ताल की। एक हवेली के बाहर ताला लगा मिला। पड़ोसी चांद कंवर ने बताया कि यह करीब 500 साल पुरानी हवेली है। यहां जो रहते थे वो इसे खाली कर शहर के दूसरी ओर किराए के मकान में रहने गए हैं। सबकी समस्या एक ही है- पीने तक को पानी नहीं है। चार दिन में एक बार सप्लाई आ जाए तो खुशकिस्मती समझो। 450 रुपए में तीन टैंकर एक महीने में डलवाने पड़ते हैं। इसके बावजूद जलदाय विभाग पानी का बिल महीने पानी का बिल भेज देता है जिसे मजबूरी में हमें भरना पड़ता है। डेढ़ किलोमीटर दूर कुएं और बेरीनुमा गड्ढों से पानी भरने को मजबूर वार्ड 23 के निवासी मुकेश व्यास ने बताया कि पुरानी कोर्ट के सामने एक सरकारी नल का कनेक्शन है। पूरे वार्ड की महिलाओं रात को ही सभी अपना नंबर लगा देती हैं। यहां 60 से 70 परिवार रातभर पानी भरने आते हैं। कई बार प्रेशर नहीं आता तो पाइप को नीचे ले जाने के लिए एक गड्ढा खोदकर उसमें पानी भरते हैं। युवा विजय बताते हैं कुछ गलियों में पानी की सप्लाई है, लेकिन गलियां ऊंचाई पर होने के कारण प्रेशर नहीं आता। बूंद बूंद ही पानी टपकता है। इतनी मशक्कत के बाद भी बमुश्किल एक दो बाल्टी पानी मिल पाता है। एक घर के बाहर लगे नोटिस के पास खड़ी कनिका बताती हैं कुछ समय पहले 10-12 लाख रुपए खर्च कर घर को रिनोवेट करवाया था। लेकिन पानी की किल्लत देख छोड़ने को मजबूर हैं। लक्ष्मी सेन बताती हैं कि महिलाएं डेढ़ किलोमीटर दूर चारभुजा मंदिर वाली गली में बने कुएं से पानी लाती हैं। उस कुएं का नमकीन और चिपचिपा है। इससे न प्यास बुझती है न कपड़े साफ होते हैं। खाना भी नहीं बना सकते। जिंदगी नर्क से बदतर हो गई है। मेरी सास को गले का कैंसर है। डॉक्टर ने साफ पानी पीने को बोला है। लेकिन इस पानी से उनकी तकलीफ लगातार बढ़ती जा रही है। पानी के लिए केस लड़ा, आदेश के बावजूद पानी नहीं मिल, खंडहर हुआ घर मंदिर वाली गली में हरिश्चंद्र पारीक एक जर्जर हवेली की तरफ इशारा करते हुए बताते हैं कि यह वकील साहब का मकान था। पानी की समस्या से तंग आकर उन्होंने कोर्ट की शरण ली। कोर्ट ने अधिकारियों को समस्या हल करने को कहा। न घर में पानी पहुंचा और न ही सुनवाई हुई। थक हार के वकील साहब को अपना पुश्तैनी मकान बेचना ही पड़ा। जिस दिन सप्लाई आती है, बच्चों की स्कूल से करवाते हैं छुट्टी चौधरियों की गली के बुजुर्ग जगदीश शर्मा कहते हैं की पानी न होने की वजह से ही पूरी गली खाली हो गई है। हमारे तो जिस दिन पानी आता है, उस दिन बच्चों की स्कूल से छुट्टी करवा देते हैं कि आज पानी भरना है। 90 साल की लक्ष्मी बताती हैं, उनकी हवेली 500 साल पुरानी है। पीने के पानी के सवाल पर रोने लगती हैं। नवरतन शर्मा कहते हैं बचपन से बुढ़ापे देख रहा हूं, यहां पानी की ऐसी समस्या पहली बार है। पहले आराम से पानी दो मंजिल तक चढ़ जाता था लेकिन अब न तो प्रेशर है न ही साफ पानी। 50 साल से ज्यादा पुरानी इन पाइपलाइन को बदला ही नहीं गया है। सीमेंटेड गलियों की वजह से लीकेज का पता नहीं चलता। कई बार 1000 रुपए तक टैंकर वालों को देने पड़ते हैं। मेरे तीन कनेक्शन हैं लेकिन एक में भी पानी नहीं आता। हां बिल जरूर टाइम पर आता है। 400 फीट दूर तक पाइप से पहुंचता कुएं का पानी लाहोतियों की गली में करीब 60 फीट गहरे कुएं से तीन-चार गलियों की प्यास बुझ रही है। कुएं में नीचे मोटर लगाई गई है। जिससे कपडे धोने, साफ सफाई, टॉयलेट आदि के लिए पानी मिल जाता है। बुजुर्ग रामशरण कहते हैं अगर अधिकारी नहीं सुधरे तो इस बार आंदोलन करेंगे। अधिकारी खुद रहकर दिखाएं ऐसे माहौल में। पूर्व पार्षद विष्णु कुमार सिंघानिया कहते हैं- दोनों ही सरकारें पानी दे पाने में विफल रही हैं। अधिकारी सुनवाई नहीं करते। बिल भी पेनल्टी के साथ आता है। बिल भी छ-छ महीने के गैप से एक साथ भेजते हैं। विभाग के अफसर बोले- पानी की कमी नहीं जलदाय विभाग एक्सईएन मदनलाल मीणा का कहना है- ऐसी कोई समस्या सांभर में नहीं है। कुछ टेल एंड गलियों के 5-6 मकानों में प्रेशर कम होने की शिकायत है बस। इस पर भास्कर ने अपने कैमरे में रिकॉर्ड लोगों की समस्याएं सुनाई और मुद्दा समझाया तो उन्होंने एक जूनियर अधिकारी एईएन संजय को फटकार लगा दी। फोन काटने के बाद बोले- सांभर कोर्ट के पास 200 केएल की टंकी बनाने के लिए टेंडर प्रक्रियाधीन है। आदेश होने के कुछ महीने बाद ही पानी उपलब्ध हो सकेगा। कॉलोनियों में पानी के कम प्रेशर पर उनका कहना था- हमने बीसलपुर से 28 एमएलडी पानी की मांग की है। लेकिन हमें 9 एमएलडी पानी ही मिलता है। ये पानी सांभर ग्रामीण, फुलेरा, सांभर और रेनवाल तक देना पड़ता है। इसलिए पानी की आपूर्ति ठीक से नहीं हो पा रही है। मीणा ने बताया की वर्तमान में नेहरू गार्डन (225 KL), स्टेशन रोड (200 KL), नरसिंघ का टीबा (4.50 KL) और नाकस (250 KL) में चार टंकियां है इसके अलावा 8 से 9 ट्यूबवेल से भी पानी की पूर्ती की जा रही है। हालांकि सांभर के लोगों का कहना है इन टंकियों और ट्यूबवेल का पानी कहां जाता है हमें नहीं पता। मीणा ने यह भी बताया की लोगों को गर्मी से राहत देने के लिए तीन बार सरकारी टैंकर के लिए टेंडर मंगवाए लेकिन कोई आया ही नहीं। विधायक बोले- आंदोलन करना पड़ेगा फुलेरा विधायक विद्याधर चौधरी ने बताया सांभर की प्यासी जनता के हक में मैंने दो बार विधानसभा में सवाल उठाया है। मंत्री जी से भी बात की है। मंत्री ने खुद माना है की हमें 18 एमएलडी पानी अलॉट है लेकिन हम 9 एमएलडी पानी ही दे रहे हैं। इसका कारण उन्होंने ये बताया कि सांभर के लिए बिछी हुई पाइपलाइन बहुत पुरानी है। नई पाइपलाइन का काम दिसंबर 2025 तक पूरा होगा। इस पर हमने उन्हें ऑप्शनल उपाय भी बताया था। पहले सांभर से नावां तक बीसलपुर का पानी जाता था। लेकिन अब नावां में नहर का पानी आ जाने से इसकी ज़रूरत नहीं पड़ती। पाइपलाइन भी बिछी हुई है और सांभर में टैंक भी बना हुआ है ऐसे में व्यवस्था होने तक नहर का पानी हमें दिया जा सकता है। लेकिन कांग्रेस का विधायक होने के कारण सुनवाई नहीं हो रही है। लोगों में इस वजह से आक्रोश बहुत है। जनता की समस्याओं को अगर जल्द न सुधारा गया तो लोग आंदोलन पर उतरेंगे। .... राजस्थान में पानी और गर्मी के संकट से जुड़ी ये ग्राउंड रिपोर्ट भी पढ़िए... 1. आग उगलती गर्मी, लेकिन रोज नहाना मना है!:पीने के लिए घंटों इंतजार के बाद मिलता है खारा पानी, 85 परिवारों ने छोड़ा गांव दुनिया के सबसे गर्म इलाकों में शामिल बाड़मेर के सरहदी गांव तारीसरा की। क्योंकि यहां पानी की किल्लत है। किल्लत ऐसी कि मीठा पानी तो है नहीं खारा पानी भी बूंद-बूंद कर सहेजना पड़ता है। पूरी खबर पढ़िए... 2. 45 डिग्री में नाकाबंदी, पुलिसकर्मियों की वर्दी के रंग उड़े:बाड़मेर में दोपहर में फैक्ट्रियों में 'लॉकडाउन', पांच घंटे नहीं होता काम, गायों के लिए एसी-कूलर दुनिया के सबसे गर्म शहरों में शुमार रहने वाला बाड़मेर। यहां बॉर्डर इलाकों में गर्मियों में तापमान 46° से 51°C तक पहुंच जाता है। अप्रैल में ही गर्मी के रिकॉर्ड टूटने शुरू हो जाते हैं। पूरी खबर पढ़िए...