कैश केस-स्टोर रूम पर जज परिवार का ही कंट्रोल था:जांच पैनल का प्रस्ताव जस्टिस वर्मा को हटाएं; 64 पेज की रिपोर्ट सामने आई

जस्टिस यशवंत वर्मा के घर से मिले कैश केस की जांच कर रहे पैनल की रिपोर्ट गुरुवार को सामने आई है। 64 पेज की रिपोर्ट में कहा गया है कि हाईकोर्ट जज यशवंत वर्मा और उनके परिवार के सदस्यों का स्टोर रूम पर सीक्रेट या एक्टिव कंट्रोल था। यहीं 14 मार्च की रात आग लगने के बाद बड़ी संख्या में अधजले नोट मिले थे। पैनल की रिपोर्ट में कहा गया है कि इससे जस्टिस वर्मा के बुरे व्यवहार का पता चलता है, जो इतना गंभीर है कि उन्हें हटाया जाना चाहिए। घटना के समय जस्टिस वर्मा दिल्ली हाईकोर्ट के जज थे और अब इलाहाबाद हाईकोर्ट में कार्यरत हैं। पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस शील नागू की अध्यक्षता वाले तीन जजों के पैनल ने 10 दिनों तक जांच की। 55 गवाहों से पूछताछ की और जस्टिस वर्मा के आधिकारिक आवास का दौरा किया था। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है, रिकॉर्ड पर मौजूद सबूतों को ध्यान में रखते हुए समिति इस बात पर सहमत है कि CJI के 22 मार्च के लेटर में लगाए गए आरोपों में पर्याप्त तथ्य हैं। आरोप इतने गंभीर हैं कि जस्टिस वर्मा को हटाने के लिए कार्यवाही शुरू करनी चाहिए। पैनल की रिपोर्ट की बड़ी बातें... मानसून सत्र में जस्टिस वर्मा के खिलाफ सरकार महाभियोग प्रस्ताव संभव, लेकिन आधिकारिक जानकारी नहीं कैश कांड मामले में जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ केंद्र सरकार भी संसद में महाभियोग प्रस्ताव लाने पर विचार कर रही है। मई में न्यूज एजेंसी PTI ने सरकार से जुड़े सूत्रों के हवाले से बताया था कि 15 जुलाई के बाद शुरू होने वाले मानसून सत्र में यह प्रस्ताव लाया जा सकता है। हालांकि सरकार अभी इस बात का इंतजार कर रही है कि जस्टिस वर्मा खुद इस्तीफा दे दें। तत्कालीन CJI संजीव खन्ना ने महाभियोग की सिफारिश की थी जांच पैनल ने 4-5 मई को सुप्रीम कोर्ट के तत्कालीन CJI को रिपोर्ट सौंपी थी। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट के तत्कालीन चीफ जस्टिस (CJI) संजीव खन्ना ने जांच रिपोर्ट राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भेजी थी। उन्होंने जस्टिस वर्मा के खिलाफ महाभियोग चलाने की सिफारिश की थी। हालांकि इस रिपोर्ट को सार्वजनिक नहीं किया गया था। 2018 में भी 97.85 करोड़ रुपए के घोटाले में नाम जुड़ा था इससे पहले 2018 में गाजियाबाद की सिम्भावली शुगर मिल में गड़बड़ी के मामले में जस्टिस वर्मा के खिलाफ CBI ने FIR दर्ज की थी। NDTV की रिपोर्ट के मुताबिक ओरिएंटल बैंक ऑफ कॉमर्स ने मिल में गड़बड़ी की शिकायत की थी। शिकायत में कहा था कि शुगर मिल ने किसानों के लिए जारी किए गए 97.85 करोड़ रुपए के लोन का गलत इस्तेमाल किया है। जस्टिस वर्मा तब कंपनी के नॉन-एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर थे। इस मामले में CBI ने जांच शुरू की थी। हालांकि जांच धीमी होती चली गई। फरवरी 2024 में एक अदालत ने CBI को बंद पड़ी जांच दोबारा शुरू करने का आदेश दिया, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस आदेश को पलट दिया और CBI ने जांच बंद कर दी।