कथा-सत्संग इंसान को सुधारने के लिए होते हैं

लंकागेट रोड स्थित रेतवाली महादेव मंदिर में संगीतमय श्रीरामकथा के दूसरे दिन पुष्करदास महाराज ने कहा कि जहां राम का निवास हो, वहीं रामायण है। उन्होंने कहा कि सीताजी का पारिवारिक धर्म, भरत का प्रेम, लक्ष्मण की सेवा और हनुमानजी की भक्ति से हमें सीख लेनी चाहिए। इन सभी ने सेवा, प्रेम, परिवार और भक्ति का परिचय दिया। महाराज ने कहा कि बिना सत्संग विवेक नहीं आता। विवेक के बिना सत्य और असत्य का ज्ञान नहीं होता। कथा और सत्संग इंसान को सुधारने के लिए होते हैं। जो रामायण में डुबकी लगाएगा, वह भवसागर से पार हो जाएगा। कथा के दौरान तीन घंटे तक मन एकाग्र रहता है। जो कथा को ध्यान से सुनेगा, उसका मन रूपी हाथी दुनिया से ऊपर उठेगा। उन्होंने कहा कि सत्संग एक सरोवर है। रामायण पढ़ने से बहुत पुण्य मिलता है। भगवान शिव भी राम की कथा एकाग्र होकर सुनते हैं, लेकिन सती का ध्यान कथा में नहीं रहता। रामायण राम का घर है, इसलिए इसे सिर पर धारण किया जाता है। यह हमारा मस्तक है। अभिमान पाप की जड़ : आगे उन्होंने बताया कि भोले बाबा सती को लेकर काकभुशुण्डि के आश्रम में कथा सुनने के लिए जाते हैं। भोले बाबा कथा को आदर देते हैं, लेकिन सती ध्यान से नहीं सुनतीं। वे प्रभु राम और सीता की परीक्षा लेती हैं। इसी कारण वे भोले बाबा से दूर हो जाती हैं। रामायण में सती को पीहर पक्ष का अभिमान था। अभिमान पाप की जड़ है। जब तक पाप नहीं मिटेंगे, तब तक हरि से जुड़ाव नहीं होगा। रामायण में चौपाई आती है, दया धरम का मूल है, पाप मूल अभिमान। रामायण अहंकार और अभिमान को दूर करती है। बुधवार को कथा में समाजसेवी श्योजीलाल धगाल, सत्यनारायण सोमानी, रामशंकर शृंगी, गोपाल सोमानी, ताराचंद लखोटिया, कालू कटारा, राधेश्याम गर्ग शामिल रहे।