PM मोदी आज साइप्रस से कनाडा जाएंगे:G-7 समिट में हिस्सा लेंगे, 10 दिन पहले मिला था न्योता; पीएम मार्की से पहली बार मिलेंगे

PM मोदी आज साइप्रस से कनाडा जाएंगे:G-7 समिट में हिस्सा लेंगे, 10 दिन पहले मिला था न्योता; पीएम मार्की से पहली बार मिलेंगे
पीएम मोदी के साइप्रस दौरे का आज दूसरा दिन है। वे 15 जून को साइप्रस पहुंचे थे। जहां राष्ट्रपति निकोस क्रिस्टोडौलिडेस से मुलाकात की। इसके बाद वे भारतीय समुदाय से मिले। आज मोदी का साइप्रस के राष्ट्रपति भवन में औपचारिक स्वागत किया जाएगा, जिसके बाद वे डेलीगेशन लेवल की चर्चा करेंगे। फिर मोदी साइप्रस से कनाडा रवाना होंगे। मोदी यहां 16-17 जून तक रहेंगे। पीएम कनाडा के अल्बर्टा प्रांत के कनानास्किस में आयोजित G7 समिट में हिस्सा लेंगे। भारत को यह न्योता समिट शुरू होने के ठीक 10 दिन पहले मिला था। पीएम मोदी की कनाडा के पीएम मार्क कार्नी के साथ यह पहली मुलाकात होगी। जनवरी 2025 में जस्टिन ट्रूडो के इस्तीफे के बाद 14 मार्च को मार्क कार्नी कनाडा के नए पीएम बने थे। जस्टिन ट्रुडो के वक्त भारत-कनाडा के संबंधों में खटास आई थी। क्या G-7 समिट से सुधरेंगे भारत-कनाडा के रिश्ते, ट्रम्प और मोदी में क्या बातचीत हो सकती है और न्योता देर से आने की क्या वजह है... सवाल-1: G-7 क्या है, इसमें कौन-कौन से देश हैं? जवाब: G-7 यानी ‘ग्रुप ऑफ सेवन’, दुनिया के उन 7 देशों का समूह है, जिन्हें दुनिया की 'मॉडर्न इकोनॉमी' वाला देश कहा जाता है। ये देश हैं- अमेरिका, फ्रांस, ब्रिटेन, जापान, इटली, कनाडा और जर्मनी। पहले इसका नाम G-8 हुआ करता था। 2014 में रूस ने पड़ोसी देश क्रीमिया पर कब्जा कर लिया तो बाकी सदस्य देशों ने रूस को ग्रुप से बाहर कर दिया। इसका नाम G-7 हो गया। सवाल-2: G-7 समिट क्या है, इस बार इसके एजेंडे की खास बात क्या है? जवाब: एक तय एजेंडे पर बातचीत के लिए हर साल G-7 समिट होती है, जिसका आयोजन G-7 का अध्यक्ष देश करता है। दरअसल, G-7 के सभी 7 देश बारी-बारी से इसकी अध्यक्षता करते हैं। इस साल कनाडा अध्यक्षता कर रहा है। ऐसे में G-7 समिट कनाडा के अल्बर्टा प्रांत के कानानास्किस शहर में होगी। इस समिट के एजेंडे में वैश्विक शांति और सुरक्षा, आर्थिक स्थिरता, विकास और डिजिटल डेवलपमेंट जैसे मुद्दे हैं। इसके अलावा G-7 के सदस्य देशों के लीडर्स और ऑफिसर्स साल में कई बैठकें करते हैं, जिनमें कई समझौते होते हैं और दुनिया की बड़ी घटनाओं पर आधिकारिक बयान जारी किए जाते हैं। शुरुआत में G-7 का एजेंडा आर्थिक चुनौतियों और क्लाइमेट चेंज जैसे मुद्दों का हल निकालना था। बाद में राजनीतिक और सुरक्षा से जुड़े मुद्दे भी इसमें शामिल हो गए। वैश्विक मुद्दों पर G-7 के फैसलों का असर पूरी दुनिया पर पड़ता है। उदाहरण के लिए G-7 ने 2002 में मलेरिया और एड्स से लड़ने के लिए ग्लोबल फंड बनाया। 1998 में वित्तीय संकट के दौरान इंडोनेशिया और थाईलैंड जैसे देशों को आर्थिक मदद की। रूस-यूक्रेन जंग के दौरान रूस पर कड़े प्रतिबंध लगाने और यूक्रेन की मदद करने का फैसला किया। सवाल-3: इससे पहले पीएम मोदी G-7 समिट में कितनी बार शामिल हुए? जवाब: G-7 समिट के लिए आमतौर पर भारतीय प्रधानमंत्रियों को बुलाया जाता रहा है। 2004 से 2014 तक पीएम रहे मनमोहन सिंह ने पांच बार G-8 समिट में हिस्सा लिया था। वहीं पीएम मोदी को पहली बार 2019 में फ्रांस के बियारिट्ज में हुई समिट में बुलाया गया था। इसके बाद 2020 में अमेरिका को मेजबानी करनी थी, लेकिन अमेरिका ने तब समिट रद्द कर दी। इस एक साल को छोड़ दें तो 2019 से 2024 तक हर साल पीएम मोदी G-7 समिट में शामिल हुए। 2021 में वे वर्चुअल मीडियम से इसमें शामिल हुए। फिर 2022 में जर्मनी, 2023 में जापान और 2024 में इटली में हुई G-7 समिट में शामिल हुए। सवाल-4: इस बार भारत को न्योता मिलने में देरी के क्या मायने हैं? 1. कनाडा के खालिस्तान समर्थकों ने मोदी को न्योता न देने की मांग की: पूरे कनाडा में 7 लाख से ज्यादा सिख रहते हैं। भारत के बाद सबसे ज्यादा सिख यहीं हैं। कनाडा की सरकारों में खालिस्तानी मूवमेंट को सपोर्ट करने वाले मंत्री मौजूद हैं। कनाडा में भारत का विरोध करने वाली एक बड़ी लॉबी है, जो नहीं चाहती कि भारत-कनाडा के संबंध बेहतर हों। JNU में इंटरनेशनल रिलेशंस के प्रोफेसर एके पाशा के मुताबिक, 'इसी लॉबी ने कनाडा की सरकार पर दबाव डाला कि पीएम मोदी को समिट में न बुलाया जाए। कनाडा में अभी भी खालिस्तानी मूवमेंट मजबूत है। भारत मांग करता रहा है कि कनाडा खालिस्तान समर्थकों के प्रति सख्ती से पेश आए, लेकिन कनाडा सरकार भारत पर दबाव बनाने के लिए उन्हें सपोर्ट करती रही है। मार्क कार्नी का रवैया भी इस मामले में ढीला है।' 2- पीएम मोदी न्योता स्वीकारेंगे, ये कन्फर्म नहीं था: JNU में इंटरनेशनल रिलेशंस के एसोसिएट प्रोफेसर राजन कुमार कहते हैं, ‘कनाडा की नई सरकार से भी भारत के वैचारिक मतभेद हैं। ऐसे में ये कन्फर्म नहीं था कि पीएम मोदी कनाडा का इनविटेशन एक्सेप्ट करेंगे। ट्रूडो की सरकार होती, तो शायद ही पीएम मोदी कनाडा जाते। जब किसी देश से संबंध ठीक नहीं होते तो ऐसी अड़चनें आती हैं, BRICS की मीटिंग अगर चीन में होती है तो भी ये मुद्दा उठता है कि पीएम चीन जाएंगे या नहीं।’ प्रो. एके पाशा कहते हैं, पीएम मोदी का सभी विदेश यात्राओं में खूब स्वागत किया जाता है। अगर कनाडा की तरफ से न्योता नहीं आता, तो ये भारत की विदेश नीति के लिए बड़ा झटका होता। सवाल-5: समिट में पीएम मोदी क्या करेंगे? जवाब: प्रो. राजन कुमार बताते हैं कि समिट में आर्थिक मुद्दों, क्लाइमेट चेंज जैसे मुद्दों पर ही बात होगी। आतंकवाद पर भी देशों के लीडर्स गोल-मोल बातें करेंगे। हालांकि G-7 की अहमियत अब घटी है। ट्रम्प ने इसके बाकी सदस्य देशों पर टैरिफ लगा रखा है। ऐसे में G-7 के अंदर एक तरह का डिवाइड हो गया है। G-7 में पीएम मोदी शामिल जरूर होंगे, लेकिन वे किसी देश से द्विपक्षीय बातचीत करेंगे, इसकी संभावना कम है।’ सवाल-6: क्या इस दौरान खालिस्तानी गुट प्रोटेस्ट कर सकते हैं? जवाब: कनाडा के अल्बर्टा प्रांत में 1 लाख से ज्यादा सिख रहते हैं। कानानास्किस शहर में जहां समिट होनी है, वहां बड़े विरोध प्रदर्शन होने वाले हैं। कनाडाई न्यूज चैनल CTV के मुताबिक, कानानास्किस के सीनियर पुलिस ऑफिसर डेविड हॉल ने कहा है कि प्रोटेस्ट के लिए 3 जोन तय किए गए हैं, जहां से प्रोटेस्ट को G-7 में शामिल हो रहे नेताओं को लाइव दिखाया जाएगा, क्योंकि नेता इन प्रोटेस्ट को देख-सुन नहीं सकते थे।’ दरअसल, कनाडा सरकार ‘शांतिपूर्ण प्रोटेस्ट’ को जनता का अधिकार बताती है। इससे पहले भी भारत के एतराज के बावजूद कनाडा ने भारतीय दूतावास के सामने विरोध प्रदर्शन की अनुमति दी थी। प्रो. एके पाशा बताते हैं, पीएम मोदी के पहुंचने पर सिख ग्रुप उग्र प्रोटेस्ट कर सकते हैं। संभव है कि इसीलिए पीएम मोदी के समिट में शामिल होने को लेकर फैसला लेने में देरी हुई। सवाल-7: क्या G-7 समिट से कनाडा और भारत के रिश्ते सुधरेंगे? जवाब: इसके लिए पहले कनाडा और भारत के रिश्तों का थोड़ा बैकग्राउंड समझ लीजिए- प्रो. एके पाशा कहते हैं, ‘भारत ने निज्जर की हत्या में किसी भी तरह का हाथ होने से इनकार कर दिया था, लेकिन कार्नी सरकार भारत से इस मामले की जांच में सपोर्ट मांग रही है। ये मुद्दा अभी भी गर्म है। हालांकि कार्नी के सत्ता में आने के बाद भारत और कनाडा के संबंध बेहतर होने की उम्मीद बढ़ी है।’ प्रो. राजन कुमार कहते हैं, ट्रम्प ने कनाडा को अमेरिका का 51वां स्टेट बनाने को कहा था। वहीं कनाडा पर अमेरिकी टैरिफ बढ़ने से कनाडा को नुकसान हुआ। चीन से उसके रिश्ते ठीक नहीं हैं। ऐसे में इस समिट के जरिए कनाडा, भारत से रिश्ते सुधारने की कोशिश करेगा। सवाल-8: ट्रम्प और मोदी के बीच मुलाकात के दौरान क्या बात हो सकती है? जवाब: हमेशा की तरह पाकिस्तान के शीर्ष नेताओं को G-7 समिट के लिए इस बार भी नहीं बुलाया गया। वहीं ऑपरेशन सिंदूर के बाद ये पहला मौका है जब कनाडा में ट्रम्प से पीएम मोदी की मुलाकात होगी। प्रो. एके पाशा कहते हैं, ‘ट्रम्प ईरान के परमाणु हथियार, इजराइल-गाजा और रूस-यूक्रेन युद्ध पर कुछ खास नहीं कर पाए हैं। इसलिए बार-बार वे भारत-पाकिस्तान सीजफायर करवाने का क्रेडिट ले रहे हैं, जबकि पीएम मोदी ने इस पर अभी तक कुछ नहीं कहा, क्योंकि वे ट्रम्प को नाराज नहीं करना चाहते। पीएम मोदी, ट्रम्प से मिलकर अपना पक्ष समझा सकते हैं, लेकिन ट्रम्प मुंहफट हैं। ऐसे में वे टकराव कर सकते हैं।’ प्रो. राजन कुमार भी कहते हैं, ‘पीएम मोदी, ट्रम्प के सामने पाकिस्तान को लेकर कोई चर्चा नहीं करेंगे। ट्रम्प एक मिस-गाइडेड मिसाइल हैं। वह कब-क्या बोल दें, इसका भरोसा नहीं है।’ सवाल-9: G-20 से कैसे अलग है G-7? जवाब: G-7 का कोई स्थायी कार्यालय नहीं है और इसके सदस्य देश कोई अंतरराष्ट्रीय कानून पारित नहीं कर सकते। G-20 में सबसे बड़ा मुद्दा वर्ल्ड इकोनॉमी होता है, जबकि G-7 के लिए राजनीतिक मुद्दे भी अहम होते हैं। 1999 में बने G-20 में G-7 के देशों के अलावा BRICS के देश भी शामिल हैं। इन देशों में भारत के अलावा अर्जेंटीना, ऑस्ट्रेलिया, ब्राजील, चीन, इंडोनेशिया, मेक्सिको, रूस, सऊदी अरब, दक्षिण अफ्रीका, दक्षिण कोरिया, तुर्किये और यूरोपीय संघ शामिल हैं। राजन कुमार के मुताबिक G-20 में नई और बढ़ती हुई इकोनॉमी वाले देशों को भी शामिल किया गया है। भले ही G-7 और G-20 का एजेंडा एक जैसा हो, लेकिन इस समय G-20 ज्यादा प्रभावी गुट है। 2020 में अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प ने भी G-7 को बहुत आउटडेटेड ग्रुप कहा था। -------------------------