तारीख पर तारीख में फंस रहा स्त्रीधन, महिला थाने में कबाड़ हो रहा एक करोड़ का सामान

कभी किसी बाप ने खून-पसीना बहाकर बेटी की विदाई की थी। हाथों में मंगलसूत्र, गहनों की थाली और बक्सों में भरकर वह सब कुछ दिया जो एक नए जीवन के लिए जरूरी समझा गया। आज वही दहेज का सामान बीकानेर के महिला थाने में धूल खा रहा है, बरसात और धूप में खराब हो चुका वह सामान, अब एक टूटे हुए रिश्ते की तस्वीर नहीं, बल्कि एक जिंदा सामाजिक विफलता का प्रतीक बन गया है। सूत्रों के अनुसार इस सामान की कीमत एक करोड़ से ज्यादा हो सकती है। महिला थाने में वर्षों से दहेज प्रताड़ना से जुड़े मामलों का सामान ऐसे बिखरा पड़ा है मानो यह किसी की जिंदगी नहीं, बल्कि पुरानी चीजों का कबाड़ हो। हाल ही में थाने में एक टिन शेड का गोदाम बनाया गया है, जहां अब इसे थोड़ी सुरक्षा मिल रही है। यह सुविधा उन सालों की भरपाई नहीं कर सकती जब यह सामान खुले में पड़ा-पड़ा गलता रहा। एक पिता का दर्द : बीकानेर महिला थाने में पड़े लाखों रुपए के स्त्रीधन और ज्वेलरी, सिर्फ पुलिस रिकॉर्ड का हिस्सा नहीं, वे टूटे हुए भरोसे, रिश्तों और संघर्षों का प्रतीक हैं। क्यों बढ़ रहे हैं ऐसे मामले? वरिष्ठ अधिवक्ता शैलेष गुप्ता ने बताया कि इन केसों के पीछे सिर्फ हिंसा या दहेज ही नहीं है, अब जीवनशैली में बदलाव भी बड़ा कारण है। बहुएं संयुक्त परिवार में रहना नहीं चाहतीं, सास पर शक, पीहर से अधिक लगाव और सोशल मीडिया पर जरूरत से ज्यादा सक्रियता, ये भी कई बार विवाद की वजह बनते हैं। घर टूटने के पीछे स्त्रीधन को लेकर अधिकार की लड़ाई भी अहम हो चुकी है, सास रखेगी या बहू? इस सवाल पर भी घर बिखर रहे हैं। पति-प|ी के बीच संवाद का अभाव और बाहरी हस्तक्षेप (दोस्त, पीहर, पड़ोसी) छोटी बात को बड़ा बना देता है। एक्सपर्ट का मानना है कि फास्ट ट्रैक कोर्ट बनाए जाने चाहिए, जहां दहेज व महिला उत्पीड़न के केसों को तीन से छह माह में निपटाने का प्रयास किया जाए। क्या कहते हैं दर्ज आंकड़े विवाह पूर्व काउंसलिंग और स्त्री धन लौटाने की प्रक्रिया तेज हो : कई सामाजिक संगठनों ने मांग की है कि विवाह के पूर्व दोनों पक्षों की काउंसलिंग की जाए जिससे भविष्य में विवाद की संभावनाएं घटें। काउंसलिंग सेल की भूमिका और प्रभाव को मजबूत किया जाए ताकि तलाक से पहले रिश्तों को सुधारा जा सके। थानों में पुराने मामलों में भी स्त्रीधन पीड़िता को लौटाने की प्रक्रिया तेज की जाए। वर्षों से धूल खा रहे लगभग एक करोड़ के दहेज के सामान को लौटाना अब इंसाफ से ज्यादा इंसानियत का सवाल है। पिता और बेटी के मन की पीड़ा, लेकिन साक्ष्य के अभाव में थाने में बंद है अरमानों का बक्सा थाने में जब पिता और बेटी किसी कारण से आते हैं और सालों से पड़े अपने ही सामान को देखते हैं, तो आंखें भर आती हैं। एक पिता कहता है, इससे बड़ा दुख क्या होगा कि जो अपनी बेटी के लिए प्यार और सम्मान से दिया, वो अब लावारिस हाल में थाने में पड़ा सड़ रहा है। दहेज या स्त्रीधन की कानूनी प्रक्रिया जटिल है। पुराने प्रावधानों के अनुसार, मुकदमा दर्ज होने के बाद जब तक कोर्ट आदेश न दे, तब तक यह सामान पीड़िता को नहीं सौंपा जा सकता था। अब सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन के बाद कुछ राहत मिली है, केस दर्ज होते ही स्त्रीधन महिला को सौंपा जा सकता है, मगर अभी भी थानों में पुराने मामलों का अंबार लगा है।