'जहां कृष्ण खेले, वो कुंज गलियां खत्म होंगी':वृंदावन में बांके बिहारी के लिए बनी थीं; श्रद्धालु बोले- सहूलियत नहीं चाहिए, पार्ट-1

‘हम वृंदावन में बांके बिहारी के पास इन्हीं कुंज गलियों के लिए ही तो आते हैं। हमारे बच्चे यहां की गलियों में नंगे पांव दौड़ते हैं। अगर ये कुंज गलियां ही नहीं रहेंगी तो हम क्यों आएंगे? हमें ऐसी सहूलियत नहीं चाहिए कि कुंज गलियां ही खत्म हो जाएं।’ ये शब्द हैं मध्य प्रदेश के इंदौर से आईं माधुरी सोनी के। माधुरी अक्सर बांके बिहारी के दर्शन करने वृंदावन आती हैं। इस वक्त बांके बिहारी मंदिर कॉरिडोर का सर्वे आखिरी चरण में है। सर्वे के बाद कुंज गलियों को तोड़ा जाएगा। इसके चलते कुंज गलियां चर्चा में हैं। इन्हें बचाने के लिए वृंदावन का गोस्वामी परिवार और स्थानीय दुकानदार विरोध कर रहे हैं। दैनिक भास्कर की टीम वृंदावन पहुंची। इन गलियों को देखा, इनके महत्व को समझा। भगवान कृष्ण से जुड़े इतिहास को जाना, इन गलियों में रहने वाले लोगों से बात की। कॉरिडोर में कितनी गलियां खत्म होंगी, इसे भी जाना। बांके बिहारी कॉरिडोर की स्पेशल खबरों की सीरीज में आज पहले पार्ट में पढ़िए उन कुंज गलियों के बारे में, जहां कन्हैया खेले... कृष्ण यहां की गलियों में खेला करते थे मथुरा से 15 किलोमीटर दूर वृंदावन है। यह भगवान कृष्ण का आध्यात्मिक घर माना जाता है। मथुरा में भगवान कृष्ण के सबसे ज्यादा मंदिर भी यहीं हैं। यहां बांके बिहारी, प्रेम मंदिर, कृष्ण-बलराम इस्कॉन मंदिर, राधावल्लभ, गोविंद देव, मदन मोहन, रंगाजी, जयपुर, सेवा कुंज, शाहजी समेत 5 हजार से ज्यादा मंदिर हैं। इन सभी में बांके बिहारी मंदिर की एक अलग पहचान है। यहां हर दिन 40 से 50 हजार श्रद्धालु पहुंचते हैं। छुट्टियों के दिन यह संख्या 1 लाख और किसी खास पर्व पर 3 से 5 लाख तक पहुंच जाती है। बांके बिहारी मंदिर तक पहुंचने के लिए यहां के मुख्य रास्ते से 22 गलियां हैं। इसके अलावा 100 से ज्यादा छोटी गलियां भी हैं, जो एक-दूसरे से कनेक्ट हैं। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद अब यहां कॉरिडोर बनना तय हो गया है। इस कॉरिडोर के बनने से 9 बड़ी गलियों समेत 20 से ज्यादा गलियां खत्म हो रही हैं। स्थानीय स्तर पर इसका विरोध हो रहा है। ऐसी ही एक गली में घूमते हुए हमारी टीम एक महिला से मिली। उनका नाम संतोष शर्मा है। कॉरिडोर और इन गलियों के तोड़ने को लेकर बात करने पर संतोष कहती हैं- शहर तो बहुत हैं, लेकिन ब्रज कुछ ही रह गए हैं। वृंदावन एक छोटा-सा ब्रज है, इसे ब्रज ही रहने दिया जाए तो अच्छा है। इसे नष्ट न किया जाए। यहां जो कुंज गलियां हैं, वो भगवान श्रीकृष्ण की गलियां हैं। भगवान यहीं खेलते-घूमते थे। यमुना के तट पर जाते, गोपियों के साथ खेलते थे। अब हम लोगों को हटाया जा रहा है। अगर हम उनसे दूर चले गए तो कैसे रह पाएंगे? संतोष शर्मा ये भी कहती हैं- मेरा दावा है कि जो भी यहां 40 दिन रह लेता है, वह फिर यहीं का हो जाता है। वो कभी फिर ब्रज की गलियों को नष्ट करने का नहीं सोचेगा। फिर मंदिर के आगे-पीछे इतनी जगह है, वहां रेलिंग बनाई जाए। यमुना के किनारे कॉरिडोर बनाया जाए। वहां से भीड़ को मैनेज किया जाए। मंदिर के पास 9 गलियां टूटेंगी वृंदावन में 300 से ज्यादा छोटी-बड़ी गलियां हैं। बांके बिहारी मंदिर के आसपास करीब 100 गलियां हैं। 22 गलियां ऐसी हैं, जो सीधे बांके बिहारी मंदिर तक जाती हैं। कॉरिडोर बनने की स्थिति में 9 गलियां खत्म होंगी। प्रशासन ने इन गलियों का नाम रखा है। इन गलियों का नाम- सनेह बिहारी, दुसायत गली, गोली गली, मोहन बाग गली, अष्टसखी गली, हवेली वाली गली, दाऊजी मंदिर गली, बाजार गली, पुलिस चौकी गली हैं। इनकी चौड़ाई 4 से लेकर 10 फीट तक है। लंबाई 100 मीटर से लेकर 300 मीटर तक है। मध्य प्रदेश के इंदौर से आई माधुरी सोनी कॉरिडोर को लेकर कहती हैं- हमें ऐसी सहूलियत नहीं चाहिए कि कुंज गलियां ही खत्म हो जाएं। अगर भीड़ ही मैनेज करना है तो प्रशासन कुछ और व्यवस्था करे। उज्जैन के महाकाल मंदिर में कॉरिडोर बना। वहां कोई सुविधा नहीं है। 4 से 8 घंटे तक लाइन लगती है। बांके बिहारी के पास तो हम इससे पहले ही पहुंच जाते हैं। उनके आंगन में 1-1 घंटे रहते हैं, कोई कुछ नहीं कहता। कृष्ण 5 हजार साल पहले आए, कुंज गलियां 500 साल पुरानी, फिर कनेक्शन कैसे? भगवान श्रीकृष्ण का जन्म द्वापर युग के आखिरी वक्त में हुआ था। पुराणों के मुताबिक, उनका जन्म 3228 ईसा पूर्व यानी आज से करीब 5,252 साल पहले हुआ था। वहीं, कुंज गलियों का जो इतिहास मिलता है, वह करीब 500 साल पहले का है। फिर इन्हें श्रीकृष्ण से क्यों जोड़ा जाता है? हम इस सवाल को लेकर श्री बांके बिहारी मंदिर प्रबंधन समिति के पूर्व उपाध्यक्ष घनश्याम गोस्वामी से मिले। घनश्याम बताते हैं- वृंदावन कृष्ण की क्रीड़ा भूमि रही है। इसे इस श्लोक से समझिए। घनश्याम गोस्वामी श्लोक का हिंदी में अर्थ बताते हैं- तुम किसका ध्यान लगाकर बैठे हो सुखदेव, वृंदावन में आओ और मेरे दर्शन करो। यहां की गलियों में हर वक्त ठाकुर जी रहते हैं, उनको देखने के लिए दिव्य दृष्टि चाहिए। बांके बिहारी जी को कुंज गलियों से ही प्रकट किया गया। उस वक्त यहां इतना घना जंगल और लताएं थीं कि सूर्य का प्रकाश तक नहीं आता था। 500 साल पहले यहां स्वामी हरिदास जी ने यमुना के किनारे तपस्या की और फिर ठाकुर जी प्रकट हुए। भगवद्गीता और गर्ग संहिता में उल्लेख
बांके बिहारी मंदिर में सेवा का काम गोस्वामी परिवार करता आ रहा है। कुंज गलियों के इतिहास को लेकर हमने मंदिर के वरिष्ठ सेवायत गोपी गोस्वामी से बात की। वह कहते हैं- वृंदावन की एक-एक गली ठाकुरजी से जुड़ी है। भगवद्गीता और गर्ग संहिता में उसका उल्लेख है। कृष्ण 5 हजार साल पहले आए, कुंज गलियां 500 साल की ही हैं तो क्या कनेक्शन हुआ? इसका जवाब यह है कि भगवान कृष्ण के चले जाने के बाद वृंदावन लुप्त हो गया। यहां तो घना वन था। इसके बाद हरिगढ़ के हरिदासपुर में जन्मे महान संगीतज्ञ स्वामी हरिदास महाराज के संगीत से यहां 1543 में आराध्य प्रभु बांके बिहारी प्रकट हुए। गोपी गोस्वामी कहते हैं- इन सबका उल्लेख वृंदावन नामावली, वृंदावन धामावली में मिलता है। उस वक्त 48 वन मिलकर वृंदावन बना था। भगवद्गीता में एक श्लोक है- मुक्ति कहें गोपाल सौ, मेरी मुक्ति बताएं, ब्रज रज उड़ मस्तक लगे तो मुक्ति मुक्त है जाए। यानी मुक्ति के लिए यहां आना सौभाग्य की बात होती है। यहां गरुड़ और लक्ष्मी जी का प्रवेश नहीं था। श्रीमद्भगवतगीता में कुंज गलियों की बात
500 साल पहले वृंदावन में कुंज गलियां नहीं थीं। तब कुंज लताएं थीं। श्रीमद्भगवतगीता में लिखा है- अर्जुन ने श्रीकृष्ण से पूछा कि आप कहां रहते हैं, सब लोग आपको ढूंढ रहे थे? भगवान श्रीकृष्ण ने इसका जवाब दिया- इसका हिंदी अर्थ है- 'मैं जहां रहता हूं उस जगह को सूर्य, चंद्रमा और अग्नि प्रकाशित नहीं कर सकती। जो एक बार वहां जाता है, वह फिर संसार में वापस नहीं आता। वही हमारा धाम है।' यहां श्रीकृष्ण कुंज गलियों को लेकर यह बात कहते हैं। कुंज गलियों का उल्लेख पुराणों में नहीं मिलता, जबकि लता कुंजों का उल्लेख पुराणों में मिलता है। द्वापर में वृंदावन का स्वरूप वन के रूप में ही था और बसावट नहीं थी, गलियों का नाम बाद में पड़ा। कुंज गलियों को लेकर 2 किंवदंतियां प्रचलित कुंज गलियों में हमारी मुलाकात 60 साल के चतुर्भुज गोस्वामी से हुई। वह राधावल्लभ मंदिर के पास दुकान चलाते हैं। कुंज गलियों को लेकर वह एक प्रचलित किस्सा सुनाते हैं। कहते हैं- एक बार राजा अकबर यहां आए थे। उस वक्त उनकी मुलाकात कुंज गलियों में हरिदास जी से हुई। अकबर ने कहा- महाराज कोई सेवा हमें बताएं। हरिदास जी ने पहले तो मना किया, फिर अकबर के बार-बार कहने पर उन्होंने कहा कि हमारी सीढ़ी थोड़ी टूट गई है, उसे बनवा दीजिए। अकबर ने हामी भरी और कहा दिखाइए। सीढ़ी मणि से जगमगा रही थी। इसे देखकर अकबर का हिसाब-किताब फेल हो गया। उन्होंने कहा कि इतनी ताकत हमारे पास नहीं है। चतुर्भुज गलियों को लेकर दूसरा किस्सा सुनाते हुए चतुर्भुज कहते हैं- ये जो गलियां बनी हैं, उनके पीछे एक हिसाब है। एक समय देश में मुस्लिम आक्रांताओं का आतंक था। लेकिन, वे लोग कुंज गलियों में नहीं आ पाते थे। गलियां भूल-भुलैया जैसी हैं। यहां 4-5 आदमी बांके बिहारी (मंदिर) की रक्षा के लिए हर गली में तैनात रहते थे। बाकी आज से 2-4 साल पहले इन गलियों से किसी को दिक्कत नहीं थी। जब से पुलिस तैनात हुई, सबको दिक्कत हो गई। ये लोग सड़क बंद कर देते हैं, इसलिए भीड़ बढ़ती है। भक्ति काल में वृंदावन का सबसे ज्यादा विकास हुआ वृंदावन की गलियों के उद्गम को लेकर हम ब्रज संस्कृति शोध संस्थान के प्रकाशन अधिकारी एवं ब्रज संस्कृति विशेषज्ञ गोपाल शरण शर्मा से मिले। वह कहते हैं- 16वीं शताब्दी में भक्तिकाल चल रहा था। उस वक्त वृंदावन भक्ति के बड़े केंद्र के रूप में उभर रहा था। मुगलों का शासन था, देश में अराजकता थी। देश को एकता के सूत्र में बनाए रखने का भक्ति सबसे सशक्त माध्यम थी। इसलिए दक्षिण के भी संत यहां आ गए। उस वक्त 3 आचार्य हुए। पहले- स्वामी हरिदास जी, दूसरे- हितहरवंश जी और तीसरे- हरेराम व्यास जी। हरिदास जी ने कृष्ण की भक्ति से ठाकुरजी को प्रकट किया। वृंदावन में ही कई और लीला प्रकट हुईं, जैसे एक में राक्षसों का वध और दूसरे में चीरहरण लीला। वृंदावन की जो लीला थी, वह कुंज और निकुंज की लीला थी। बांके बिहारी यहां अपनी प्रिया राधा जी के साथ लीलाएं करते थे। उस वक्त उनके दोस्त बलराम का भी प्रवेश नहीं था। राधा की अष्टसखियां भी यहां नहीं आ सकती थीं। उस वक्त यहां पूरा क्षेत्र कुंज यानी वृक्षों की लताओं से आच्छादित (ढंका) था। वाणी साहित्य में इन सबका उल्लेख मिलता है। उसमें भगवान कृष्ण को श्यामा कुंज बिहारी कहा जाता है। गोपाल शर्मा कहते हैं- जिस वक्त वृंदावन का नगरीकरण हो रहा था, उस वक्त कई राजा मंदिरों का निर्माण करवा रहे थे। मंदिरों में रहने की व्यवस्था नहीं होती थी। उस वक्त राजा-महाराजाओं ने कुंज बनवाए। यहीं गलियां भी थीं, जिनकी संख्या बाद में बढ़ती चली गई। वृंदावन की ही एक गली का नाम है दान गली। इसके बारे में मान्यता है कि यहां बांके बिहारी गोपियों से दान मांगते थे। एक मान गली है। कहा जाता है कि राधा यहां मानकर बैठी थीं। मान का मतलब रूठ जाना होता है। --------------------------------------------------- उत्तर प्रदेश से जुड़ी ये खबर भी पढ़ें... यूपी में गंगा को मैली कर रही काली नदी, इत्र नगरी में सीवेज, औद्योगिक कचरा और केमिकल बढ़ा रहे प्रदूषण कन्नौज शहर से 15 किलोमीटर दूर है मेहंदीघाट। एक तरफ शव जल रहे, दूसरी तरफ काली नदी और गंगा के संगम पर लोग स्नान कर रहे। गंगा स्नान कर रहे लोगों के चेहरे के भाव बता रहे हैं कि मजबूरी में उन्हें ऐसा करना पड़ रहा। दरअसल, काली नदी, जो कभी नागिन की तरह लहराती थी, कालिंदी बनकर गंगा को गले लगाती थी। आज नाले की तरह सिसक रही है। यहां काली नदी का काला, बदबूदार जल और गंगा की मटमैली धारा एक-दूसरे से लिपटते हैं। मानो दोनों अपनी व्यथा साझा कर रही हों। पढ़ें पूरी खबर