रामदयाल महाराज ही रहेंगे रामस्नेही संप्रदाय सींथल पीठ के महंत, सुप्रीम कोर्ट ने क्षमाराम की अपील खारिज की

रामदयाल महाराज ही रहेंगे रामस्नेही संप्रदाय सींथल पीठ के महंत, सुप्रीम कोर्ट ने क्षमाराम की अपील खारिज की
करीब 29 वर्षों से चल रहे रामस्नेही संप्रदाय सींथल पीठ के महंत पद और मठ की संपत्तियों के विवाद में अंततः न्यायिक विराम लग गया है। सर्वोच्च न्यायालय ने 23 मई 2025 को क्षमाराम महाराज की विशेष अनुमति याचिका (एस.एल.पी.) को खारिज करते हुए निचली अदालत और उच्च न्यायालय द्वारा रामदयाल महाराज को गद्दी पति मानने के निर्णय को बरकरार रखा है। इससे पहले 17 मई 2008 को अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश बीकानेर और 9 अप्रैल 2025 को राजस्थान उच्च न्यायालय, जोधपुर ने भी रामदयाल महाराज के पक्ष में निर्णय सुनाया था। 29 वर्ष पुराने विवाद का पटाक्षेप रामस्नेही संप्रदाय की सींथल पीठ के महंत पद और संपत्तियों को लेकर वर्ष 1996 से विवाद चला आ रहा था। इस संबंध में बीकानेर की अपर जिला एवं सत्र न्यायालय क्रम-2 ने 17 मई 2008 को फैसला सुनाते हुए रामदयाल महाराज को विधिवत गद्दी पति घोषित किया था। न्यायालय ने क्षमाराम महाराज को आदेशित किया था कि वे मठ की समस्त संपत्तियों को रामदयाल महाराज को सुपुर्द करें। उच्च न्यायालय ने भी की पुष्टि क्षमाराम महाराज ने इस फैसले को राजस्थान उच्च न्यायालय, जोधपुर में चुनौती दी थी। वहां भी 9 अप्रैल 2025 को उच्च न्यायालय ने बीकानेर की अधीनस्थ अदालत के फैसले को सही ठहराया और रामदयाल महाराज को मठ का महंत व गद्दी पति माना। इसके बाद क्षमाराम महाराज ने सर्वोच्च न्यायालय में विशेष अनुमति याचिका (एस.एल.पी. संख्या 14705/2025) दायर की, जिसे 23 मई 2025 को खारिज कर दिया गया। इस तरह अब सुप्रीम कोर्ट की अंतिम मुहर के साथ यह विवाद समाप्त हो गया है और रामदयाल महाराज को सींथल पीठ का वैधानिक महंत और संपत्तियों का प्रबंधक माना गया है।