अनकही:विधानसभा चुनाव में वाजपेयी ने बदल दिया था नारा, देश में चल पड़ा पीएम बनाने का संदेश

अनकही:विधानसभा चुनाव में वाजपेयी ने बदल दिया था नारा, देश में चल पड़ा पीएम बनाने का संदेश
राजस्थान में 1993 के विधानसभा चुनाव चल रहे थे। हनुमानगढ़ सीट पर कभी भाजपा चुनाव नहीं जीती थी। अटल बिहारी वाजपेयी की छवि और उनके भाषण के अंदाज के साथ उनके प्रति लोगों के विश्वास को जानते हुए वाजपेयी को चुनावी रैली के लिए बुलाया गया। हनुमानगढ़ टाउन में सभा का समय शाम का था। लोगों का हुजूम 4 बजे से पहले जुड़ गया। समय बीतता गया और लोगों का इंतजार बढ़ता गया। अन्य नेताओं के भाषणों के बीब सूचनाएं आती रहीं.. इंतजार कीजिए, वाजपेयी जरूर आएंगे। अटल जी रात 11 बजे पहुंचे। मैदान भरा रहा। वे बिना किसी औपचारिकता के सीधे मंच पर पहुंचे। वाजपेयी के पक्ष में नारे लग रहे थे। मंच संचालन संभाल रहे स्थानीय युवा नेता व भाजपा के मंत्री प्रेम बंसल बेहद उत्साहित थे। वे मंच से प्रचलित नारे लगवाने लगे... अगली बारी... जनता बोलती अटल बिहारी। नारों के बीच ही बंसल ने अटल जी को संबोधन के लिए आमंत्रित कर लिया और नारे लगाए जाते रहे। अटल जी तेजी से पोडियम पर आए, माइक लेने से पहले ही हाथ बढ़ाकर प्रेम बंसल का कंधा पकड़ा और दूर हटाया। प्रेम बंसल ने बताया अटल जी का यह एक्शन देख हजारों की भीड़ एकदम खामोश हो गई। न मंच और न ही जनता समझ पाई कि अटल जी क्रोधित हैं या उनका यह कोई नया पैंतरा है। मैं एकतरफ हट गया। वाजपेयी ने बिरपरिचित अंदाज में जनता से कहा- अगली बारी अटल बिहारी... अगली बारी अटल बिहारी सुनते-सुनते कान पक गए हैं। कोई अगली बारी नहीं, अब बोलो... अबकी बारी अटल बिहारी। फिर एक बार उन्होंने दुबारा बोला- अबकी बारी... जनता से आवाज आई... अटल बिहारी। ऐसा हुआ नहीं कि जनता में उत्साह कई गुना बढ़ गया। पूरे देश में यह नारा एक मैसेज बनकर दौड़ पड़ा। हनुमानगढ़ की इस सभा से अगली बारी अबकी बारी में तब्दील हो गया। वरिष्ठ पत्रकार अमरपाल सिंह वर्मा कहते हैं- हनुमानगढ़ में तब तक जीत में शुन्य रही भाजपा न केवल विधानसभा का चुनाव जीती, बल्कि अगले लोकसभा के 1996 के चुनाव तक 3 साल में इस बदले नारे ने देश की हवा भी बदल दी। देश की राजनीति को एक नई दिशा भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी 16 मई 1996 को पहली बार देश के प्रधानमंत्री बने। राजनीतिक रूप से शक्तिशाली वाजपेयी का प्रधानमंत्री बनने तक के सफर में कई फैक्टर लगातार काम आते रहे, लेकिन राजस्थान ने लोकसभा चुनाव से 3 साल पहले ही वाजपेयी के प्रधानमंत्री बनने की तारीख लिख दी थी। यह सिर्फ हवा का झोंका बदलने और माइंडसेट बनाने का मामला था, जिसने वाजपेयी के प्रति लोगों की सोच में बदलाव ला दिया था।