हाईकोर्ट ने कहा-रेप में क्रूरता नहीं, फांसी नहीं दे सकते:बाल आयोग बोला- पीड़िता 4 साल की मासूम है; जानिए, मौत की सजा को क्यों बदला

तारीख- 21 अप्रैल 2023। खंडवा जिला कोर्ट ने 4 साल की मासूम से रेप के आरोपी को दी फांसी की सजा। फैसले में लिखा- आरोपी को तब तक फांसी पर लटकाया जाए, जब तक कि प्राण नहीं निकल जाएं तारीख- 19 जून 2025। जबलपुर हाईकोर्ट ने फांसी की सजा को 25 साल की सजा में बदला। फैसले में लिखा- मामला बर्बर है, लेकिन क्रूर नहीं। दोषी आदिवासी है, निरक्षर है, उसे जीवन में सही संस्कार नहीं मिले। अब हाईकोर्ट के इस फैसले को लेकर सवाल उठ रहे हैं। हाईकोर्ट ने जिन तर्कों के साथ निचली अदालत के फैसले को बदला है उस पर मध्यप्रदेश बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने आपत्ति जताई है। वहीं जिस मासूम के साथ ये घटना हुई थी उसके परिजनों को पता ही नहीं कि आरोपी की फांसी की सजा बदल दी गई है। हाईकोर्ट ने जिन दलीलों को सुनकर आरोपी की फांसी की सजा को बदला क्या वो सही है। बाल अधिकार आयोग की फैसले को लेकर आपत्ति क्यों है। भास्कर ने एक्सपर्ट और बाल अधिकार आयोग के सदस्यों से बात की। पढ़िए रिपोर्ट अब जानिए पुलिस ने आरोपी को कैसे पकड़ा
मासूम के परिजन से सूचना मिलने के बाद पुलिस ने बच्ची की तलाश शुरू की। परिजन से पूछताछ की तो उन्होंने बताया कि उनकी झोपड़ी के पास ही बने राजपूत ढाबे पर वेटर का काम करने वाला राजकुमार आया था। उस वक्त रात के करीब 8-9 बजे होंगे। उसने सोने के लिए खटिया मांगी। वह झोपड़ी से करीब 100 फीट दूर खेत में खटिया बिछाकर सो गया। सुबह राजकुमार कब चला गया किसी को पता नहीं चला। परिवार की बातें सुनकर पुलिस को राजकुमार पर शक हुआ। स्निफर डॉग भी ढाबे पर जाकर रुक गया था
पुलिस ने स्निफर डॉग की भी मदद ली थी। डॉग ने बच्ची के कपड़े सूंघे और वो कुछ ही दूरी पर बने राजपूत ढाबे पर आकर रुक गया। पुलिस का राजकुमार पर शक और ज्यादा गहरा गया। ढाबे के स्टाफ ने बताया कि राजकुमार तो रात से ही गायब है। पुलिस ने राजकुमार के मोबाइल को सर्विलांस पर डालकर उसकी लोकेशन ट्रैक की। राजकुमार बोला- बच्ची को मारकर फेंका
मोबाइल लोकेशन के आधार पर पुलिस राजकुमार तक पहुंच गई और उसे गिरफ्तार कर लिया। राजकुमार ने पुलिस को बताया कि उसने बच्ची को मारकर फेंक दिया है। वह पुलिस को उस जगह पर ले गया। पुलिस को झाड़ियों में पड़ी बच्ची मिल गई। मगर, उसकी मौत नहीं हुई थी। उसकी हालत गंभीर थी। उसे तत्काल इंदौर रेफर किया गया, जहां इलाज के बाद उसकी जान बच गई। पूरी प्लानिंग के साथ बच्ची से रेप किया
ढाबे के मालिक के बेटे ने पुलिस को बताया कि घटना वाले दिन राजकुमार ने आधा दिन काम किया था और शाम को 6-7 बजे 120 रुपए लेकर चला गया। राजकुमार ढाबे पर ही सोता था, लेकिन उस रात उसने पहले से योजना बनाकर बच्ची के घर जाकर खटिया मांगी और वारदात को अंजाम दिया। पुलिस की पूछताछ में राजकुमार ने दिलीप नाम के अन्य शख्स का नाम भी लिया था। पूछताछ में बताया था कि दिलीप ने भी बच्ची के साथ रेप किया है। हालांकि जांच के दौरान दिलीप का वारदात में शामिल नहीं होना पाया गया। इसके बाद पुलिस ने दिलीप को आरोपी नहीं बनाया। अब जानिए किस आधार पर सुनाई ट्रायल कोर्ट ने फांसी की सजा पुलिस ने परिस्थितिजन्य और साइंटिफिक साक्ष्य इकट्ठा किए और राजकुमार के खिलाफ खंडवा जिला कोर्ट में चालान पेश किया। कोर्ट ने छह महीने की सुनवाई के बाद आरोपी राजकुमार को फांसी की सजा सुनाई। अभियोजन पक्ष के वकील चंद्रशेखर हुक्मलवार के मुताबिक आरोपी को सजा दिलाने में मेडिकल जांच की अहम भूमिका रही। इस फैसले में ये 3 बातें अहम साबित हुई। 21 अप्रैल 2023 को फैसला सुनाते हुए विशेष न्यायाधीश प्राची पटेल की कोर्ट ने कहा- जिस बर्बरता से आरोपी ने बच्ची के साथ घटना की, उसे देखते हुए मृत्युदंड की सजा से कम नहीं हो सकता। इसके लिए उम्रकैद पर्याप्त नहीं है। कोर्ट ने कहा कि आरोपी को तब तक फांसी पर लटकाया जाए, जब तक कि उसके प्राण नहीं निकल जाएं। अब जानिए हाईकोर्ट में किस तरह से हुई बहस अभियोजन पक्ष की दलील- नरमी नहीं बरती जाए
अभियोजन की तरफ उपमहाधिवक्ता यश सोनी ने कोर्ट में पैरवी की। उनकी तरफ से दलील दी गई कि सारे सबूत दोषी के खिलाफ हैं। फॉरेंसिक एविडेंस भी दोषी के जुर्म को साबित करते हैं। निचली अदालत ने दोषी को फांसी की सजा सुनाई है उसे बरकरार रखा जाए। जिस तरह से दोषी ने चार साल की मासूम को मरने के लिए छोड़ दिया था वह माफी के लायक नहीं है। बचाव पक्ष बोला- गिरफ्तारी के बाद पुलिस ने सबूत गढ़े
राजकुमार की तरफ से हाईकोर्ट में केस की पैरवी करने वाले समर सिंह राजपूत ने कहा कि हमने कोर्ट के सामने वो तथ्य रखे जो निचली अदालत में बहस के दौरान नहीं रखे गए थे। ये भी बताया कि राजकुमार अनुसूचित जनजाति (ST) वर्ग से आता है जो आर्थिक रूप से कमजोर माना जाता है। साथ ही हमने कोर्ट को ये बताया कि जेल में उसका बर्ताव ठीक है। ये उसका पहला अपराध है। उसने नासमझी में कदम उठाया है। कोर्ट ने कहा, ये मामला बर्बर है लेकिन क्रूर नहीं कोर्ट ने मामले को बर्बर कहा, लेकिन क्रूर नहीं माना। हाईकोर्ट ने कहा कि ट्रायल कोर्ट ने जिन आधारों पर आरोपी को मौत की सजा दी, वे कानूनी रूप से टिकाऊ नहीं हैं। ट्रायल कोर्ट का यह कहना कि बच्ची स्थायी रूप से दिव्यांग हो गई है, मेडिकल साक्ष्यों से सिद्ध नहीं होता। डॉक्टर की गवाही से यह स्पष्ट नहीं हो पाया कि बच्ची के शरीर का कौन सा अंग क्षतिग्रस्त हुआ या उसमें कोई स्थायी विकलांगता आई। मेडिकल रिपोर्ट अधूरी और अस्पष्ट पाई गई, इसलिए हाईकोर्ट ने निचली अदालत के इस निष्कर्ष को स्वीकार नहीं किया। इसके साथ ही कोर्ट ने आरोपी की सामाजिक और आर्थिक पृष्ठभूमि को भी ध्यान में रखा। आरोपी एक 20 वर्षीय आदिवासी युवक है, जो न तो पढ़ा-लिखा है और न ही उसका कोई आपराधिक रिकॉर्ड है। उसने बचपन में ही घर छोड़ दिया था और एक ढाबे में मजदूरी कर रहा था। इन सभी बातों को आरोपी के पक्ष में माना गया। हाईकोर्ट ने इन मामलों का रिफ्रेंस दिया
भग्गी बनाम MP (2024), मनोहरन बनाम राज्य (2019), धनंजय चटर्जी केस (1994) इन 3 मामलों का रिफ्रेंस देकर यह तय किया गया है कि मौत की सजा केवल उन्हीं मामलों में दी जानी चाहिए जो "रेयरेस्ट ऑफ द रेयर" कैटेगरी में आते हों। इस फैसले की कानूनी व्याख्या के लिए सुप्रीम कोर्ट की वकील रिद्धि गोयल से बातचीत की गई। एमपी बाल संरक्षण अधिकार आयोग ने फैसले पर सवाल उठाए
हाईकोर्ट के फैसले को लेकर बाल संरक्षण अधिकार आयोग की सदस्य निवेदिता शर्मा ने सवाल उठाए हैं। शर्मा कहती हैं- जब मासूम को इंदौर रेफर किया गया था, तब मैं उससे मिली थी। उसकी हालत देखकर मैं दंग रह गई थी। वह किसी से बात नहीं कर रही थी। किसी को अपने शरीर पर हाथ तक नहीं लगाने दे रही थी। बच्चे सामान्य तौर पर चुलबुले होते हैं, लेकिन उस बच्ची से उसकी मासूमियत तक छीन ली गई थी। मैंने जब डॉक्टरों से उसकी इस हालत के बारे में पूछा तो उन्होंने बताया था कि बच्ची घटना के बाद सदमे में है।
मैं उसके घर भी गई थी। उसके परिवार की हालत बेहद खराब थी। माता-पिता अशिक्षित और बेहद गरीब हैं। कोर्ट के फैसले के इन दो पॉइंट्स पर शर्मा को आपत्ति 1. ये केस बर्बर था, मगर इसमें क्रूरता नहीं थी शर्मा का तर्क: मैं न्यायमूर्ति महोदय से पूछना चाहती हूं कि क्रूरता की परिभाषा क्या है? चार साल की मासूम बच्ची के साथ ऐसा घिनौना अपराध हुआ और अदालत कह रही है कि ये क्रूरता नहीं है? आरोपी ने बच्ची को झाड़ियों में फेंक दिया, जहां वह मर भी सकती थी, किसी जानवर का शिकार बन सकती थी। क्या ये क्रूरतम नहीं है? आरोपी ने यह मानकर फेंका कि बच्ची मर चुकी है- यानी इरादा साफ तौर पर हत्या का था। और जब यह सब हो रहा था, तो बच्ची को जो पीड़ा हुई होगी, वह हम कल्पना भी नहीं कर सकते। उसके शरीर का विकास तक पूरा नहीं हुआ था। डॉक्टरों ने जब उसकी हालत देखी तो उसे तुरंत रेफर किया गया। 2. दोषी निरक्षर और आदिवासी है शर्मा का तर्क: अगर दोषी पढ़ा-लिखा होता, तो क्या तब हम इसे क्रूरता मानते? क्या संस्कार केवल शिक्षा से आते हैं? दोषी चाहे किसी भी समुदाय से हो, किसी को यह अधिकार नहीं है कि वह मासूमियत को कुचले। बच्ची भी आदिवासी समुदाय से थी। उसका परिवार भी गरीब ही है, मजदूरी करता है। 4 साल की बच्ची सर्दियों में झाड़ियों में पड़ी मिली, ये क्रूरता नहीं है? आम लोग इसे कैसे समझ सकेंगे? हाईकोर्ट का यह तर्क कि आरोपी की कोई आपराधिक पृष्ठभूमि नहीं है, या वह समाज के लिए खतरा नहीं है, स्वीकार नहीं किया जा सकता। क्या हम तब तक इंतजार करेंगे जब तक कि वह दोबारा अपराध करे? सरकार ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ की बात करती है, लेकिन अगर इस मामले में भी हम संवेदनशील नहीं हुए तो फिर क्या होगा? मासूम के माता-पिता को फैसले की खबर तक नहीं
भास्कर ने मासूम के पिता को बताया कि आरोपी की फांसी की सजा को 25 साल के कारावास में बदल दिया है तो वे बोले- उसने इतना गंदा काम किया है कि उसे फांसी की ही सजा मिलना चाहिए। पिता को बताया कि कोर्ट ने माना है कि अपराध क्रूरता की श्रेणी में नहीं आता तो वे बोले- ये तो बेकार की बात है। चार साल की बेटी से घिनौना काम हुआ है। वे बोले- कोर्ट कह रहा है कि वो अनपढ़ है, आदिवासी है इसलिए फांसी नहीं दे सकते, तो मैं भी अनपढ़ हूं और आदिवासी हूं। क्या मुझे भी गुनाह करने का हक मिल गया है? पिता ने बताया- चलते-चलते गिर जाती है मासूम
बच्ची के पिता ने बताया कि घटना को दो साल हो चुके हैं। बेटी की उम्र अब 6 साल है, लेकिन उसके शरीर और मन पर हादसे का गहरा असर हुआ है। वह बेहद कमजोर हो गई है। कोई काम नहीं कर पाती। चलते-चलते गिर जाती है। उसे उस दिन की बात तो याद नहीं, लेकिन अब भी मन ही मन रोती है। छोटी बच्ची है, कुछ कहती नहीं है। उसके साथ ये सब हुआ, तब उसे समझ भी नहीं थी। बस, वो तो ऊपर वाले की कृपा से बच गई है। पढ़ें पूरी खबर... रेपिस्ट को फांसी की सजा बदलकर 25 साल कारावास दिया: एमपी हाईकोर्ट ने कहा- वह निरक्षर, अच्छी शिक्षा नहीं मिली, इसलिए अपराध किया मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने 4 साल की बच्ची के साथ रेप के दोषी को राहत दी है। हाईकोर्ट की जबलपुर बेंच ने उसकी फांसी की सजा को 25 साल की सजा में बदल दिया है। जस्टिस विवेक अग्रवाल और जस्टिस देवनारायण मिश्रा की डिवीजन बेंच ने कहा, 'दोषी निरक्षर और आदिवासी है। बचपन में उसे अच्छी शिक्षा नहीं मिली, जिसके चलते उसने यह अपराध किया था।' पढ़ें पूरी खबर...