आज का एक्सप्लेनर:क्या ईरान पर हमला करके फंस गए नेतन्याहू; रोज ₹6,000 करोड़ खर्च, ईरानी मिसाइलों ने चौंकाया

13 जून 2025 की सुबह… इजराइल के 200 फाइटर जेट ने ईरान के अलग-अलग शहरों में 300 से ज्यादा बम गिराए। एक ही झटके में ईरान की सबसे ताकतवर सेना IRGC के कमांडर इन चीफ हुसैन सलामी समेत 20 टॉप मिलिट्री कमांडर और 14 परमाणु वैज्ञानिक मार दिए। अगले ही दिन ईरान ने पलटवार किया। एक दिन में 100-100 मिसाइलें दागीं। ‘क्लस्टर बम’ और सेजील जैसी हाइपरसोनिक बैलिस्टिक मिसाइलों से चौंका दिया। संघर्ष में करीब 900 इजराइली घायल हुए हैं और अब तक 24 से ज्यादा की मौत हो चुकी है। क्या ईरान पर सीधा हमला करके फंस गया इजराइल और अब मुश्किल में हैं नेतन्याहू; मौजूदा हालात को समझेंगे आज के एक्सप्लेनर में… सवाल-1: ईरान के हमलों ने इजराइल को कैसे चौंका दिया है?
जवाबः 14 जून को ईरान ने जवाबी कार्रवाई करते हुए 100 ड्रोन और 100 मिसाइलों से हमला किया। ईरान ने अलग स्ट्रैटजी अपनाते हुए पहले सस्ती मिसाइलें और ड्रोन दागे। इससे इजराइल के आयरन डोम पर दबाव पड़ा, क्योंकि यह एक बार में सीमित मिसाइलें ही रोक सकता है। जब इजराइल का एयर डिफेंस सिस्टम कमजोर हुआ, तो ईरान ने नई तकनीक की हाइपरसोनिक बैलिस्टिक मिसाइलों से हमला किया, जिससे इजराइल के तेल अवीव, हाइफा और बीर्शेबा समेत कई शहरों में भारी नुकसान हुआ। इसके अलावा 19 जून को ईरान ने 20 बैलिस्टिक मिसाइलें दागीं, जिसमें एक क्लस्टर बम वाली मिसाइल थी। ये बम मिसाइल के कंटेनर में बंद होते हैं। लॉन्च के बाद कंटेनर हवा में खुलता है और इससे छोटे-छोटे बम निकल कर एक साथ कई टारगेट पर हिट करते हैं। छोटे बमों को जमीन पर गिरने पर या कुछ समय बाद फटने के लिए डिजाइन किया जाता है, यानी यह बम हवा में भी फट सकते हैं और जमीन पर गिरने के कुछ देर या कुछ सालों बाद भी फट सकते हैं। ईरान के लगातार हमलों में 21 जून तक इजराइल के 24 लोग मारे गए और 900 से ज्यादा लोग घायल हो गए। ईरान ने इजराइल के 3 F-35 फाइटर जेट गिराने का भी दावा किया। इजराइल की स्टॉक एक्सचेंज बिल्डिंग, अस्पताल, मोसाद हेडक्वार्टर और रिहायशी इमारतों को काफी ज्यादा नुकसान हुआ है। सवाल-2: इजराइल को कितनी महंगी पड़ रही ईरान से ये जंग?
जवाबः ईरान और इजराइल के बीच जंग सिर्फ सैन्य नहीं, बल्कि आर्थिक संकट में भी बदलती जा रही है। पूर्व इजराइली रक्षा सलाहकार ब्रिगेडियर जनरल रीम एमीनाक के मुताबिक, इस जंग में इजराइल को रोजाना 725 मिलियन डॉलर यानी करीब 6,000 करोड़ रुपए खर्च करने पड़ रहे हैं। इसमें सिर्फ मिसाइल, जेट ईंधन, बमबारी और सैनिक तैनाती जैसे सीधे खर्च शामिल हैं। पब्लिक इन्फ्रास्ट्रक्चर को हुए नुकसान और प्रोडक्टिविटी में गिरावट को भी जोड़ा जाए, तो असल खर्च इससे कहीं ज्यादा हो सकता है। 13 जून को ईरान पर अटैक के बाद पहले दो दिन में इजराइल का खर्च 1.45 अरब डॉलर यानी करीब 12,500 करोड़ रुपए तक पहुंच गया था। इसमें से करीब 5 हजार करोड़ रुपए बमबारी, जेट ईंधन और बाकी रक्षा संचालन में खर्च किए गए। इजराइल का सबसे बड़ा खर्च ईरानी मिसाइलों और ड्रोन को रोकने के लिए आयरन डोम, एरो और डेविड स्लिंग जैसे एयर डिफेंस सिस्टम पर हो रहा है। इजराइल हर रात 285 मिलियन डॉलर यानी करीब 2,375 करोड़ रुपए सिर्फ इंटरसेप्शन पर खर्च कर रहा है। इजराइली वित्त मंत्रालय ने 2025 में GDP ग्रोथ रेट का अनुमान 4.3% से घटाकर 3.6% कर दिया है क्योंकि इजराइल का रक्षा बजट पहले ही गाजा युद्ध में काफी खर्च हो चुका है। 2025 में पहले से तय बजट घाटे की सीमा 4.9% से बढ़ सकता है। इजराइल के वित्त मंत्रालय ने 2025 के लिए जो बजट घाटे की सीमा तय की थी, वह GDP का 4.9% यानी लगभग 27.6 अरब डॉलर थी, लेकिन यह अनुमान ईरान के साथ नया युद्ध शुरू होने से पहले का था। अब इजराइल का बजट घाटा और बढ़ सकता है। सवाल-3: क्या इजराइल पहले की तरह अमेरिका-यूरोप का समर्थन नहीं जुटा सका?
जवाबः 2006 में जब इजराइल ने हिजबुल्लाह और 2014 में हमास के खिलाफ युद्ध लड़े, तो अमेरिका और यूरोप ने हर तरह से मदद की। अमेरिका ने इजराइल को सैन्य सहायता, खुफिया जानकारी और कूटनीतिक समर्थन दिया। इजराइल ने हिजबुल्लाह और हमास पर प्रेसिजन-गाइडेड बम भी दागे, जो अमेरिका ने दिए। यूनाइटेड नेशन्स में अमेरिका ने इजराइल के खिलाफ प्रस्तावों को वीटो भी कर दिया था। 1950 से 2022 तक इजराइल ने अमेरिका से 53 बिलियन डॉलर के हथियार खरीदे, जो सऊदी अरब के बाद दूसरा सबसे बड़ा खरीदार बन गया। ब्रिटेन और जर्मनी जैसे देशों ने भी इजराइल को कूटनीतिक समर्थन दिया। 2023 में जब इजराइल ने गाजा में हमास के साथ युद्ध शुरू किया तो अमेरिका सबसे बड़ा समर्थक देश बना। अमेरिकी हथियारों के दम पर ही इजराइल ने हमास को गाजा से उखाड़ दिया। अमेरिका ने इजराइल को करीब 30 बिलियन डॉलर यानी करीब 2.59 लाख करोड़ रुपए दिए, जिसमें सैन्य सहायता भी शामिल थी। अमेरिका ने F-35 फाइटर जेट्स, बैलिस्टिक मिसाइलें, एयर डिफेंस सिस्टम, गोला-बारूद, टैंक्स और सैनिक भी दिए। जबकि ब्रिटेन, फ्रांस और जर्मनी जैसे यूरोपीय देशों ने भी इजराइल को हथियारों की खेप भेजी, लेकिन यह मदद अमेरिका के मुकाबले बहुत कम थी। हालांकि यूरोपीय देशों का इजराइल को भरपूर समर्थन था। 20 जून को डोनाल्ड ट्रम्प ने न्यू जर्सी में पत्रकारों से बात करते हुए कहा कि इजराइल इस जंग में फिलहाल आगे है, इसलिए इस समय युद्ध रोकने की बात कहना मुश्किल है। ट्रम्प ने आगे कहा, जब कोई युद्ध जीत रहा होता है तो उसे रोकना कठिन होता है। उन्होंने माना कि ईरान के साथ बातचीत चल रही है, लेकिन जल्द कोई समाधान निकलने की उम्मीद नहीं है। अमेरिका यह तय करने में थोड़ा समय लेगा कि वह इजराइल की सीधी मदद करेगा या नहीं। 22 जून की सुबह ट्रम्प ने बताया कि अमेरिकी विमानों ने ईरान के 3 परमाणु ठिकानों बमबारी की है। इसी के साथ अमेरिका भी सीधे जंग में कूद पड़ा। सवाल-4: अब तक की जंग में किसका पलड़ा भारी है?
जवाबः बीते 8 दिनों में ईरान में 657 लोगों की मौत हुई है और 2000 से ज्यादा लोग घायल हैं। जबकि इजराइल में 24 लोग मारे गए हैं और 900 से ज्यादा घायल हुए हैं। इजराइल में ईरान जितने बुरे हालात नहीं हैं। 21 जून को ईरानी न्यूज एजेंसी फार्स न्यूज ने दावा किया कि इजराइल ने सुबह ईरान के इस्फहान न्यूक्लियर साइट पर हमला किया। IDF के प्रवक्ता इफी डफरिन ने बताया कि इस्फहान में परमाणु साइट पर यह दूसरी बार हमला किया गया है। इस बार न्यूक्लियर साइट के एक सेंट्रीफ्यूज पर बमबारी की गई। इजराइल इससे पहले भी कई बार ईरान के परमाणु ठिकानों को निशाना बना चुका है। इजराइल ने 19 जून को ईरान के अराक और खोंडब न्यूक्लियर साइट को निशाना बनाया था। टाइम्स ऑफ इजराइल को सेना ने बताया कि जंग की शुरुआत से अब तक 470 से ज्यादा ड्रोन यानी लगभग 99% ड्रोन को मार गिराया गया है। 20 जून की रात को भी ईरान ने 40 ड्रोन हमले किए। इजराइली एयरफोर्स ने सभी 40 ड्रोन को मार गिराया। सवाल-5: अगर जंग लंबी खिंचती है, तो इजराइल की चिंताएं क्या हैं?
जवाबः इजराइल का सबसे बड़ा संकट अब हथियार नहीं, बल्कि इंटरसेप्टर मिसाइलों का स्टॉक बन गया है। रिपोर्ट्स के मुताबिक दुनिया का सबसे एडवांस एयर डिफेंस सिस्टम रखने वाले इजराइल की ‘शील्ड’ टूटने के कगार पर है। बीते एक हफ्ते में ईरान ने 450 से ज्यादा मिसाइलें दागीं, जिनमें से 360 को इजराइली सिस्टम ने रोका, लेकिन 40 मिसाइलें शहरों में आकर गिरीं। इजराइली सैन्य अधिकारियों का अनुमान है कि अगर ईरान हमले की मौजूदा रफ्तार बनाए रखता है, तो महज 12 दिनों में इजराइल की इंटरसेप्टर मिसाइलें खत्म हो सकती हैं। इजराइल के ब्रिगेडियर जनरल रान कोचव ने कहा कि ये चावल के दाने नहीं हैं, सीमित हैं, खत्म हो सकते हैं। सवाल-6: क्या रूस और चीन के बयानों ने भी नेतन्याहू और ट्रम्प की मुश्किल बढ़ा दी है?
जवाबः 20 जून को रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने सेंट पीटर्सबर्ग में एक इंटरनेशनल समिट में कहा, 'रूस ने कभी ईरान का साथ छोड़ने की कोशिश नहीं की, बल्कि वह ईरान और इजराइल के साथ संतुलित रिश्ते बनाए रखने की कोशिश कर रहा है।' पुतिन के इस बयान से साफ जाहिर है कि अब तक रूस ने मध्यस्थता का रुख अपनाया है। वह इजराइल के हमले का विरोध तो कर रहा है, लेकिन ईरान का खुलकर साथ नहीं दे रहा। 13 जून को पुतिन ने इजराइल और ईरान के साथ फोन पर बातचीत की थी और जंग खत्म करने की बात कही। हालांकि 19 जून को रूस के विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता मारिया जखारोवा ने कहा, हम खासतौर पर अमेरिका को चेतावनी देना चाहते हैं कि वह इस स्थिति में कोई दखल न दे। ऐसा करना बहुत खतरनाक कदम होगा, जिसके नुकसानदेह नतीजे हो सकते हैं। वहीं, चीन का कहना है कि वह ईरान के साथ खड़ा है। चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने कहा, इजराइल का ईरान पर हमला करना गलत है। दोनों देशों के नेताओं को राजनयिक तरीके से यह विवाद सुलझाना चाहिए। इजराइल को फौरन हमले बंद करने चाहिए, ताकि हालात और न बिगड़ें और युद्ध अन्य क्षेत्रों में न फैले। विदेश मामलों के जानकार और JNU के प्रोफेसर डॉ. राजन कुमार के मुताबिक, 'रूस और चीन के बयान से इजराइल वैश्विक मंच पर अलग-थलग पड़ गया है, लेकिन वो न तो कमजोर हुआ है और न ही डरा है। जब तक रूस और चीन ईरान के लिए जंग के मैदान में नहीं उतरते, तब तक इजराइल और अमेरिका के लिए कोई मुश्किलें नहीं बढ़ी हैं।’ हालांकि डॉ. राजन कुमार का यह भी कहना है, 'रूस और चीन दुनिया की दूसरी और तीसरी सबसे बड़ी ताकतें हैं। अगर यह दोनों देश ईरान को सैन्य समर्थन देते हैं, तो इजराइल और अमेरिका की मुश्किलें बढ़ भी सकती हैं। जब यह दोनों देश सैन्य मदद देकर ईरान के साथ खड़े होंगे, तो अमेरिका और इजराइल से टकराव बढ़ जाएगा। अमेरिका भी खुले तौर पर इजराइल के साथ खड़ा होगा। ऐसे में हालात बहुत ज्यादा खतरनाक हो जाएंगे क्योंकि यह कोई आम स्थिति नहीं होगी, बल्कि तीसरे वर्ल्ड वॉर की शुरुआत होगी।' सवाल-7: क्या ईरान पर सीधा हमला करके फंस गया है इजराइल?
जवाबः डॉ. राजन कुमार का कहना है, 'यह कहना गलत होगा कि ईरान पर हमला करके इजराइल पूरी तरह फंस गया है। दो बातें उसे बढ़त दिलाए रहेंगी। पहली- एडवांस मिलिट्री और दूसरी अमेरिकी समर्थन। हालांकि ईरान के तीव्र पलटवार ने उसे सैन्य, आर्थिक और कूटनीतिक चुनौतियों के सामने ला खड़ा किया है।’ राजन कुमार कहते हैं, ‘इजराइल भले ही कह रहा है कि उसने ईरान को परमाणु बम बनाने से रोकने के लिए हमला किया, लेकिन दुनिया की नजर में इजराइल के हमले को गलत माना जा रहा है। शुरुआती बढ़त के बावजूद इजराइल के लिए गंभीर जोखिम हो सकते हैं। अब अंजाम इस बात से तय होगा कि ये जंग कितनी लंबी खिंचती है और इसमें कौन-से देश शामिल होते हैं।’ ------------- ईरान-इजराइल जंग से जुड़ी अन्य खबर पढ़ें- खामेनेई से खुन्नस या ट्रम्प को जंग में घसीटना: नेतन्याहू का असली मकसद क्या; ईरान में परमाणु बम बनाने के सबूत नहीं, फिर क्यों हमला किया 5 फरवरी 2003 को अमेरिका के विदेश मंत्री कोलिन पॉवेल संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में एक शीशी लहराने लगे। दावा किया कि इराक के शासक सद्दाम हुसैन के पास ऐसे रासायनिक हथियार हैं, जिनसे सामूहिक विनाश हो जाएगा। ऐसा माहौल बनाया गया कि इराक पर हमला जरूरी लगने लगा। पूरी खबर पढ़ें...