सैंपल ही गायब; महिला जांच लेने पहुंची तो पता चला सैंपल आए ही नहीं, कहा- अब फिर से दो

सैंपल ही गायब; महिला जांच लेने पहुंची तो पता चला सैंपल आए ही नहीं, कहा- अब फिर से दो
आरयूएचएस में मरीजों की परेशानी कम होने का नाम नहीं ले रही है। एक ओर अस्पताल में सभी प्रकार की जांच नहीं होती तो दूसरी ओर मरीजों की ओर से दिए जा रहे सैंपल गायब हो रहे हैं। ऐसे ही एक मामले में एक महिला मरीज की ओर से सैंपल देने के बाद जब रिपोर्ट नहीं आई, तो उसे फिर से सैंपल देने के लिए कहा गया। मामले की जब भास्कर ने पड़ताल की तो सैंपल लेने वाले स्टाफ और लैब के स्टाफ ही आमने-सामने हो गए। सैंपल लेने वाले स्टाफ का कहना था कि उन्होंने लैब में सैंपल भेजा है। वहीं, लैब स्टाफ ने कहा कि उन तक सैंपल आया ही नहीं। अन्तत: परेशान होकर पेशेंट को फिर से सैंपल देना ही पड़ा। वहीं, मामले में अस्पताल के कार्यवाहक इंचार्ज डॉ. वरुण सैनी से बात की तो उन्होंने पूरे मामले को दिखवाने की बात कही। मामले के अनुसार जयपुर के प्रताप नगर निवासी नीलम को पिछले कई दिन से बुखार और शरीर में दर्द था। वह दिखाने के लिए 24 मई को आरयूएचएस गई और डॉक्टर ने ब्लड जांचें लिखी। नीलम ने वहां सैंपल दिया। इसके बाद स्टाफ ने कहा कि उसे अगले दिन रिपोर्ट मिल जाएगी। अगले दिन वह रिपोर्ट लेने गई तो उसे कहा गया कि सैंपल खो गया और फिर से सैंपल देना पड़ेगा। जब मामले की जानकारी भास्कर को मिली और पड़ताल की गई और पूछताछ की तो सैंपल लेने वाले स्टाफ ने इसकी एंट्री होना बताया। साथ ही सैंपल लैब में भेजे जाने की बात कही। लेकिन लैब में पूछने पर वहां के स्टाफ ने कहा कि उनके पास सैंपल नहीं आया। व्यवस्थाएं हर दिन बिगड़ रही एक और मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा आरयूएचएस को बेहतर बनाने की कोशिश कर रहे हैं, वहीं दूसरी और यहां व्यवस्थाएं हर दिन बिगड़ती जा रही हैं। अंदाजा इससे लगा सकते हैं कि 1 माह में बिजली व्यवस्था सही नहीं हुई। अस्पताल में हर 1 घंटे में 8 से 10 बार बिजली गुल होती है। क्लॉट होने की बात कहकर मरीजों को टालते हैं कर्मचारी अस्पताल में लगभग हर तीसरे दिन सैंपल गायब हो रहे हैं। ऐसे में यहां आने वाले मरीजों के परिजनों को खासा परेशान होना पड़ता है। स्टाफ बचने के लिए सैंपल के खराब होने का तर्क देता है या फिर सैंपल में क्लॉट होने की बात कहकर मरीजों को टालता है और फिर से सैंपल लिए जाते हैं। सबसे बड़ी परेशानी यह कि मरीज डेढ़ से दो घंटे तक लाइन में लगकर पर्ची कटाता है और फिर सैंपल देने के लिए इंतजार करता है। अगले दिन जब रिपोर्ट लेने जाता है, तो उसे फिर से सैंपल देने के लिए कहा जाता है। अब जबकि डॉक्टर बिना रिपोर्ट के इलाज शुरू नहीं करता, तो मरीज का पूरा इलाज ही अटक जाता है। अस्पताल में पूरा स्टाफ ही बिना यूनिफार्म और ड्रेस कोड के काम करता है। ऐसे में ठेके पर काम करने वाले कर्मी और अस्पताल कर्मियों का भी अंतर पता नहीं चलता।