शनि जयंती आज:मेवाड़ के शनि मंदिर में सीधे तेल चढ़ाने की अनुमति नहीं, पाइप से मूर्ति पर वहां से कुंड में जाता है तेल

शनि जयंती आज:मेवाड़ के शनि मंदिर में सीधे तेल चढ़ाने की अनुमति नहीं, पाइप से मूर्ति पर वहां से कुंड में जाता है तेल
राजस्थान में शनिदेव का एक दुर्लभ मंदिर है। यहां पर बीते 29 वर्षों से चढ़ाए जा रहे तेल की एक-एक बूंद सहेजी गई है। मेवाड़ के भादसोड़ा-कपासन मार्ग पर स्थित शनिदेव मंदिर आली में चढ़ाए गए तेल को इस्तेमाल में नहीं लेते, न ही बेचा जाता है। इसे बहाया या जमीदोंज भी नहीं किया जाता। इसी वजह से एक के बाद एक तीन तेल कुंड बन चुके हैं। मंदिर पदाधिकारी कहते हैं, शनिदेव से पाती मांगकर पूछा जाता है कि इस तेल का क्या करें.... तीसरा कुंड भरने पर भी पाती मांगी जाएगी। वे कहेंगे तो चौथा कुंड भी बनेगा। भास्कर ने इन तेल कुंडों के आकार, गहराई व मौजूदा स्तर के हिसाब से पीएचईडी इंजीनियर से आकलन करवाया। इसके अनुसार इन कुंडों में अभी 27.44 लाख लीटर तेल भरा है। तीनों कुंड आपस में जुड़े हैं। तय सीमा से ऊपर तेल दूसरे व फिर तीसरे कुंड में चला जाता है। 40 फीट गहरा तीसरा तेल कुंड अभी 15 फीट ही भरा है। पूरा भरने में कई साल लगेंगे। मंदिर पदाधिकारियों के अनुसार हर काम शनिदेव से पाती लेकर यानी पूछकर किया जाता है। शुरू में तेल एक गड्ढे में जमा होता था। ट्रस्ट बनने के बाद पक्का कुंड बनाया गया। एक के बाद दूसरा कुंड भी भर गया तो शनिदेव से पाती मांगी। तीन विकल्प रखे- क्रमशः तेल को नदी या गड्डा खोदकर डिस्पोज करें, व्यावसायिक उपयोग के लिए दें या तीसरा कुंड बनाएं। पाती कुंड बनाने की आई। तीनों कुंड लोहे की चादर व जाली से ढंके हैं। बड़े डोम के नीचे ही तीनों को लाया गया है। अब सिर्फ सरसों का तेल चढ़ रहा, पहला कुंड खाली करेंगे श्रद्धालु यहां पर सरसों के साथ तिल्ली आदि अन्य प्रकार के तेल भी चढ़ाते थे। व्यापारी भी सभी प्रकार का तेल रखते थे। कमेटी ने हाल में फैसला लिया कि अब सिर्फ सरसों का तेल ही चढ़ेगा। नियम लागू भी कर दिया गया। सचिव कालूसिंह ने बताया कि इस शुरुआत के साथ भी पाती मांगी। शनिदेव के आदेश अनुसार पहले कुंड की सफाई कराई जाएगी। कुंड का तेल दूसरे से तीसरे में डाल कर पूरा खाली कर देंगे। ताकि इसके बाद इस कुंड में सरसों का तेल ही जमा होगा। सीधे मूर्ति पर चढ़ाने की अनुमति नहीं कीप से मूर्ति पर होते हुए कुंड मेंं जाता है तेल शनिधाम पर लगातार बढ़ते श्रद्धालुओं के कारण किसी को भी गर्भगृह में जाकर सीधे मूर्ति पर तेल चढ़ाने की अनुमति नहीं है। करीब 15 साल पहले मुख्यद्वार पर दोनों तरफ 10-10 फीट लंबे कीप लगाए गए। श्रद्धालु इसी में तेल चढ़ाते हैं। जो पाइप लाइन से शनिदेव की मूर्ति तक व फिर वहां से पहले कुंड में जाता है। उसके ओवरफ्लो पाइंट से दूसरे कुंड में और इसी तरीके से तीसरे कुंड में पहुंचता हैं। हर बार नया कुंड पहले से बड़ा बनाया, सुरक्षा भी कुंड-1: वर्ष 1995-96 में बना कुंड-2: वर्ष 2007-2008 में बना कुंड-3: वर्ष 2014-15 में बना