गाय के गोबर, हवन सामग्री, पराली और हर्ब से बनाई ‘गो समिधा’, अंतिम संस्कार में 300 किलो ही लगेगी, पहले 500 किलो लकड़ी लगती थी

गाय के गोबर, हवन सामग्री, पराली और हर्ब से बनाई ‘गो समिधा’, अंतिम संस्कार में 300 किलो ही लगेगी, पहले 500 किलो लकड़ी लगती थी
भारत सरकार के राष्ट्रीय पर्यावरण इंजीनियरिंग अनुसंधान संस्थान (नीरी) के सहयोग से गौमाया परिवार ने पॉल्यूशन फ्री ग्रीन मोक्षधाम बनाने की मुहिम शुरू की है। इसके तहत पहले चरण में विद्याधर नगर, महेश नगर और बी-टू बाईपास स्थित मोक्षधाम को चुना है। गौमाया परिवार के को-फाउंडर राजा मुकीम ने बताया कि मोक्षधाम को पॉल्यूशन फ्री बनाने के लिए चिमनी लगाई जाएंगी। चिमनी में धुआं पानी से फिल्टर होकर वाष्प बनकर निकलेगा। वहीं, देसी गाय के गोबर, हवन सामग्री, पराली और हर्ब से यह विशेष तरह की लकड़ी ‘गौ-समिधा’ बनाई गई, जिसका उपयोग अंतिम संस्कार में किया जाएगा। अभी अंतिम संस्कार में 500-600 किलोग्राम लकड़ी का उपयोग होता है और समय भी ज्यादा लगता है। अब गो समिधा 300 किलो ही लगेगी और समय भी कम लगेगा। गोकाष्ठ से अंतिम संस्कार में 8 कट्टे राख इकट्ठी होती है, जबकि समिधा से दो कट्टे ही बनेगी। गौमाया परिवार का एक अंतिम संस्कार पर दस पेड़ लगाने का लक्ष्य है। अंतिम संस्कार के लिए जयपुर के मोक्षधाम में गौ समिधा फ्री दी जाएगी। गौ-समिधा अंशदानी फाउंडेशन और गौमाया परिवार के तत्वावधान में नि:शुल्क उपलब्ध करवाई जाएगी। दो से तीन ग्राम रह जाएगी डस्ट; गिरी की साइंटिस्ट पदमा राव ने बताया कि 20 साल पुरानी रिसर्च में पाया गया कि अंतिम संस्कार से निकलने वाली डस्ट और धुआं हैल्थ के लिए नुकसानदायक है। यह ओपन होता है। इससे पांच किलोग्राम डस्ट निकलती है। चिमनी से यह डस्ट दो से तीन ग्राम रह जाएगी। यह सर्कुलर इकोनॉमी का हिस्सा है।