10 से 20% कमीशन के लिए 12 साल से गड़बड़ी:सहकारिता में एक आदेश की आड़ में 10 हजार करोड़ की बिना टेंडर खरीदारी

प्रदेश के सहकारिता विभाग में एक आदेश की आड़ में 12 साल तक बिना टेंडर खरीदारी का खेल चला। इसकी आड़ में 10 से 20% तक कमीशनखोरी भी चलती रही। इन 12 वर्षों में 10 हजार करोड़ रु. से ज्यादा की खरीदारी हुई। यह हेरफेर खाद्य सामग्री, दवाइयों की खरीद और परिवहन कार्यों में किया गया। अब इस मामले को दबाने के प्रयास चल रहे हैं। दरअसल, प्रदेश सरकार ने वर्ष 2012 में बिना टेंडर किए किसी भी विभाग को खरीदारी नहीं करने के आदेश जारी किए थे। इसके तहत राजस्थान पारदर्शिता (आरटीपीपी) अधिनियम 2012 एवं नियम 2013 की पूर्ण पालना करने को कहा गया था। ऐसा इसलिए किया गया था, क्योंकि टेंडर प्रक्रिया में ही पारदर्शिता के साथ प्रतिस्पर्धा बढ़ती है। इन आदेशों की धज्जियां उड़ाते हुए सहकारिता विभाग के तत्कालीन रजिस्ट्रार ने साल 2013 में एक आदेश निकाला। इसके तहत बिना टेंडर किए ही खरीदारी को मंजूरी दी गई। हर साल 558 करोड़ रुपए से लेकर 1683 करोड़ रुपए तक की खाद्य सामग्री व दवाएं अनाधिकृत विक्रेताओं से खरीदी गई। मामले में कमीशनखोरी और लगातार शिकायतें सामने आने के बाद अब 21 मई को सहकारी समितियां, राजस्थान की रजिस्ट्रार मंजू राजपाल ने बिना टेंडर किए खरीदी किए जाने के आदेश को अप्रासंगिक बताते हुए प्रत्याहरित (वापस) लेने के आदेश जारी किए हैं। ऐसे खुला कमीशन का रास्ता सहकारी संस्थाएं, राजस्थान के तत्कालीन रजिस्ट्रार ने 11 सितंबर 2013 को आरटीपीपी एक्ट 2012 एवं आरटीपीपी नियम 2013 के एकदम विपरीत आदेश निकाले। इसके तहत तीन सदस्यीय कमेटी बनाकर कहीं से भी बिना टेंडर खरीदारी की छूट दी गई। यह आदेश क्रय विक्रय सहकारी समिति एवं जिला सहकारी उपभोक्ता थोक भंडारों के लिए लागू हुए। इसके बाद चहेते व्यापारियों से खाद्य सामग्री खरीदकर जेलों, समाज कल्याण विभाग के छात्रावासों, सर्किट हाउसों, जनजाति विभाग के छात्रावासों, कस्तूरबा गांधी आवासीय विद्यालयों, अस्पतालों एवं अन्य सरकारी संस्थानों में आपूर्ति की गई। परिवहन का काम भी बिना टेंडर हुआ। मुख्यमंत्री तक पहुंचा मामला, कार्रवाई की तैयारी अब यह मामला सीएमओ तक पहुंच चुका है। ऐसे में इसकी ऑडिट रिपोर्ट तैयार कर कार्रवाई की बात सामने आ रही है। पूर्व विधानसभा अध्यक्ष शांतिलाल चपलोत का कहना है कि विधानसभा में पारित आरटीपीपी एक्ट के विरुद्ध जाकर रजिस्ट्रार आदेश जारी नहीं कर सकता। अब सवाल ये उठ रहे हैं कि क्या विधानसभा में पारित कानून की विभाग अवमानना कर सकता है? खरीद में आरटीपीपी एवं 2013 के विभागीय आदेश का उल्लंघन करने वालों के खिलाफ जांच या कार्रवाई क्यों नहीं हो रही? न निर्माता-न विक्रेता, चहेतों से खरीद सहकारिता विभाग की ही कई जांच रिपोर्टों में खुलासा हुआ है कि जिस तीन सदस्यीय कमेटी को खरीदारी करनी थी, वह कभी न तो मंडी पहुंची और न ही कंपनियों के पास पहुंची। अनधिकृत फर्मों से ही उत्पादों की खरीदारी होती रही। टीएडी छात्रावासों में खाद्यान्न आपूर्ति में एक ही आइटम की अलग-अलग जिलों में अलग-अलग दर के साथ घटिया सामग्री का खुलासा भी हो चुका है। बांसवाड़ा और डूंगरपुर उपभोक्ता भंडारों ने कोटा की मनवार फूड्स नाम की फर्म से करोड़ों रुपए की खाद्यान्न सामग्री खरीदकर सप्लाई कर दी, जबकि यह फर्म सप्लाई किए गए किसी आइटम की न तो निर्माता है और न ही अधिकृत विक्रेता है। यहां तक कि दोनों ही जिलों में खुदरा या होलसेल व्यापार भी नहीं करती। प्रतापगढ़ में संजय जैन नाम के कारोबारी की फर्म संजय पैकेजिंग से खरीदारी की गई। इस फर्म का उपलब्ध कराए गए उत्पादों के निर्माण से कोई लेना-देना तक नहीं है। बिना टेंडर की इस प्रक्रिया में 5-2% तक कमीशन बांटने की शिकायत कई वर्षों तक दर्ज कराई गई, लेकिन किसी ने ध्यान तक नहीं दिया। खरीद के ये आंकड़े वर्ष खरीद (करोड़ में) 2024-25 1683.68 2023-24 1571.21 2022-23 1717.06 2021-22 1991.83 2020-21 879.41 2019-20 314.64 2018-19 614.30 2017-18 558.55 2016-17 642.70 2015-16 415.40 2014-15 508.70 कुल 10283.18 जांच में मिली गड़बड़ियां, कार्रवाई नहीं : टीएडी छात्रावासों में गड़बड़ियों के खुलासे के बाद अक्टूबर 2024 में रजिस्ट्रार के निर्देश पर जांच की गई। इसमें कई अनियमितताएं पाई गईं। संबंधित भुगतान रोकने के आदेश भी जारी हुए। इसके बावजूद फर्मों को करोड़ों का भुगतान कर दिया गया। न फर्मों पर कार्रवाई हुई, न अफसरों पर।