नगर निगम बीकानेर:वरिष्ठता-नियम दरकिनार, प्रभार सौंपने में मनमानी, सफाई कर्मचारी भी बना दिए इस्पेक्टर

नगर निगम बीकानेर:वरिष्ठता-नियम दरकिनार, प्रभार सौंपने में मनमानी, सफाई कर्मचारी भी बना दिए इस्पेक्टर
नगर निगम में कर्मचारियों को प्रभार देने में वरिष्ठता और नियमों की घोर अनदेखी की गई है। भर्ती ना होने से आगे के चार्ज देने के लिए सारे नियम कानून साइड में रख दिए गए। कहीं सफाई कर्मचारी इंस्पेक्टर बन गए तो कई ऐसे भी हैं जो अपने पद से नीचे के लेवल पर काम कर रहे हैं। चार्ज देने का कोई पैमाना नहीं रहा। इन सबके बीच वार्डों में सफाई करने वाले 1450 कर्मचारियों में 900 से 1000 के बीच ही हैं जबकि जरूरत 3700 सफाई कर्मचारियों की है। नतीजा, गलियों से सड़कों पर दो सप्ताह में एक बार सफाई का नंबर आता है। दरअसल नगर निगम में 11 सफाई इंस्पेक्टर हैं। 11 में सिर्फ 6 इंस्पेक्टर ऐसे हैं जो सही मायने में नियमों से लगे हैं। इनमें हितेष, अनिल,नेक मोहम्मद, रवि, ओमप्रकाश जावा और कपिल जैदिया शामिल हैं। इसके अलावा मुकेश पंवार सहायक प्रशासनिक अधिकारी हैं लेकिन इनको इनके कद से नीचे सफाई इंस्पेक्टर बनाया हुआ है। एक सफाई कर्मचारी तो पद से तीन सीढ़ी ऊपर इंस्पेक्टर बनाया गया। एक जमादार है इनको भी इनके एक पायदान ऊपर का चार्ज दिया गया। एक यूडीसी हैं ये भी लंबे समय से इंस्पेक्टर हैं। एक और जमादार हैं उनकी की भी कहानी कुछ मिलती जुलती है। 80 जमादारों में भी कुछ ऐसे हैं जिनको पढ़ना लिखना तक नहीं आता। मगर वे जमादार हैं। ज्यादातर जमादार के पद पर सफाई कर्मचारी बैठे हैं। जो सफाई कर्मचारी जमादार बन गया वो झाड़ू नहीं उठाता। ऊपर से एक सफाई कर्मचारी अपने असिस्टेंट रखते हैं। कागजों में 1450 सफाई कर्मचारी, सफाई के लिए 1000 भी नहीं कागजों में निगम में सफाई कर्मचारियों की संख्या 1450 के आसपास है मगर वार्डों में ये 900 से 1000 के बीच ही मिलेंगे। क्योंकि करीब ढाई सौ कर्मचारी तो अफ्सरों की सेवा चाकरी के लिए कोठियों पर लगे हैं। इनको वापस बुलाने के लिए कितने आईएएस अधिकारियों ने कोशिश की मगर मजाल है कि इनको कोई वापस बुला ले। कुछ उद्यानों में लगे हैं वे सफाई ही नहीं करते। कुछ दफ्तरों में बाबू और सहायक कर्मचारी बने बैठे हैं। जिन सफाई कर्मचारियों की राजनीतिक एप्रोच नहीं है वे सड़कों पर झाडू लगा रहे वरना वे भी दफ्तरों में बैठे होते। निगम में कुछ सफाई कर्मचारी तो इतने ताकतकवर हैं कि पूरी नौकरी ही दफ्तर में बैठकर निकाल दी। निगम को जरूरत पड़ने पर रोस्टर प्रक्रिया भी नहीं अपनाता कि लंबे समय से आफिस में बैठे कार्मिकों को अब सफाई में लगाया और वार्डों से दफ्तरों में। राजनीतिक एप्रोच इस बात से समझें कि एक वार्ड में एक बार एक अधिकारी ने औचक निरीक्षण में 18 में से सिर्फ 10 कर्मचारी ही मौके पर पाए। रजिस्टर उठा लाए। निगम को रिपोर्ट की तो 8 गैरमौजूद को हटा दिया मगर 5 दिन में हटाए गए कर्मचारी वापस वार्ड में आ गए। ऐसे में अधिकारियों के मन में बैठ गया कि कितना ही करो जब सब राजनीति से ही होना तो जो हो रहा उसे होने दो।