थर्मल पावर की दो इकाइयों में टेंडर, दोनों में एक जैसे काम की ही अलग-अलग शर्त

थर्मल पावर की दो इकाइयों में टेंडर, दोनों में एक जैसे काम की ही अलग-अलग शर्त
राजस्थान विद्युत उत्पादन निगम में छबड़ा थर्मल पावर प्रोजेक्ट के टेंडर में शर्तों के हेर-फेर का मामला सामने आया है। एक ही पावर प्रोजेक्ट की दो अलग-अलग इकाइयों में एक जैसे काम के लिए दो अलग-अलग शर्तें। असर यह हुआ है कि एक में छोटी-छोटी कंपनियों को ठेका मिल गया, लेकिन बाद में किए गए टेंडर की बदली शर्त से सिर्फ दो बड़ी फर्म ही उसमें शामिल हो पाईं। अब इस मामले की शिकायत मुख्यमंत्री कार्यालय तक पहुंच गई है। शिकायत में कहा गया है कि इस प्रकार की बदली टेंडर की शर्तों के कारण न केवल एमएसएमई सैक्टर की छोटी इकाइयों को बाहर होना पड़ा है, बल्कि उत्पादन निगम को करोड़ों का नुकसान भी उठाना पड़ा है। यही नहीं, केंद्र और राज्य सरकार का छोटी-छोटी इकाइयों को आगे बढ़ाने का उद्देश्य भी पूरा नहीं हो पाया है। आरटीपीपी एक्ट का उल्लंघन इस टेंडर की शर्तों में तीन बार संशोधन किया गया, यह आरटीपीपी एक्ट के नियमों के खिलाफ है। एक टेंडर में 13 मई से 3 जून 2025 का समय दिया गया। इसमें 11 फर्म आने के बावजूद भी निविदा की तारीख 12 जून तक बढ़ा दी गई। जबकि दूसरे टेंडर में 28 अप्रैल से 7 मई 2025 तक का समय दिया। यानी इस टेंडर में सिर्फ 9 दिन का समय दिया गया, जो आरटीपीपी एक्ट की न्यूनतम 20 दिन की समय सीमा से भी कम है। इस तरह बदली गईं शर्तें... छबड़ा थर्मल पावर प्रोजेक्ट की निविदा 571/2024-25 में ट्रांसपोर्टेशन के एंपेनलमेंट के लिए टेंडर की प्रस्तावित कॉस्ट 47 करोड़ रुपए के साथ 100 बंद व खुले डंपर की आवश्यकता दर्शाई गई। साथ ही फर्म का टर्नओवर 14.34 करोड़ रुपए वार्षिक टर्नओवर मांगा गया। इस प्रकार की शर्तों का असर यह हुआ कि छोटी-छोटी फर्म इस टेंडर में भाग नहीं ले पाई थीं। जबकि छबड़ा सुपर क्रिटिकल थर्मल पावर प्रोजेक्ट की इकाई 5 व 6 में समान कार्य की निविदा 41/2023-24 में भी टेंडर एस्टिमेट कॉस्ट 50 करोड़ रुपए थी। इसमें 10 खुले व बंद डंपर की आवश्यकता और फर्म का टर्नओवर 1 करोड़ रुपए वार्षिक मांगा गया था। ऐसी शर्तों से छोटी-छोटी फर्मों को कार्य करने का मौका मिला। इसका लाभ यह भी हुआ कि कम खर्च में थर्मल की ज्यादा राख उठाई जा रही थी। यानी एमएसएमई में रजिस्टर्ड छोटी फर्म भी इसका हिस्सा बन पाईं। जबकि समान प्रकृति के कार्य के बावजूद बाद में किए गए टेंडर की शर्तों से छोटी फर्मों को बाहर करने की कोशिश की गई।