ईश्वर सिंह की कोशिशों से प्राइमरी स्कूल मिडिल बना:6 बीघा जमीन-मां की पेंशन स्कूल को दी, 20 साल से रिजल्ट 100%

राजस्थान के डूंगरपुर जिले की आसपुर पंचायत समिति के सकानी गांव के एक सरकारी स्कूल को लोग वागड़ का नालंदा कहते हैं। स्कूल को इस मुकाम तक पहुंचाने वाले शख्स हैं ईश्वरसिंह चौहान। खुद ज्यादा नहीं पढ़ सके। 12वीं ओपन से की। इसलिए संकल्प लिया कि गांव के हर बच्चे को पढ़ाऊंगा, उन्हें आगे बढ़ाऊंगा। बस, तब से पीछे मुड़कर नहीं देखा। स्कूल को प्राइमरी से मिडिल में बदलने की राह में जब जमीन की दिक्कत हुई, तो चौहान ने उसी समय 6 बीघा जमीन खरीदी और स्कूल के लिए दान कर दी। यहीं से शुरू हुआ सकानी स्कूल का नया सफर। पहले चार कमरे बने, फिर अलग-अलग लोगों से मदद लेकर कमरे बनवाए। अभी 22 कमरे हैं। ईश्वर सिंह ने 50 हजार की एफडी, फर्नीचर, साइंस लैब और 11वीं-12वीं की सभी व्यवस्थाएं पूरी कीं। साफ-सफाई के लिए 25 साल से अपने खर्चे पर एक चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी लगा रखा है। मां की पूरी पेंशन स्कूल को समर्पित कर दी। सिंह रोज ढाई घंटे स्कूल में बिताते हैं। बच्चों से बातें करते हैं। उनकी समस्याएं जानते हैं। इस सफर में शिक्षक हरेंद्र सिंह खरोड़िया ने भी चौहान का साथ दिया। 20 साल से स्कूल का रिजल्ट 100% रहा है। चौहान 25 साल से स्कूल प्रबंधन समिति के अध्यक्ष हैं। कार्यवाहक प्रिंसिपल महेंद्र बाना कहते हैं, ईश्वर सिंह से हमें ऊर्जा मिलती है। खुद के खर्च पर शिक्षक भी नियुक्त किया स्कूल में जब कभी शिक्षकों की कमी होती है तो ईश्वर सिंह अपने खर्च पर निजी शिक्षकों की नियुक्ति करते हैं। वे स्कूल में जाकर शिक्षकों को बच्चों को काबिल बनाने के लिए प्रेरित भी करते हैं। 50 गांवों के बच्चे यहीं पढ़ने आते हैं इस स्कूल में 9वीं से 12वीं तक आसपास के 50 गांवों के करीब 450 छात्र पढ़ने आते हैं। पढ़ाई का स्तर ऐसा है कि सरकारी कर्मचारी और अधिकारी भी अपने बच्चों को यहीं पढ़ाना पसंद करते हैं।