नेता पुत्र ने पुलिस अफसर को दी गालियां:मंत्री के दर्जे को तरसे 7 अध्यक्ष; गुजरात मॉडल से कई नेताओं पर खतरा

नेता पुत्र ने पुलिस अफसर को दी गालियां:मंत्री के दर्जे को तरसे 7 अध्यक्ष; गुजरात मॉडल से कई नेताओं पर खतरा
सत्ता को हजम करने वाले फलों से लदे पेड़ की तरह होते हैं, जिसके पास जितनी पावर वो उतना विनम्र, लेकिन इसे हजम करना हर किसी के बस की बात नहीं है। आजकल इन बातों के कोई मायने नहीं रह गए कि सत्ता है तो उसका नशा सिर चढ़कर नहीं बोले तब तक वो किस काम की? सत्ताधारी एक नेताजी के बेटे ने भी पावर पॉलिटिक्स की पुरानी थ्योरी को लात मारकर नई स्टाइल को अपनाया। नेता पुत्र ने अफसरों पर धाैंस जमाना शुरू किया। एक पुलिस अफसर से तो गाली-गलौज तक कर दी। गाली-गलौज का क्रम बढ़ने लगा तो पुलिस अफसर का स्वाभिमान जाग गया। आखिर कोई कब तक सहेगा, पुलिस अफसर ने सही जगह पर दो टूक कह दिया कि इस बार नेता पुत्र ने अपनी शैली अपनाई तो जवाब पुलिस की शैली में मिलेगा। सुना है, उसके बाद नेता पुत्र ने फोन करने बंद कर दिए हैं। बड़े नेता के दौरे से विधायक परेशान, महिला नेता की विधायक दावेदारी सियासत में कुछ भी स्थायी नहीं होता, मौसम की तरह सत्ता समीकरण भी कब पलटी मार जाए कोई नहीं कह सकता। पश्चिमी राजस्थान के एक जिले में इन दिनों मंत्री से लेकर विधायक तक भविष्य को लेकर परेशान हैं। परेशानी का कारण अगले चुनावों में तैयार टिकट के दावेदार हैं। दक्षिण में काम कर रहे संगठन से जुड़े एक बड़े नेताजी पिछले दिनों जिले के दौरे पर आए। बड़े नेताजी का लंच विधायक टिकट की दावेदार महिला नेता के घर पर रखा गया। सियासत के जानकारों ने अगले विधानसभा चुनाव में महिला नेता को सीरियस दावेदार मान लिया है। अब जिसका टिकट कटेगा वो तो परेशान होगा ही। सत्ताधारी नेताजी की जमीन सबसे बड़े दफ्तर में क्यों बनी हॉट टॉपिक? आजकल जमीनी धरातल से ज्यादा सियासत में जमीनों की चर्चा ज्यादा है। नेता अगर सत्ताधारी हो तो पूरा विमर्श ही जमीनों के इर्द-गिर्द केंद्रित हो जाता है। राजधानी के एक सत्ताधारी नेता की जमीन के पट्टे का मामला सबसे बड़े दफ्तर में भी हॉट टॉपिक बन गया है। फाइलों से छनकर जो सामने आया है, वह चौंकाने वाला है। नेताजी ने जिस काम के लिए जमीन ली, वह अच्छे मुनाफे में बेच दी, लेकिन कागजों में कमी रह गई तो पट्टे का मामला अटक गया। अफसर नेताजी की जमीन की फाइल पर फैसला करने को तैयार नहीं, क्योंकि जो नेताजी का भला करेगा वो जेल जाएगा। अब भला कौन अफसर परमार्थ करते हुए जेल जाना चाहेगा? नेताजी किसी भी कीमत पर फैसला करवाना चाहते हैं, फिलहाल फाइल अटकी हुई है। विरोधियों की भी इस फाइल पर पैनी निगाह है, फैसला होते ही विवाद तय है। पद मिला लेकिन सवा साल से मंत्री के दर्जे को तरसे 7 बोर्ड-निगमों के अध्यक्ष लोकसभा चुनावों से पहले सरकार ने 7 राजनीतिक नियुक्तियां करके बोर्ड, आयोग में अध्यक्ष लगाए। धरोहर संभालने वाली समिति में अध्यक्ष की नियुक्ति थोड़े पहले हो गई। 7 नेताओं को राजनीतिक नियुक्तियां मिले हुए सवा साल का वक्त बीत चुका है, लेकिन धरोहर संरक्षण वाले अध्यक्ष को छोड़ किसी को भी मंत्री का दर्जा नहीं दिया है। पहले राजनीतिक नियुक्ति के अगले ही दिन कैबिनेट मंत्री या राज्य मंत्री का दर्जा देने के आदेश निकलते थे। इस आदेश के बाद ही सारी सुविधाएं मिलती थीं। किसान आयोग, जीव जंतु कल्याण बोर्ड, देवनारायण बोर्ड, माटी कला बोर्ड, विश्वकर्मा कौशल विकास बोर्ड सैनिक कल्याण सलाहकार समिति और एससी वित्त निगम के अध्यक्ष सवा साल से मंत्री का दर्जा मिलने का ही इंतजार कर रहे हैं। इन नेताओं की दुविधा पर सत्ताधारी नेता ने यहां तक कह दिया कि इसे कहते हैं देने का नाम करके भी नहीं देना। सांसद विधायक पुत्रों के अरमानों पर पानी, मंजूरी देने से साफ इनकार सत्ता की सियासत करके नियम कायदों को अपने हिसाब से तोड़ना मरोड़ना पुरानी परंपरा रही है। हर राज में इसके ढेरों नमूने मिलते हैं। पिछले दिनों एक चर्चित पहाड़ी शहर की सबसे बड़ी अफसर के पास मंत्री और एक सांसद के बेटे कुछ काम लेकर गए। शहर की सबसे बड़ी अफसर ने मंत्री और सांसद के दोनों बेटों को टका सा जवाब देते हुए उनका काम करने से साफ इनकार कर दिया। इस पहाड़ी शहर में निर्माण सामग्री ले जाने पर प्रतिबंध है, नेता पुत्र इसीकी मंजूरी लेना चाहते थे। यह बात बाहर आ गई और पहाड़ी शहर से निकलकर राजधानी तक पहुंच गई। अब सियासी जानकार इसे लेकर अपने अपने मायने निकाल रहे हैं। अब सियासत और बजरी के बाजार की बातें इतनी आसान थोड़े ही हैं कि हर कोई डिकोड कर ले। विपक्षी पार्टी में गुजरात मॉडल से कई नेताओं पर खतरा विपक्षी पार्टी की सियासत में इन दिनों अंदरखाने बहुत कुछ चल रहा है, जो बड़े बड़े नेताओं को दिख नहीं रहा है। पूर्व राष्ट्रीय संगठन मुखिया ने संगठन की ओवरहॉलिंग का काम हाथ में लिया है। गुजरात मॉडल पर राज्यों में संगठन के स्तर पर बड़े फेरबदल हो रहे हैं। जिले से लेकर मंडल और गांव स्तर तक पूर्व संगठन मुखिया नए सिरे से संगठन खड़ा कर रहे हैं, ये नेता सीधे उनसे जुड़े रहेंगे। सुना है, साल छह महीने में राजस्थान का भी नंबर आएगा। गुजरात मॉडल पर संगठन फिर से बना तो मौजूदा कई नेताओं की छुट्टी तय है। अभी बहुत नेताओं को इसके बारे में पता नहीं है, लेकिन जागरू नेता सब जान चुके हैं। पूर्व मुखिया ने अपने संपर्कों से नए मॉडल का पूरा सिस्टम समझा है, पिछले दिनों इसे लेकर कुछ मुलाकातें भी हुईं हैं। विपक्षी पार्टी में अगले साल भर में बहुत कुछ बदलने की आहट सुनाई देने लगी है। सुनी-सुनाई में पिछले सप्ताह भी थे कई किस्से, पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें रैली में महिला मंत्री क्यों हुईं दुखी?:दिल्ली जाने की तैयारी में आईएएस पति-पत्नी; मंत्री और विधायक में खींचतान